Himalaya Diwas 2023 : क्या हिमालयी राज्यों में गहरा रहा पानी का संकट? इस एक्सपर्ट ने किया खुलासा

कमल पिमोली/श्रीनगर गढ़वाल.आज हिमालय दिवस है. इस खास दिन हम हिमालय दिवस की 14वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. इस खास मौके पर राज्यभर में हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन व आपदाओं से पड़ रहे असर और इससे निपटने के उपायों पर मंथन होगा और हर साल की तरह आज हिमालय से जुड़े कई कार्यक्रम ,सेमिनारों , गोष्ठियों में हिमालय पर खूब चिन्ता जताई जा रही है, लेकिन क्या हिमालय को संरक्षित करने में किए जा रहे प्रयास सफल हो रहे हैं? ये सवाल हम इसलिए उठा रहे हैं क्योंकि हिमालय में पानी के स्त्रोत साल दर साल सूखते जा रहे हैं. वहीं कई अन्य मौसमी बदलाव हिमालय की खराब सेहत की तरफ इशारा कर रहे है . इस वर्ष हिमालय दिवस की थीम हिमालय के ईको सिस्टम को संरक्षित करना है. 6 देशों से होकर गुजरने वाला हिमालय भले ही अपने युवा अवस्था में हो लेकिन इसकी सेहत साल दर साल खराब हो रही है.

हिमालय, जो कई नदियों , झरनों, गाड-गदेरों, प्राकृतिक जल स्त्रोतों का भण्डार माना जाता है जहां से सदियों से कई जलधाराऐं अविरल बहती आई है. यहां ग्लेश्यिरों की कोई कमी नहीं है. समय की गति की तरह जहां से लगातार जल प्रवाह होता रहा है, लेकिन मौजूदा दौर में हालात बदल रहे हैं. धीरे-धीरे यहॉ जल स्त्रोत सूखते जा रहे हैं. खासतौर पर उतराखंड के हिमालय क्षेत्रों में सूखते जलस्त्रोतों से वैज्ञानिक चिन्तित है. वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालयी क्षेत्रों में अबाध गति से अनियत्रित निमार्ण हो रहा है. वनभूमि कंकरीट में तब्दील हो रही है और बड़े स्तर पर भूमि के साथ छेड-छाड़ करने से भूमिगत जल स्त्रोतों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है. पुरातन समय से ही मानव प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जिन जल स्त्रोत को रिचार्ज करने में अपनी भूमिका निभाता था उससे वह आज मुंह मोड़ चुका है.

उत्तराखंड का हिमालय सबसे अधिक संवेदनशील
भूगोल विभाग के प्रो. एमएस नेगी बताते हैं कि हिमालय की बदलती सूरत को देखते हुए हिमालय दिवस की कल्पना की गई थी. आज जलवायु परिवर्तन के परिणाम हिमालय में देखने को मिल रहा है. अनियमित व अनियोजित विकास लगातार तबाही का कारण बन रहे हैं. प्रो एमएस नेगी बताते है कि पूरी हिमालय श्रृंखला में उत्तराखंड का हिमालय सबसे अधिक संवेदनशील है.

हिमालयी इलाकों में पानी का संकट
प्रो. नेगी बताते हैं कि हिमालय में मानव गतिविधियों के बढने के कारण हिमालय का इको सिस्टम पूरी तरह बदल गया है. जल स्त्रोतों को सुखाने में मानव का अहम योगदान है. साथ ही उनका कहना है कि समय रहते अगर प्रकृति से छेड़छाड बंद नहीं की गई तो प्रकृति का कहर लगातार बढता रहेगा.भविष्य में हिमालयी इलाकों में पानी का संकट गहराने वाला है. ऐसे में यहां बांज, देवदार जैसे वृक्षों का लगाना बहुत जरुरी है, साथ ही प्राकृतिक जल स्त्रोतों को रिचार्ज करने की आवश्यकता भी है. प्रो. एमएस नेगी ने कहा कि उनके द्वारा व विभाग के शोधार्थियों ने कई शोध पेयजल श्रोतो को लेकर किया है, जिसमें चौकाने वाले तथ्य मिले हैं. वही कई ऐसे श्रोत हैं जो सूख चुके हैं.

हिमालय की आबो हवा पर संकट
हिमालय की आबोहवा लगातार खराब हो रही है, हवा में ब्लैक कार्बन , ग्लेश्यिरों का तेजी से पिघलना, बारिश का अनियमित होकर बादल फटने जैसी तमाम घटनाओं का घटना, लगातार हिमालय की खराब सेहत का संकेत दे रहे हैं. प्रदूषण, मानव क्रियाकलाप यहां की पारिस्थिकी पर लगातार प्रभाव डाल रहा है, ऐसे में जल्द प्रभावी कदम नही उठाये जाते हैं तो हिमालय ही मानव अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा.

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