Mahashivratri 2024: न मिले बेलपत्र तो शिवलिंग पर चढ़ाए ये पत्ते, इसे कहते हैं ‘स्वर्ग का वृक्ष’

सोनिया मिश्रा/ चमोली: महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2024) के पावन पर्व पर भगवान शिव के भक्त उनका आशीर्वाद प्राप्त करने को कई जतन करते नजर आते हैं. इस खास मौके पर भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने का बड़ा महत्व माना जाता है. लेकिन, उत्तराखंड के कई उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बेल के पेड़ नहीं होते हैं. ऐसे में देव वृक्ष पद्म पत्र यानी पय्या का पत्ता भी शिवलिंग पर अर्पित कर सकते हैं. क्योंकि, शास्त्रों में इसको भी बेलपत्र के समान ही दिव्य बताया गया है.उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होने के चलते यह भगवान आशुतोष को भी प्रिय है.

चमोली निवासी पंडित मदन मैखुरी बताते हैं कि पद्म वृक्ष पहाड़ों के लोगों के लिए औषधीय गुणों के अलावा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है. अगर महाशिवरात्रि पर आपको बेलपत्र नहीं मिलते हैं, तो आप पद्म के पत्तों को भी शिवलिंग पर अर्पित कर सकते हैं. इसका भी आपको बेलपत्र समान फल मिलता है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड पहाड़ी गांव में होने वाली महत्वपूर्ण पूजा अनुष्ठानों में पय्या की लकड़ी, पत्ते और छाल का प्रयोग किया जाता है. इतना ही नहीं, इन गांवों में होने वाली सुप्रसिद्ध पांडव लीला में प्रयोग होने वाले पांडवों के जो अस्त्र होते हैं, वो पद्म की लकड़ी से ही बनाए जाते हैं. पद्म एक पवित्र वृक्ष है, जिसे ‘स्वर्ग का वृक्ष’ माना गया है.

पद्म वृक्ष की संरक्षित पेड़ों में गिनती
गौरतलब है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले धार्मिक महत्व वाले देववृक्ष पद्म को लोग बहुत ही पवित्र मानते हैं. अब इस पेड़ की गिनती संरक्षित श्रेणी के वृक्षों में होने लगी है. इस पेड़ के फूल, पत्ते ही नहीं बल्कि छाल भी लाभकारी है. इसके छाल से रंग व दवा का निर्माण किया जाता है. इस प्रकार यह पेड़ मानव के लिए कुदरत का अनोखा उपहार है. इस पेड़ की विशेषता यह है कि पर्वतीय अंचल में जब पौष माह में सभी पेड़ों की पत्तियां गिर जाती हैं व प्रकृति में फूलों की कमी हो जाती है. उस दौरान यह पेड़ हरा भरा हो जाता है. इसके विपरीत अन्य सभी पेड़ों में वसंत ऋतु में फूल व पत्ते आते हैं.

चंदन के समान पवित्र है पद्म वृक्ष
वनस्पति वैज्ञानिकों के अनुसार, यह रोजेसी वंश का पौधा है. आर्द्रता वाले क्षेत्रों में होने की वजह से इसकी लकड़ी भी चंदन के पेड़ के समान ही पवित्र मानी जाती है. मवेशियों के लिए इसका चारा काफी पौष्टिक होता है. इसे मवेशी बड़े ही चाव से खाते हैं. यज्ञोपवीत व जागर तथा बैसी के आयोजन में भी इसका डंठल किसी न किसी रूप में प्रयोग में लाया जाता है. धार्मिक आयोजनों में बजाए जाने वाले पहाड़ी वाद्य यंत्र इसी पेड़ की टहनियों से बनाए जाते हैं. मानव को शहद जैसी औषधि प्रदान करने वाली मधुमक्खियों के लिए भी यह पेड़ लाभकारी है. शीतकाल में यह पेड़ उनके लिए भोजन का मुख्य आसरा होता है. इस काल में इस पेड़ के फूल ही उनके आहार का मुख्य आधार होता है. यही कारण है कि शहद में कार्तिकी शहद को विशेष लाभकारी माना गया है.

फूल और पत्तियों से बनती है दवा

मान्यता है कि ये नागराज का वृक्ष होता है. रोजेशी वंश के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम प्रूनस सेरासोइड्स   है. अंग्रेजी में इसे बर्ड चेरी के नाम से जाना जाता है. लम्बी आयु वाला ये पेड़ अपनी हरी भरी जटाओं के लिए विख्यात है. मवेशी इसकी घास नहीं खाते, लेकिन जो खाते हैं उन मवेशियों के लिए ये पौष्टिक आहार है. देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़ा ये बहुत ही धार्मिक वृक्ष है, जो उच्च हिमालयी क्षेत्र में उगता है. पुरातन काल से ही हमारे पूर्वजों ने पंया वृक्ष पर गहन शोध कर इसके लाभों को मानव जीवन के कल्याण के लिए प्रयोग में लिया है. पदम वृक्ष औषधीय गुणों की खदान है, जिसमें अपार मात्रा में औषधीय गुण है. इसकी पत्तियों के फूलों का विभिन्न प्रकार की औषधियां बनाने में प्रयोग किया जाता है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. Local 18 किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.

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