LIC Policy Claim: 5 साल की लड़ाई के बाद में जीत मिल ही गई… कई बार ऐसा होता है कि हमारी फैमिली में किसी की डेथ हो जाती है, लेकिन किन्हीं कारणों से हमे क्लेम नहीं मिल पाता है. लेकिन आज एक पति ने अपनी पत्नी की डेथ के 5 साल के बाद में 1.57 करोड़ रुपये इंश्योरेंस क्लेम जीत लिया है. अप्रैल 2017 में महिला की ब्रेस्ट कैंसर की वजह से डेथ हो गई थी. मार्च 2018 में LIC ने महिला के पति के इंश्योरेंस क्लेम के दावे को खारिज कर दिया था.
वह एक हेल्थ प्रीमियम पॉलिसी थी, जिसमें 7 लाख रुपये का पेमेंट करने पर 1 करोड़ रुपये का कवर मिलता. इस पॉलिसी को करने से पहले मेडिकल टेस्ट और इको टेस्ट किए गए थे, जिसको 29 मार्च 2016 को मंजूरी मिल गई थी. इसके बाद में प्रीमियम का भुगतान किया गया और इसकी रसीद 30 मार्च 2016 को जारी की गई थी.
आइए आपको इस मामले से जुड़े कुछ फैक्ट्स के बारे में बताते हैं-
6 फरवरी 2016 – मृत महिला ने LIC को प्रपोजल फॉर्म जमा किया.
3 मार्च 2016 – LIC ने इको और अन्य मेडिकल टेस्ट का आदेश दिया.
29 मार्च 2016 – LIC ने पॉलिसी को मंजूरी दी. संयोगवश इसी तारीख को पॉलिसीधारक को अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
30 मार्च 2016 – इस दि 7 लाख रुपये की प्रीमियम राशि का भुगतान किया गया और एलआईसी ने इसकी रसीद जारी की. जिस अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया था, उसने बायोप्सी और अन्य टेस्ट का आदेश दिया.
31 मार्च 2016: बायोप्सी और अन्य जरूरी मेडिकल टेस्ट कराए गए.
6 अप्रैल 2016 – महिला को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
30 मार्च 2017 – पॉलिसी को एक साल के लिए रिन्यू कर दिया गया था.
28 अप्रैल 2017 – महिला की ब्रेस्ट कैंसर की वजह से डेथ हो गई.
8 मार्च 2018 – LIC ने इस तारीख को एक लेटर के जरिए बताया कि कंपनी ने इंश्योरेंस क्लेम को रिजेक्ट कर दिया है.
LIC ने क्यों रिजेक्ट किया पॉलिसी का क्लेम?
LIC ने पॉलिसी के क्लेम को रिजेक्ट करने का प्राइमरी कारण बताया कि पॉलिसीधारक ने पॉलिसी लेते समय और उसको रिन्यू कराते समय ब्रेस्ट कैंसर की जानकारी नहीं दी थी. इस खबर के बाद में मृतिका के पति को काफी निराशा हुई और उसने NCDRC में इसके खिलाफ याचिका दायर की.
कहां से शुरू हुई क्लेम की लड़ाई?
30 मार्च 2016 और 31 मार्च 2016 को मेडिकल परीक्षण किए गए, जिसके बाद उन्हें चिकित्सकीय सलाह के मुताबिक, अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी. शिकायतकर्ता के मुताबिक, बाद में पता चला कि उसकी पत्नी ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित थी. NCDRC ने कहा है कि 28 अप्रैल 2017 को उनकी मृत्यु के बाद क्लेम का दावा किया गया था. ध्यान देने योग्य बात यह है कि पॉलिसी को 30 मार्च 2017 को 7,00,000/- रुपये के प्रीमियम का फिर से भुगतान करके रिन्यू किया गया था और उस समय पर भी इंश्योरेंस कंपनी यह पता लगा नहीं पाई कि पॉलिसीधारक ने कोई जानकारी छिपाई है.
NCDRC द्वारा दिए गए तर्क का विरोध करते हुए LIC का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने कहा कि मेडिकल कंडीशन की ऐसी घोषणाएं इंश्योरेंस प्रपोजल फॉर्म के तहत खुद भरनी होती है. एलआईसी ने कहा कि यदि प्रपोजल जमा करने की तारीख के बाद ऐसी मेडिकल जानकारी पॉलिसीधारक के बारे में पता चली और बाद में भी इसका खुलासा नहीं किया गया.
शिकायतकर्ता ने दिया बयान
शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि भले ही उसकी पत्नी को बाईं ओर दर्द की वजह से 29 मार्च 2016 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उसके डिस्चार्ज होने पर अस्पताल की तरफ से कोई भी पॉजिटिव रिपोर्ट नहीं की गई थी. इसके अलावा विशेष रूप से प्रीमियम पॉलिसी जमा करने और प्राप्त करने की तारीख यानी 30 मार्च, 2016 से पहले उन्हें किसी भी पॉजिटिव स्थिति के बारे में नहीं बताया गया था. NCDRC ने कहा है कि यहां पर कोई सबूत नहीं है कि हेल्थ की कोई भी ऐसी पॉजिटिव स्थिति नहीं थी, जिसके लिए प्रपोजल फॉर्म में डिक्लेरेशन की जरूरत थी.
किस हिसाब से मिलेगा पैसा?
बीमा पॉलिसी के तहत महिला के पति को 1 करोड़ रुपये के साथ ही 9 प्रतिशत की दर से 6 साल का ब्याज भी मिलेगा. इसके अलावा मानसिक परेशानी के लिए महिला के पति को 2 लाख रुपये के साथ ही 9 फीसदी की दर से 6 साल का ब्याज भी मिलेगा. साथ ही 50,000 रुपये मुकदमे का खर्च भी मिलेगा.
कुल कितना रुपया मिलेगा?
कुल मिलाकर उन्हें 1 करोड़ रुपये और 54 लाख रुपये और (1 करोड़x9%x6 साल) का ब्याज मिलेगा. शिकायतकर्ता को 2 लाख रुपये और 1.08 लाख रुपये (2 लाखx9%x6 साल) का ब्याज भी मिलेगा. इसके अलावा, शिकायतकर्ता को मुकदमे की लागत के रूप में 50,000 रुपये भी मिलेंगे, जिससे कुल मुआवजा 1.5758 करोड़ रुपये (1,57,58,000 रुपये) हो जाएगा.