History of Houthis Part 1 | स्टूडेंट मूवमेंट के तौर पर हुई शुरुआत, यमन में 30 सालों से एक्टिव हूती कौन हैं? | Teh Tak

अल्लाह सबसे महान है, अमेरिका के लिए मौत, इज़राइल के लिए मौत, यहूदियों को शाप, इस्लाम की जीत” 

ये हूती आंदोलन का नारा है। एक छोटी विद्रोही सेना जो अब यमन के 70 प्रतिशत हिस्से पर शासन करती है। सऊदी अरब व इजरायल के खिलाफ बेहतर युद्ध लड़ रहे हैं। कोई बगावत करता है और समूह में करता है तो विद्रोही गुट के नाम से पहचाना जाता है। लेकिन अगर कोई बगावत गुट को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया जाए तो क्या हो, तेल, परमाणु हथियार, शिया-सुन्नी, अरब सागर जिद और भी हैं पहलू और भी हैं। हूती कौन हैं और आख़िर ये क्या चाहते हैं। 

मिडिल ईस्ट में यमन नाम का देश है, जिसके उत्तर में सऊदी अरब है और पूर्व में ओमान की सीमा है। बाकी दिशाओं में फैला है विशाल समुद्र। यमन के उत्तर पश्चिम में सैना नामक शहर है। 1990 के दशक में यहां पर द बिलिविंग यूथ नाम से एक छात्र आंदोलन शुरू हुआ। इसके फाउंडर का नाम बेद्दीन हुसैन अल हूती था। इस संगठन का मतलब जैदी इस्लाम का पुनर्जागरण था। दरअसल, ज़ैदी या ज़ैदिय्या शिया इस्लाम के एक संप्रदाय को कहते हैं जो मुख्यतः अधिकांश यमन मे एवं ईराक, ईरान, भारत, पाकिस्तान में थोडा जनसंख्या में मौजूद है। भारत मे यह मुख्यतः मुज़्जफरनगर जिले के आस पास सादात ए बाहरा के गांवों में मौजूद है। ये सम्प्रदाय चौथे इमाम हज़रत जै़नुलआबेदीन के पुत्र हज़रत ज़ैद की औलाद में से है। यमन में एक हजार सालों तक जैदी राजाओं का शासन रहा। 1962 में आखिरी जैदी सुल्तान इमाम अहमद की हत्या हुई और इसके बाद सिविल व़ॉर शुरू हुआ। इसके बाद यमन दो हिस्सों में बंट गया। फिर कुछ समय के लिए साउथ यमन में सोवियत संघ की हवा भी चली। फिर 1978 में उत्तरी यमन में एक आर्मी के अफसर अली अब्दुल्ला सालेह को राष्ट्रपति बनाया गया। उनके दौर में उत्तरी और दक्षिणी यमन के बीच फिर से लड़ाई हुई। जिसमें हजारों लोग मारे गए। 1980 का दशक आया तो सोवियत संघ कमजोर पड़ने लगा औऱ उसके गुट में शामिल देश बगावत करने लगे। यूटोपिया का सपना चकनाचूड़ हो चुका था और इसका असर यमन में भी नजर आया। उत्तरी और दक्षिणी यमन एक हो गए और ये रिपब्लिक ऑफ यमन कहलाया। अली अब्दुल्ला सालेह की सत्ता पर कोई आंच नहीं आई थी। इस सत्ता में सालेह को सऊदी और अमेरिका का भरपूर साथ मिला। 

इन सब के बीच जैदी शिया मुस्लिम हाशिए पर चले गए। एक वक्त के सुल्तान मुफलिसी का जीवन जीने को मजबूर थे। देश की राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व लगातार घटता जा रहा था। ऐसे में अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बेद्दीन हुसैन अल हूती ने बिलिविंग यूथ नाम से एक स्टूडेंट मूवमेंट चलाया। सना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अहमद अद्दागाशी के अनुसार, हूती एक उदारवादी धार्मिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ जो सहिष्णुता का उपदेश देता था और सभी यमनी लोगों के प्रति व्यापक दृष्टिकोण रखता था। समर कैंप और कल्ब बनाकर इसने अपनी तरफ युवाओं को खींचा। 1994-1995 तक, 15-20,000 छात्रों ने बिलिविंग यूथ समर कैंप में भाग लिया था। धार्मिक सामग्री में मोहम्मद हुसैन फदलल्लाह (एक लेबनानी शिया विद्वान) और हसन नसरल्लाह (लेबनान की हिजबुल्लाह पार्टी के महासचिव) के व्याख्यान शामिल थे। 

एक तरफ यमन सरकार सुन्नी सऊदी और अमेरिका सरकार के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ा रही थी। वहीं जैदी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे। अपने लिए संसाधनों और अधिकारों की मांग कर रहे थे। लेकिन सालेह सरकार ने इन मांगों को अनसुना कर दिया। इससे नाराज बेद्ददीन अल हूती ने रैलियां निकालना शुरू की। इन रैलियों में भारी भीड़ आना शुरू हो गई। इससे तनाव बढ़ने लगा और सरकार ने अल हूती के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट निकाल दिया। बिलिविंग यूथ के युवाओं ने अमेरिकी विरोधी और यहूदी विरोधी नारे अपनाए, और जुमे की नमाज के बाद सना में सालेह मस्जिद में लगाए। ज़ैद के अनुसार, हूती के नारे की गूंज ने अधिकारियों का ध्यान अपनी ओर खींचा। हूती आंदोलन के प्रभाव की सीमा पर सरकार की चिंताएं और बढ़ गईं। सुरक्षा अधिकारियों ने सोचा कि अगर आज इन्होंने अमेरिका को मौत’ का नारा लगाया, तो कल वे यमन के राष्ट्रपति को मौत का नारा लगा सकते हैं। 2004 में सना में 800 बीवाई समर्थकों को गिरफ्तार किया गया। राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह ने तब हुसैन अल-हूती को सना में एक बैठक के लिए आमंत्रित किया, लेकिन हुसैन ने मना कर दिया। 18 जून 2004 को सालेह ने हुसैन को गिरफ्तार करने के लिए सरकारी बल भेजा। यमन की सेना और अल हूती के समर्थकों के बीच जंग शुरू हो गई। लोग मरने लगे। इस लड़ाई में निर्णायक मोड़ 10 सितंबर 2004 को आया। इस दिन सेना ने अल हूती को एक मुठभेड़ में मार गिराया। अल हूती के नाम पर इस आंदोलन को नया नाम मिला हूती विद्रोह। 

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