कुंदन कुमार/गया. आमतौर पर लोग अपनी नौकरी से वीआरएस लेने के बाद राजनीति ज्वाइन करते हैं. लेकिन बिहार के गया जिले के रहने वाले एक पूर्व इंडियन रिवेन्यू सर्विस (IRS) अधिकारी ने नौकरी से वीआरएस लेकर गौ सेवा शुरू किया है. वजीरगंज के रहने वाले सुचित कुमार ने साल 1992 में IRS ज्वाइन किया था. लगभग 14 वर्षों तक इन्होंने इसमें अपनी सेवा दी. उसके बाद 2006 में इन्होंने इस नौकरी को अलविदा कह दिया. इनका सपना था कि वह किसी के नौकर नहीं बल्कि मालिक बनकर काम करें. समाज के साथ जुडे रहें और लोगों को रोजगार मिले. सनातन धर्म का प्रचार प्रसार हो यही सोचकर इन्होंने गांव आकर गौसेवा आश्रम की शुरुआत कर दी.
गौ सेवा आश्रम खोला, 5-6 लोगों को दिया रोजगार भी
इनके दादाजी और पिताजी भी पशुपालन से जुड़े हुए थे. जिस कारण इनके भी रुचि पशुपालन में ही दिखी. पिछले 10 वर्षों से बड़े पैमाने पर गुजरात के गिर के जंगलों में पाए जाने वाले देसी नस्ल गिर गाय का पालन कर रहे हैं. वजीरगंज-फतेहपुर रोड में शांति गौ सेवा आश्रम चला रहे हैं. जहां पर लगभग 50 की संख्या में गिर गाय मौजूद है. इसके अलावा ये भीलवाड़ा में लगभग 150 गिर गाय का पालन कर रखे हैं. नौकरी से वीआरएस लेने के बाद कुछ साल तक सुचित एनजीओ से जुड़े रहें.
उसके बाद गांव में ही गौ सेवा आश्रम खोल दिया. आज इनके गौ सेवा आश्रम में 5-6 लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है.
दूध नहीं बेचते हैं घी
गिर गाय का दूध काफी महंगा होता है. इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं. हालांकि इनके आश्रम में दूध की बिक्री नहीं होती है. गाय के दूध से घी तैयार किया जाता है. जिसकी बाजार में कीमत लगभग 5 हजार रुपए से लेकर 8 हजार रुपए प्रति लीटर है. इनके गौ सेवा आश्रम में किसी भी गाय को नहीं बांधी जाती और सभी खुले रहते हैं. सिर्फ दूध निकालने के समय उन्हें बांधा जाता है. इन्होंने सभी गायों का नाम भी रखा हुआ है.
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लोकल 18 से बात करते हुए सुचित कुमार बताते हैं कि गिर गाय को पालने में काफी ज्यादा फंड की जरुरत होती है. हमारे यहां प्रतिदिन 3 क्विंटल अनाज का खपत होता है. इसके अलावे सालोभर गौ माता को हरा चारा दिया जाता है. इन्होंने बताया कि कई ऐसे गरीब किसान जो देसी गाय को पालना चाहते हैं, उन्हें यहां से निशुल्क बछिया दी जाती है, ताकि देसी गो वंश को फैलाया जा सके.
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उन्होंने बताया कि अगर सही से देसी गोवंश का देखभाल किया जाए, तो 1 साल में गाय एक बच्चा देती है और लगभग 15 साल तक वह बच्चा देती है.
देवी-देवताओं के नाम पर रखा है इनका नाम
सुचित बताते हैं कि देसी गोवंश का दूध काफी महंगा होता है और बाजारों में इसकी कीमत ₹120 से लेकर 150 रुपए प्रति लीटर है. इन्होंने बताया कि बछड़ों को दूध पिलाने के बाद प्रतिमाह 100 लीटर घी का उत्पादन हो जाता है और जो भी घी प्रेमी होते है वह श्रद्धा से इसकी घी को ले जाते हैं. बिना किसी प्रचार प्रसार के इसके घी को लोग 5-7 हजार रुपए लीटर खरीदकर ले जाते हैं.
कई ऐसे माता-बहनें आती हैं जो इस गाय के देखभाल के लिए 50 हजार एक लाख रुपया दान देकर जाती है. उन्होंने सभी गौमाता का नाम भी रखा है और सभी का नाम देवी-देवताओं के नाम पर ही रखा गया है.
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FIRST PUBLISHED : December 21, 2023, 11:27 IST