IAF में फाइटर पायलट… हादसे के दौरान देखा कुछ ऐसा कि अब दुनिया में है बड़ा नाम

तनुज पांडे/नैनीताल: देवभूमि उत्तराखंड के कण-कण में देवों का वास है. देवभूमि साधु संतों की भूमि है. यहां कई साधु संतों ने तप किया है, जिनके चमत्कार आज भी देखे जाते हैं. ऐसे ही एक संत हैं पायलट बाबा, जो भारतीय वायुसेना में फाइटर पायलट भी रह चुके हैं. बाबा के भव्य आश्रम भारत समेत दुनिया के कोने कोने में हैं. वहीं, नैनीताल से 10 किलोमीटर की दूरी पर भवाली-ज्योलीकोट राष्ट्रीय राजमार्ग के बीच में गेठिया नामक स्थान पर पायलट बाबा का भव्य आश्रम स्थित है. इस आश्रम में कुल 150 कमरे हैं. साथ ही यहां भगवान शिव, जगदम्बा माता का भव्य मंदिर के साथ ही भव्य ध्यान केंद्र भी स्थित है. दुनियाभर में रहने वाले पायलट बाबा के अनुयायी यहां आकर ध्यान, पूजा पाठ करके शांति का अनुभव करते हैं. पायलट बाबा भी इस आश्रम में साल में एक से दो बार आते हैं. पायलट बाबा के उत्तरकाशी, हरिद्वार, पिंडारी, गुजरात, रायबाला, सासाराम (बिहार) समेत दुनियाभर में कई भव्य आश्रम बने हुए हैं.

पायलट बाबा आश्रम के कर्मचारी राहुल ने बताया कि पायलट बाबा का जन्म बिहार के रोहतास जिले के सासाराम में हुआ था. उनका नाम कपिल था. उन्होंने काशी विश्व हिंदू विश्वविद्यालय से ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में एमएससी की शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद वह भारतीय वायुसेना में बतौर पायलट भर्ती हो गए. पायलट बाबा ने साल 1962 में भारत-चीन युद्ध लड़ा था. इसके बाद 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की ओर से युद्ध भी लड़ा था.

एक हादसे ने किया ह्रदय परिवर्तन

राहुल बताते हैं कि एक बार पूर्वोत्तर में पायलट बाबा बतौर पायलट मिग 21 उड़ा रहे थे. वापस लौटते समय विमान में तकनीकी खराबी आ गई और अचानक उनका नियंत्रण विमान से खो गया. काफी कोशिश के बाद भी विमान नहीं संभला. ऐसी स्थित में अगर विमान क्रैश करता, तो उनका बचना तकरीबन नामुमकिन था. तभी उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु को याद किया. इसके बाद उन्हें लगा कि उनके गुरु हरि बाबा उनके साथ विमान में मौजूद हैं. इसके बाद पायलट बाबा विमान को बेस पर सुरक्षित उतारने में सफल रहे. यहां से उन्होंने तय किया कि वह अब आगे आध्यात्मिक जीवन यापन करेंगे. पायलट बाबा ने मिग विमान हादसे से बचने के बाद 36 साल की उम्र में भारतीय वायुसेना से रिटायरमेंट ले लिया. बताया जाता है कि इसके बाद उन्होंने हिमालय में 16 साल तपस्या की. आज भारत, अमेरिका, यूरोप, जापान सहित दुनियाभर में उनके हजारों अनुयायी हैं.

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