चरमपंथी संगठन हमास ने इजरायल पर हमला किया तो दुनिया के तमाम पश्चिमी देश इजरायल के साथ खड़े नजर आए। भारत भी उनमें से एक रहा। वो इजरायल और वहां के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा। पीएम मोदी ने इजरायल के समर्थन में ट्वीट भी किया और नेतन्याहू से फोन पर बात भी की। पांच दिनों बाद भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से आधिकारिक टिप्पणी आई। विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि भारत फलस्तीन के संप्रभु और स्वतंत्र राज्य की स्थापना के लिए लंबे समय से अपने समर्थन में विश्वास करता है। अरब दुनिया भर में पीएम मोदी के इजरायल के समर्थन वाले ट्वीट रीट्वीट हो रहे हैं, इसके साथ ही दावा किया जा रहा है कि नेतृत्व स्तर पर इज़राइल-फिलिस्तीन पर भारत के विदेश मंत्रालय और पीएम मोदी के बयान अलग-अलग हैं।
इजरायल की ओर शिफ्ट हो रही भारत की कूटनीति
आईआईएसएस में मध्य पूर्व विशेषज्ञ हसन अलहसन ने हमास के हमले के कुछ ही घंटों के भीतर भारतीय प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर ट्वीट करके बहुत पक्षपातपूर्ण, बहुत स्पष्ट रुख अपनाया कि भारत इज़राइल के साथ एकजुटता में खड़ा है। उन्होंने इस रुख से संभावित नतीजों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत ने अब इजरायल की प्रतिक्रिया के साथ अपनी प्रतिष्ठा जोड़ ली है। अलहसन के इस विचार से सहमति जताते हुए आईआईएसएस में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अब्दुल खालिद अब्दुल्ला ने भारत की स्थिति लंबे समय तक फिलिस्तीनी मुद्दे के साथ एकजुटता में थी। फिर इज़राइल को मान्यता देने और उसके साथ रणनीतिक संबंधों को गहरा करने की दिशा में धीरे-धीरे बदलाव आया। आज, यह पूरी तरह से इज़राइल के साथ शिफ्ट हो चुका है। यहां तक कि गाजा के खिलाफ अपनी आक्रामकता के लिए समर्थन की घोषणा करने के बिंदु तक खुद को इसके साथ जोड़ना शुरू कर दिया गया है।
अरब देशों में प्रवासी भारतीयों पर पड़ेगा असर
इसके अलावा, अरब जगत भारत को जिस स्थिति में देखता है, उसका मध्य पूर्व या पश्चिम एशिया में रहने वाले विशाल भारतीय प्रवासियों पर प्रभाव पड़ सकता है। अलहसन ने भारत की घरेलू राजनीति खाड़ी में प्रवासी भारतीयों तक फैलने पर सांप्रदायिक तनाव बढ़ने पर चिंता जताई। उन्होंने 2020 में भारतीय सुदूर दक्षिणपंथियों द्वारा मुस्लिम विरोधी भावनाओं में वृद्धि को याद किया जिसने खाड़ी में एनआरआई (अनिवासी भारतीयों) को प्रभावित किया। अगर घरेलू राजनीति पर भारत की अपनी स्थिति प्रवासी भारतीयों में फैलती है, तो हम सांप्रदायिक तनाव में वृद्धि देख सकते हैं। इसलिए हमने इसे 2020 में देखा जब भारत में धुर दक्षिणपंथियों द्वारा भारतीयों द्वारा पैदा की गई मुस्लिम विरोधी भावनाएं प्रवासी भारतीयों, खाड़ी देशों में फैल गईं और प्रवासी भारतीयों द्वारा टिप्पणियां और सोशल मीडिया पोस्ट किए गए। खाड़ी और इससे लोगों की सामुदायिक प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई जो कह रहे हैं कि खाड़ी देशों को इसे बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
पीएम मोदी और विदेश मंत्रालय का बयान
सोशल मीडिया पर प्रभावशाली लोगों और अरबों द्वारा इस तर्ज पर ट्वीट किए गए हैं। एक हैंडल ने लिखा गया कि वे हमारे बीच और हमारे साथ रहते हैं और दुर्भाग्य से वे ( प्रवासी भारतीय) खाड़ी देशों में बहुसंख्यक बन गए हैं। वे इजरायल और उसके अत्याचार की तुलना में अरबों के लिए अधिक खतरा हैं। भारत आने वाला खतरा है, जो बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने 7 अक्टूबर को एक्स सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा था कि ‘इजरायल में आतंकी हमलों की खबर से गहरा सदमा लगा है. हमारी संवेदनाएँ और प्रार्थनाएँ निर्दोष पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। हम इस कठिन समय में इज़राइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं। केवल पाँच दिन बाद ही भारत ने फ़िलिस्तीन पर भारत की स्थिति पर अपनी पहली विस्तृत टिप्पणी दी। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 12 अक्टूबर को अपनी साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि फिलिस्तीन के सवाल पर भारत हमेशा से ही दृढ़ रहा है। इस संबंध में हमारी नीति दीर्घकालिक और सुसंगत रही है। भारत ने हमेशा इजरायल के साथ शांति से सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य की स्थापना के लिए सीधी बातचीत फिर से शुरू करने की वकालत की है। वैसे भारत की तरफ से आया बयान अरब देशों को कुछ अटपटा लगा। जापान टाइम्स के कॉलमिस्ट कुनी मियाके ने कहा कि सोशल मीडिया पर पीएम मोदी का बयान अरब जगत को लेकर भारत के पारंपरिक संबधों के संदर्भ में अप्रत्याशित है।