Govardhan Puja: 13 या 14 नवंबर कब मनाई जाएगी गोवर्धन पूजा? देहरादून के विद्वान से जानें पूजन विधि और महत्व

हिना आज़मी/देहरादून. दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट उत्सव यानी गोवर्धन पर्व (Govardhan Puja 2023) मनाया जाता है. इस दिन भगवान के निमित्त भोग और नैवेद्य बनाकर भोग लगाया जाता है जिसे ‘छप्पन भोग’ कहते हैं. मान्यता है कि गोवर्धन पर्व मनाने से मनुष्य को लंबी आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही दरिद्रता का नाश होता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के साथ गौ माता की भी पूजा की जाती है.

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के निवासी पंडित उदय शंकर भट्ट ने जानकारी देते हुए कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता के अंतर्गत गोवर्धन पूजा का उल्लेख किया गया है, जिसमें बताया गया है कि दिवाली के अगले दिन परेवा पूजा की जाती है लेकिन इस बार परेवा एक दिन बाद यानी 14 को होगी, इसलिए इस बार 14 नवम्बर को गोवर्धन पूजा की जाएगी. उन्होंने बताया कि गोवर्धन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 43 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 52 मिनट तक रहेगा और पूजा की अवधि कुल 2 घंटे 9 मिनट की होगी.

क्या है गोवर्धन पूजा की मान्यता?
पंडित उदय शंकर भट्ट ने ने बताया कि गोवर्धन पूजा की कथा का उल्लेख श्रीमद्भगवद्गीता में मिलता है. जिसमें बताया गया है भगवान श्रीकृष्ण ने लोगों से इंद्र की पूजा के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था क्योंकि गोवर्धन पर्वत ही गौवंशो और कृषकों के लालन पालन के लिए सभी चीजें उपलब्ध करवाते थे. इससे पहले लोग बारिश के देवता इंद्र की पूजा करते थे. भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यवस्था में लोगों को बताया कि गोवर्धन पर्वत से गोकुल वासियों को पशुओं के लिए चारा मिलता है. गोवर्धन पर्वत बादलों को रोककर वर्षा करवाता है, जिससे कृषि उन्नत होती है. इसलिए गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए न कि इन्द्र देव की. जब यह बात देवराज इन्द्र को पता चली तो इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और फिर गुस्से में ब्रजवासियों पर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी.

भगवान श्री कृष्ण ने चूर किया था इंद्र का अभिमान
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली (कनिका) पर उठाकर सभी गोकुल वासियों की इंद्र के कोप से बचा लिया. इन्द्र के कोप से बचने के लिए गोकुल वासियों ने जब गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली तब गोकुल वासियों ने 56 भोग बनाकर श्री कृष्ण को भोग लगाया था और गोवर्धन पर्वत के नीचे ही एक सप्ताह तक सुरक्षित रहे. इससे प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को आशीर्वाद दिया कि वह गोकुल वासियों की हमेशा रक्षा करेंगे और तभी से गोवर्धन पूजा की जाने लगी.

इस विधि से करें गोवर्धन पूजा
1- प्रातः शरीर पर तेल मलकर स्नान करें.
2- घर के मुख्य द्वार( चौखट) पर गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाएं.
3- इसी के साथ ही गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाएं. पास में ग्वाल बाल, पेड़ पौधों की आकृति भी बनाएं.
4- इसके बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रख दें.
5- इसके बाद श्रीकृष्ण, ग्वाल-बाल और गोवर्धन पर्वत का षोडशोपचार विधि से पूजन करें.
6- उन पर पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं.
7- गोवर्धन पूजा की कथा सुनें और अंत में सभी को प्रसाद वितरण करें.

(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. LOCAL 18 किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)

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