Karwa chauth: सुहागिनें साल दर साल दूर हो रहीं असल सिंदूर से, महिलाएं मांग में भर रही हैं अब यह

Married women are moving away from real vermilion year after year

पारंपरिक सूखा सिंदूर मांग में भरती भूमिका उर्फ दीक्षा
– फोटो : स्वयं

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करवाचौथ पर ब्यूटी पार्लरों से घरों तक सजने संवरने वाली सुहागिनों में बेहतर दिखने की होड़ है। सब तैयारी कर रही हैं। 500 से लेकर 2000 रुपये तक खर्च हो रहे हैं। कुछ महिलाएं इससे भी महंगा श्रृंगार करा रहीं हैं, लेकिन सुहागिनों के श्रृंगार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा सिंदूर इनसे दूर होता जा रहा है। साल दर साल इसका प्रयोग कम हो रहा है। असल सिंदूर की जगह फैशनेबुल लिक्विड सिंदूर लगाया जा रहा है, जबकि धार्मिक मान्यता के अनुसार व्रत और पूजा पाठ में केवल सूखा सिंदूर ही प्रयोग किया जाना चाहिए।

वैदिक परंपरा से विवाह कराने वाले खैर के पंडित योगेश शर्मा कहते हैं कि विवाह के दौरान सात फेरों के बाद सूखे सिंदूर से ही मांग भरी जाती है। वही सही है, लिक्विड सिंदूर का प्रयोग नहीं होता है। पूजा, पाठ और व्रत में सूखा सिंदूर ही प्रयोग करना चाहिए। सुहागिनें अनामिका अंगुली से सूखा सिंदूर मांग में भरतीं हैं। इसे लगाने से उनके मंगल ग्रह की स्थिति मजबूत होती है और तनाव दूर होता है। यह सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है। सुहागिनें ताउम्र सिंदूर लगाती है। धन-संपत्ति, सौभाग्य, संतान, वंश-वृद्धि और पति की लंबी आयु के लिए इसे मांग में भरा जाता है। इसे लगाने के बाद ही सुहागिन को घर की लक्ष्मी का दर्जा मिलता है। पूर्व में सुहागिन सूखे सिंदूर की ही बिंदी लगाती थीं, अब उसे यदाकदा ही देखा जाता है।

धार्मिक मान्यता

माता जानकी प्रभु राम की आयु की कामना के लिए सिंदूर लगाती थीं। उन्हीं को देखकर हनुमान जी ने सिंदूर लगाना शुरू किया। मंदिरों में हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। इसलिए पति की आयु की कामना के लिए सिंदूर का प्रयोग होता है। विश्व प्रसिद्ध कामाख्या शक्तिपीठ के साथ सभी मंदिरों में सिंदूर का प्रयोग सभी पूजा पाठ में होता है।

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