IAS बनने का सपना, ठंड में जर्सी और चप्पल का किया त्याग;स्वच्छता को बनाया जुनून

अनुज गौतम / सागर. इधर फलक को है ज़िद बिजलियां गिराने की, उधर हमें भी है धुन यहीं आशियाना बनाने की…. यह पंक्तियां सागर के उस नौजवान पर सटीक बैठती है, जिसके सामने चुनौतियां तो कई हैं लेकिन वह डटकर उनका मुकाबला कर रहा है. 19 साल के युवक ने स्वच्छता के प्रति जनता को जागरूक करने के लिए जूते चप्पल पहनना, कड़कड़ती ठंड में भी जर्सी नहीं पहनाना और चिकन खाने का त्याग कर दिया है. पिछले 3 साल से वह रोजाना सुबह शाम साइकिल से शहर की गलियों में निकालकर स्वच्छता अभियान चला रहा है.

दरअसल, सागर के भैंसा गांव में रहने वाला 19 साल के आफताब के पिता का सपना था कि वह आईएएस बने, लेकिन साल 2019 में उनका हार्ट अटैक आने की वजह से निधन हो गया. इसके बाद आफताब ने पिता के सपने को सच करने के लिए कलेक्टर बनने का हौसला और मेहनत जारी रखी है. इसके साथ ही खुद के नाम में भारतीय जोड़ते हुए उसने स्वच्छता का बीड़ा अपने कंधों पर उठा लिया. वह रोजाना सुबह 8:00 बजे से 12:00 तक अपनी साइकिल से शहर की सड़कों पर निकलता है. रास्ते में नालियों में जो भी पॉलिथीन पड़ी मिलती है उसे बोरियों में भरकर ले जाता है . लोगों से अपील करता है कि गुटका, चिप्स, चाय के डिस्पोजल को डिब्बों में ही फेंके और देश को स्वच्छ बनाने में अपना सहयोग दें.

आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं
आफताब का कहना है कि आर्थिक स्थिति इतनी ठीक नहीं है कि वह सफाई अभियान चला सकें, लेकिन स्वच्छ भारत बनाने का सपना उसे यह हौसला दे रहा है. इस अभियान में वह किसी से एक पैसे का भी कोई सहयोग नहीं लेता है. वहीं साइकिल माइक और जो फोटो कॉपी उसने अपने साथ ले रखी है वह शादी कार्यक्रमों में बर्तन धोने से जो पैसे मिले उससे खरीदी है. रात में वह केवल 8 घंटे पढ़ाई करता है. केवल चार घंटे ही सोता है. 24 घंटे का पिछले तीन साल से एक ही शेड्यूल है. कोरोना काल में भी उसने अपना यह अभियान जारी रखा.

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