देश में एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर चर्चा जबरदस्त तरीके से चर्चा है। केंद्र में जब से मोदी सरकार आई है, तब से एक राष्ट्र-एक चुनाव को लेकर लगातार बातें कही जा रही हैं। इसी कड़ी में पिछले दिनों एक समिति का गठन किया गया था। इसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी गई थी। पिछले दिनों एक राष्ट्र, एक चुनाव पर 46 राजनीतिक दलों से सुझाव मांगे गए थे। अब तक 17 राजनीतिक दलों ने अपने सुझाव दिए हैं। इसके अलावा कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति को जनता से भी 21000 सुझाव मिले हैं जिसमें 81% लोगों ने देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करने पर अपने सहमति दी है। हालांकि, कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध किया है। विपक्षी दलों की ओर से साफ तौर पर कहा जा रहा है कि यह देश की संघीय विचारधारा के खिलाफ है।
इसके फायदे
देश में चुनाव कराने में बहुत ज्यादा खर्च होता है। 1951-1952 में हुए लोकसभा चुनाव में 11 करोड रुपए खर्च हुए थे। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड रुपए खर्च हुए थे। एक साथ चुनाव के समर्थकों का कहना है कि देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता बढ़ेगी। अलग-अलग चुनाव होते हैं जिसकी वजह से आचार संहिता लगता है और प्रशासनिक व्यवस्था की गति काफी धीमी हो जाती है। विकास अपनी रफ्तार नहीं पकड़ पता है। एक साथ चुनाव होने के बाद केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता भी सुनिश्चित हो सकेंगी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कह चुके हैं कि एक राष्ट्र, एक चुनाव से देश के संसाधनों की बचत होगी। विकास की गति भी धीमी नहीं पड़ेगी। अगर एक साथ चुनाव कराने की बात बनती है तो संविधान में संशोधन करना होगा।
एक साथ चुनाव का विचार संविधान की मूल संरचना के खिलाफ: कांग्रेस
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विषय पर सरकार द्वारा गठित उच्चस्तरीय समिति को पत्र लिखकर कहा है कि संसदीय शासन व्यवस्था को अपनाने वाले देश में एक साथ चुनाव की अवधारणा के लिए कोई स्थान नहीं है तथा यह संविधान की मूलसंरचना के खिलाफ है तथा उनकी पार्टी इस विचार का पुरजोर विरोध करती है। खरगे नेकहा कि एक साथ चुनाव कराने का विचार संविधान की मूल संरचना के विरुद्ध है और यदि एक साथ चुनाव की व्यवस्था लागू करनी है तो संविधान की मूल संरचना में पर्याप्त बदलाव की आवश्यकता होगी। उन्होंने पत्र में कहा, ‘‘जिस देश में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई हो, वहां एक साथ चुनाव की अवधारणा के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार द्वारा एक साथ चुनाव के ऐसे प्रारूप संविधान में निहित संघवाद की गारंटी के खिलाफ हैं।’’
‘एक देश, एक चुनाव’ अस्वीकार्य : ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कहा कि भारत के संघीय ढांचे के मद्देनजर एक देश, एक चुनाव का विचार व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। ममता ने भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) से इस मामले को बहुत ही तर्कसंगत रूप से देखने का अनुरोध किया। ममता ने अलग-अलग राज्यों की क्षेत्रीय समस्याओं और उनकी कई नीतियों की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा, भारत एक संघीय ढांचा है। हमारे यहां अलग-अलग धर्म हैं। हमारी विविधता में एकता है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग क्षेत्रीय समस्याएं हैं, वहां अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। कुछ को स्थिर सरकार मिलती है तो कुछ को नहीं। इन दिनों सरकारें खरीदी जा रही हैं। इसलिए समस्याएं हैं।
लोकतंत्र के विचार को पहुंचाएगा नुकसान: AAP
आम आदमी पार्टी (आप) ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा का विरोध करते हुए कहा है कि एक साथ चुनाव संसदीय लोकतंत्र के विचार को नुकसान पहुंचाएंगे क्योंकि यह त्रिशंकु विधानसभाओं से निपटने में असमर्थ है और सक्रिय रूप से दल-बदल विरोधी और विधायकों और सांसदों की खुली खरीद-फरोख्त की बुराइयों को बढ़ावा देगा। AAP के राष्ट्रीय सचिव पंकज गुप्ता ने कहा कि ओएनओई के कार्यान्वयन के साथ, संघ स्तर पर सत्तारूढ़ पार्टी को क्षेत्रीय पार्टियों और राज्यों में केंद्र-सत्तारूढ़ पार्टी से लड़ने वाली अन्य पार्टियों पर अनुचित लाभ मिलता है।