Loksabha Election 2024: छिंदवाडा बना भाजपा के क्लीन स्वीप के सपने में रोड़ा!

हाइलाइट्स

1997 में बीजेपी के सुंदरलाल पटवा 3.44 लाख वोट से विजयी हुए, लेकिन केवल एक साल के लिए.
छिंडवाड़ा सीट पर 2019 के चुनाव में कांग्रेस के नकुलनाथ को 5.47 लाख वोट मिले थे.
2019 में भारतीय जनता पार्टी के नत्थन शाह 44 फीसदी वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे थे.

बात 1997 की है. भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता सुंदरलाल पटवा छिंदवाड़ा में हुए उपचुनाव में कमलनाथ के मुकाबले मैदान में थे. तब सूबे में कांग्रेस की सरकार थी. दिग्विजय सिंह जो कमलनाथ को अपना बड़ा भाई बताते हैं, मुख्यमंत्री थे. दोनों तरफ से चुनावी विजय के लिए प्रचलित तमाम नुस्खे अपनाए गए, इसके बावजूद कमलनाथ चुनाव में परास्त हो गए. कमलनाथ के लंबे सियासी सफर की वह पहली और आखिरी पराजय थी. इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह था कि 1952 से लगातार 2019 के बीच हुए तमाम चुनावों में वह पहला और आखिरी अवसर था जब भाजपा या अन्य किसी गैर कांग्रेसी दल के पास छिंदवाडा की सियासी सरपरस्ती गयी थी. उसके बाद से छिंदवाडा की जीत एक बार फिर भाजपा के लिए सपना जैसी हो गई. ऐसे में यह सवाल उठना मौजू है कि क्या इस बार ‘मिशन 29’ हासिल हो पाएगा.

पिछले महीने जब कमलनाथ और उनके सांसद पुत्र नकुलनाथ के भाजपा में जाने की अफवाह उड़ी, तब लगा था कि इस बार तो मध्य प्रदेश में भाजपा क्लीन स्वीप कर लेगी. पर वह अफवाह सच्चाई नहीं बन पायी. भाजपा की पहली सूची में मध्य प्रदेश की 29 में से 24 सीटों पर उम्मीदवारों के नामों का ऐलान हो गया, लेकिन छिंदवाडा समेत पांच सीटों पर नाम तय होने बाकी हैं. इसलिए राजनीतिक पंडितों को लग रहा है कि पार्टी वहां कोई चमत्कार कर सकती है. हालांकि, यहां पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम भी उछला था लेकिन उन्हें विदिशा से चुनाव मैदान में उतार कर पार्टी ने नए चमत्कार की चर्चा के लिए मैदान फिर से तैयार कर दिया.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राघवेन्द्र सिंह कहते हैं कि भाजपा यदि छिंदवाडा जीतना चाहती है तो उसे ठीक उसी तरह से चुनाव लड़ना पडे़गा जैसा 1997 में पटवा जी के लिए चुनाव लड़ा गया था. पटवा के चुनाव में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी. यही नहीं जिस शैली में पटवा जी ने चौराहे-चौराहे पर कमलनाथ कि खिलाफ सभाएं कर उनका राजनीतिक नूर उतारा था उसने भी उनकी जीत की राह आसान की थी.

चौंकाने के लिए मशहूर भाजपा के मौजूदा नेतृत्व ने पहली सूची में भी कई चेहरों को मौका दिया. इसलिए उम्मीद है बचे हुए पांच टिकट चौंकाने वाले हो सकते हैं. मसलन, इंदौर में किसी महिला को उम्मीदवारी देने की चर्चा चल पड़ी है. चर्चा यह है कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यहां से महिला उम्मीदवार को उतारने का कहा है. देवी अहिल्या बाई की नगरी इंदौर से पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन सात बार सांसद रह चुकी हैं. महाजन जब पहली बार चुनाव लड़ीं, उसके पहले वे पार्षद थीं. तब उन्होंने देश के गृह मंत्री रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रकाश चंद सेठी को परास्त किया था. अहिल्याबाई की नगरी जहां से सात बार महिला सांसद चुनी गई हों उसे महिलाओं के लिए आरक्षित रखने के विचार के चलते ही होल्ड पर रखा गया. यदि ऐसा होता है तो मौजूदा सांसद शंकर ललवानी समेत टिकट के दूसरे पुरुष दावेदारों का मायूस होना लाजमी है. हालांकि, सियासत में जब तक फैसला नहीं हो जाए तब तक उम्मीद बनी रहती है. उसी उम्मीद के सहारे सभी बैठे हुए हैं.

भाजपा की पहली सूची में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी है. सिंधिया को उनकी परंपरागत सीट गुना-शिवपुरी से उम्मीदवारी दी गयी है. इस सीट से सिंधिया पिछला चुनाव भाजपा के के. पी. यादव से हार गए थे. तब वे कांग्रेस में थे. पांच साल बाद पूरा सीन बदल चुका है. सिंधिया भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं और जैसी कि चर्चा है के. पी. यादव कांग्रेस में जा सकते हैं. उन्हें कांग्रेस में जाने से रोकने के लिए भाजपा प्रयासरत है. सुना है उन्हें कुछ अच्छा ऑफर दिया गया है. सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा को छोड़ पार्टी ने और किसी नामचीन नेता को लोकसभा चुनाव में नहीं उतारा है. पिछले चुनाव के ब्रांडेड नेता नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, राकेश सिंह आदि विधानसभा की शोभा बढ़ा रहे हैं.

शिवराज सिंह चौहान को चुनाव में उतारने के मायने
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को टिकट देने के कई सारे सियासी मायने हैं. सबसे महत्वपुर्ण है उन्हें सूबे की सियासत से दूर करना. चौहान यदि मध्य प्रदेश में बने रहते हैं तो मौजूदा मुख्यमंत्री मोहन यादव को जमने में काफी समय लगेगा. फिर 18 साल मुख्यमंत्री रहे नेता को विधानसभा में बगैर किसी पद पर बैठा कर पार्टी को नुकसान ही होना था, इसलिए उन्हें उनकी परंपरागत विदिशा सीट से टिकट दिया गया.

मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरे शिवराज सिंह चौहान को लगभग ढाई माह हो चुके हैं. इन ढाई महीनों में पूरा सीन 360 डिग्री घूम चुका है. उनके पार्टी के प्रति और पार्टी के उनके प्रति तेवर नरम पड़ गए हैं. मध्य प्रदेश में वे इकलौते ऐसे उम्मीदवार होंगे जिन्हें विधायक रहते पार्टी ने लोकसभा का टिकट दिया है. वे भी इसलिए कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद के कुछ समय को छोड़ दिया जाए तो बचे हुए समय में वे बेहद संजीदा और संतुलित नजर आए. न वे कोप भवन में जा बैठे न ही उल जलूल बयानों से पार्टी को असहज करते नजर आए. अलबत्ता अपनी अलहदा सियासी शैली पर चलते हुए वे एक बार फिर अपनी लाइन लंबी करने के उपक्रम में जुटे रहे. कभी वे मोटिवेशनल स्पीकर दिखायी दिए, कभी पर्यावरण के प्रति चिंतित पर्यावरणविद् तो कभी गायत्री परिवार के कार्यक्रम में नशा मुक्ति् का अलख जगाते समाजसेवी. शिवराज सिंह के मिजाज में दिखे इसी बदलाव ने न सिर्फ उनके टिकट की राह आसान की बल्कि वे अपने कुछ कट्टर समर्थकों को भी चुनाव मैदान में उतरवाने में कामयाब हो पाए. विदिशा की सीट शिवराज के लिए बेहद मुफीद है. वे यहां से पांच बार जीत चुके हैं. इस बार शिवराज सिंह चौहान का पूरा जोर यहां से सर्वाधिक मतों से जीत दर्ज करने पर होगा.

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