
ज्ञानवान बनाने वालों को नहीं था क्या ज्ञान?
एमपी में सरकारी स्कूलों की इन दिनों व्यवस्थाएं किसी रैन बसेरों से कम नहीं आंकी जा सकती। धुआंधार अंदाज में सरकार ने स्कूल शिक्षकों के लिए तबादला नीति क्या जारी हुई कि टीचर्स से स्कूल के स्कूल खाली हो गए। कुछ जगहों पर जहां नए टीचर की ज्वाइनिंग होना है, तो वह भी अधर में लटकी हुई है। बच्चे स्कूल पहुंच रहे है तो दिन भर सिर्फ खेल-कूद कर घर लौट जाते है। जानकर बोल रहे है कि तबादला नीति लागू करने के पहले क्या विभाग को क्या ऐसी स्थितियों का ज्ञान नहीं था क्या?

9 स्कूल में एक भी शिक्षक नहीं बचा
जबलपुर में हाफ ईयरली एग्जाम के पहले जो जानकारी सामने आई है, वह बेहद चौकाने वाली है। करीब 200 स्कूल ऐसे है जहां सिर्फ एक शिक्षक बचा और दर्जनों क्लास के साथ हजारों बच्चे है। वहीं नौ स्कूल तो शिक्षक विहीन हो गए। यानि तबादला नीति के बाद इन स्कूलों पदस्थ शिक्षकों ने दूसरे स्कूलों में तबादला ले लिया लेकिन इन स्कूलों के लिए दूसरे शिक्षकों ने रूचि ही नहीं दिखाई। स्कूल रोज लग रहे है, बच्चे आ रहे है लेकिन टीचर की जगह सिर्फ अब चपरासी है।

जब पढ़ाई ही नहीं तो ख़ाक देंगे परीक्षा
करीब डेढ़ महीने से जबलपुर के दो सौ स्कूलों की पढ़ाई ठप है। जनवरी में शिक्षक विभाग ने अर्ध वार्षिक परीक्षा का टाइम टेबल घोषित कर दिया है। परीक्षा का कोर्स पूरा नहीं हुआ और बच्चों को परीक्षा में शामिल होने कहा गया है। आशीष राजपूत नाम के अभिभावक के बेटा-बेटी भी ग्रामीण क्षेत्र मुकुनवारा के स्कूल में पढ़ते है। उनका कहना है कि जब स्कूल में टीचर ही नहीं तो क्या अब चपरासी बच्चों की परीक्षा लेंगे? उनको अपने बच्चों के भविष्य का डर सता रहा है।

DEO बोले अतिथि शिक्षकों का होगा इंतजाम
स्कूलों की ऐसी स्थिति सामने आने के बाद शिक्षा विभाग में हड़कंप है। आला अधिकारी किसी भी तरह की जिम्मेदारी लेने तैयार नहीं है। इस सिलसिले में जब जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी से बात की गई तो उनका कहना है कि तबादला नीति पूरे प्रदेश के लिए जारी हुई थी। अब एक साथ सभी ने स्थानांतरण ले लिया तो उसमें किसी का बस नहीं है। शिक्षक विहीन और जिन स्कूलों में एक टीचर है, वहां अतिथि शिक्षकों की पूर्ति की जाएगी। जिले की मौजूदा रिपोर्ट शासन को भी भेजी गई है।

ट्रांसफर नीति में ये हुआ गड़बड़झाला
दरअसल विभाग द्वारा जब ट्रांसफर के शिक्षकों को फॉर्म भरने कहा गया, तो पोर्टल पर शिक्षकों को उनके मनमाफिक स्कूलों में पोस्ट खाली दिखाई गई। उन्होंने च्वाइस फिलिंग कर दी। जबकि वास्तविकता यह थी, संबंधित स्कूलों में रिक्त पद थे ही नहीं। मुख्यालय स्तर से भी ऐसे आवेदनों को मंजूरी दे दी गई। अब शिक्षा अपने ही आदेशों के बीच खुद उलझ गया है। उसे क़ानूनी अड़चनों का भी खतरा है कि यदि किसी टीचर का तबादला रद्द किया तो उसे कोर्ट के चक्कर काटने पड़ सकते है।