Jaipur News: राजधानी के अस्पतालों की गलियों में भटकते एक माता-पिता अपनी नन्हीं जान को बचाने के लिए हरेक प्रयत्न कर चुके हैं. उसकी दुर्लभ बीमारी को ठीक करने के लिए उनके सामने सबसे बड़ी आर्थिक चुनौती बाधा बन रही है.
बच्चे के इलाज के लिए परिजनों को 4 महीने में 17 करोड़ रूपए जुटाने है. आर्तिक तंगी के कारण इतनी बड़ी रकम का इतजाम करना उनके लिए मुश्किल है. अपने बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए माता- पिता आम लोगों और नेताओं के साथ ही सीएम और पीएम से भी गुहार लगा रहे हैं, जिससे सरकार मदद करें तो बच्चे की जान बच जाए.
18 माह का है बच्चा
जयपुर के 18 माह के अर्जुन को आज फिर एक कृष्ण जैसे सारथी की जरूरत है, जो उसकी जिदंगी की नाव का खेवनहार बन सके. अर्जुन 18 महीने का है जो दुर्लभ स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी टाइप वन से ग्रसित है. इस बीमारी के चलते हर गुजरते दिन अर्जुन के लिए मुश्किल भरा हो जाता रहा हैं.
बच्चे के पैरों में पहले हुई था कमजोरी महसूस
अर्जुन एक स्वस्थ बच्चे की तरह पैदा हुआ. लेकिन तीन महीनों के बाद उसके परिजनों ने बच्चे के पैरों में कमजोरी महसूस की लेकिन छह महीने बाद भी पैरों में वीकनेस बनी रही. पिछले एक साल से बच्चे की तबीयत बिगड़ती गई और वीकनेस पूरे शरीर में हो गई. करीब आधा दर्जन डॉक्टरों को दिखाने के बाद जब टेस्ट कराया तो मालूम चला कि एसएमए टाइप वन बीमारी है. अुर्जन के पिता को बच्चे की बीमारी को डायगनोस करने में एक साल तक का वक्त लग गया. मानसरोवर निवासी पंकज जांगिड़ एक प्राइवेट कंपनी में काम करते है. माता पूनम जांगिड़ सरकारी स्कूल में लैब असिस्टेंट हैं. दोनो के लिए अब यह करोड़ों रुपए जमा करना किसी तरह से मुमकिन नहीं हो पा रहा हैं.
डायगनोस करने में लगा एक साल तक का वक्त
अुर्जन के पिता को बच्चे की बीमारी को डायगनोस करने में एक साल तक का वक्त लग गया. मानसरोवर निवासी पंकज जांगिड़ एक प्राइवेट कंपनी में काम करते है. माता पूनम जांगिड़ सरकारी स्कूल में लैब असिस्टेंट हैं. दोनो के लिए अब यह करोड़ों रुपए जमा करना किसी तरह से मुमकिन नहीं हो पा रहा हैं.
स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी टाइप वन से है अर्जुन पीड़ित
जेके लॉन हॉस्पिटल के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर प्रियांशु माथुर ने बताया यह एक रेयर डिजीज है जो लाखों में एक को होता है. यह बीमारी अक्सर माता-पिता से बच्चों में ट्रांसफर होती हैं. यह बीमारी किसी भी उम्र हो सकती है. चाहे बुढ़ापे में या दो माह के बच्चे को साथ ही इस बीमारी के लिए अमेरिका से इंजेक्शन मंगवाना पड़ेगा. जिसकी कीमत 16 करोड़ रुपए है और इंजेक्शन मिल भी जाए तो इसे खास तौर पर लगवाया जाता हैं. यह इंजेक्शन सिर्फ अमेरिका में ही मिलता है. एसएमए एक जेनेटिक बीमारी है.
16 करोड़ रुपए एक इंजेक्शन की कीमत
इस बीमारी से बचाव के लिए जोलजेन्स्मा नाम का इंजेक्शन दिया जाता है. जो अमेरिका की एक कंपनी बनाती है. जिसकी कीमत 16 करोड रुपये है. इसके अलावा इसे भारत लाने में टैक्स आदि जोड़कर सत्रह से करोड़ से ज्यादा का खर्च लगता हैं. यह बीमारी तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है. इसका इलाज भी केवल बच्चे के दो वर्ष तक होने तक हो पाता है. डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे के माता-पिता क्राउड फंडिंग की मदद से पैसे जुटाने की कोशिश कर रहे हैं.बच्चे के माता- पिता ने कहा कि अब आम जनता और सरकार की मदद से ही इलाज संभव हो सकता है. इतने पैसे जुटाना हमारे लिए मुश्किल है.
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