वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि भारत के संविधान में 22 पार्ट हैं और उनमें 22 चित्र भी थे। उन्होंने कहा कि पार्ट-3 जोकि मौलिक अधिकारों की बात करता है उस पर पुष्पक विमान पर बैठे भगवान श्रीराम, माता जानकी और श्रीलक्ष्मण का चित्र था।
भगवान श्रीराम के 14 वर्षों का वनवास काट कर अयोध्या लौटने की खुशी में देशवासी दीपावली का त्योहार मनाते हैं। घरों-मंदिरों में राम जानकी का पूजन किया जाता है, जय श्रीराम का जयघोष किया जाता है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के दिखाये गये मार्गों पर चलने का संकल्प लिया जाता है। देखा जाये तो कण-कण में और मन-मन में राम हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक समय भारत के संविधान में भी श्रीराम और माता जानकी का चित्र था? सवाल यह है कि अगर वह चित्र था तो उसे संविधान से क्यों और किसने हटाया? क्या राम राज्य की संकल्पना को खत्म करने और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को नुकसान पहुँचाने के लिए यह कदम उठाया गया? आज चूंकि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती भी है इसलिए यह सवाल और प्रासंगिक हो जाता है कि आखिर क्यों उन्होंने भारतीय सनातन संस्कृति को किनारे करने का प्रयास किया?
इस बारे में भारत के पीआईएल मैन के रूप में जाने जाने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि भारत के संविधान में 22 पार्ट हैं और उनमें 22 चित्र भी थे। उन्होंने कहा कि पार्ट-3 जोकि मौलिक अधिकारों की बात करता है उस पर पुष्पक विमान पर बैठे भगवान श्रीराम, माता जानकी और श्रीलक्ष्मण का चित्र था। वह चित्र कह रहा था कि संविधान का लक्ष्य है राम राज्य की स्थापना। उन्होंने कहा कि अगर संविधान में वह पुष्पक विमान वाला चित्र रहने दिया गया होता तो यह बाद में संविधान में सेकुलर शब्द जोड़ ही नहीं पाते। उपाध्याय ने कहा कि अब अगर वह पन्ना फाड़ा जाता तो बवाल हो जाता। उन्होंने कहा कि इसलिए आगे जाकर बेटी इंदिरा गांधी को जो काम करना था यानि संविधान में सेकुलर शब्द जोड़ना था उसके लिए पिताजी पहले ही आधार बनाकर चले गये थे।
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