इन दिनों इजराइल में युद्ध की स्थिति बनी हुई है। इजराइल और हमास के बीच जारी गतिरोध का असर सिर्फ इन दोनों देशों ही नहीं बल्कि पूरे विश्व पर देखने को मिल सकता है। इजराइल और फिलिस्तीन के आतंकवादी समूह हमास के बीच जारी युद्ध के कारण मध्य पूर्व की भू राजनीतिक स्थिरता पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे है। कच्चे तेल पर निर्भरता और इजरायल के साथ मजबूत व्यापार संबंधों को देखते हुए यह स्थिति भारत के लिए भी चिंताजनक है।
वहीं विश्व में किसी भी देश में होने वाले सकारात्मक या नकारात्मक चीजों का असर दुनिया के अन्य देशों पर भी होता है। वर्तमान में भारत रूस और यूक्रेन के बीच हुए युद्ध के नुकसान से उबर ही रहा था कि अब इजराइल और फिलीस्तीन के बीच युद्ध की शुरुआत हो गई है। वही उद्योग जगत की जानकारों की मानें तो दोनों देशों के बीच होने वाले इस युद्ध का असर लंबे समय में देखने को मिल सकता है कि बेहद नकारात्मक होने वाला है।
हालांकि वर्तमान में इस युद्ध का असर देखने को नहीं मिलेगा। दोनों देशों के बीच हो रहे इस युद्ध का असर सोने और चांदी के दामों पर दिखेगा। कुछ ही दिनों में त्योहारों का मौसम अपने चरम पर होगा और इस दौरान सोनी और चांदी की खरीदारी जमकर की जाती है। वही युद्ध के असर के कारण सोना चांदी खरीदने के लिए लोगों की जेब पर अधिक असर पड़ सकता है।
जानकारों की माने तो युद्ध अगर पूरे पश्चिम एशिया में फैला तो कच्चे तेल की आपूर्ति करना बड़ी चुनौती का रूप ले सकता है। घरेलू शेयर बाजार के निवेशक पहले से ही चल रहे संघर्ष से डरे हुए हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि आगे कोई भी तनाव व्यापक भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
इस संघर्ष का तत्काल प्रभाव तेल की कीमतों इजाफे के रूप में देखने को मिलेगा। अब, इससे भारत पर गहरा असर पड़ रहा है क्योंकि यह कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है। जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो अक्सर हर चीज की कीमतें बढ़ जाती हैं और यह उस देश के लिए अच्छी खबर नहीं है जो तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है। यह मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है और आर्थिक विकास को धीमा कर सकता है। मास्टर कैपिटल सर्विसेज लिमिटेड के निदेशक पल्का अरोड़ा चोपड़ा ने कहा कि मध्य पूर्व में बढ़ते भूराजनीतिक जोखिम से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। इसका तेल बाजारों पर स्थायी और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से तेल आपूर्ति में निरंतर कमी आ सकती है। कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से घरेलू मुद्रास्फीति प्रभावित हो सकती है और ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंची रह सकती हैं।