बांका. बिहार के बांका में सबौर कतरनी धान का ट्रायल सफल रहा है. दरअसल नेचुरल फार्मिंग के तहत कृषि विज्ञान केंद्र बांका में इस बार ट्रायल के रूप में कुछ क्षेत्रफल पर इसकी खेती की गई थी. अब इसकी कटाई हो चुकी है. सबौर कतरनी धान की पैदावार को देखकर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक संतुष्ट हैं. अब इसकी खेती के लिए किसानों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा. वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट के तहत बांका जिला का चयन कतरनी धान के लिए किया गया है. हालांकि वर्तमान में कतरनी धान की खेती का दायरा सिमट कर रह गया है. बांका जिले के रजौन प्रखंड के कुछ हिस्सों में इसकी खेती की जाती है.
बांका में कतरनी धान की खेती मूल रूप से रजौन प्रखंड में की जाती है. इस साल यहां करीब 800 एकड़ में कतरनी धान की खेती की गई है. पहले यहां बड़े पैमाने पर कतरनी धान की खेती होती थी, लेकिन उत्पादन में कमी और अधिक सिंचाई की वजह से किसान इस फसल से मुंह मोड़ने लगे हैं. अब ऐसे किसानों को फिर से कतरनी धान की खेती करने के लिए सरकार प्रेरित करेगी.
किसानों के लिए बनाए गए हैं कृषक हितकारी समूह
कतरनी धान की खेती करने वाले किसानों के कृषक हितकारी समूह भी बनाए गए हैं. यह किसान जल्द ही फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन बनाकर खुद कतरनी धान के प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी करने लगेंगे. इसके लिए कृषि विभाग और उद्यान विभाग की ओर से किसानों को मदद की जा रही है, ताकि कतरनी धान की खेती को एक बार फिर से जिले में पुनर्जीवित किया जा सके. कतरनी धान के पैदावार को बढ़ाकर इसके प्रोडक्ट्स को मार्केट में उतारने की भी तैयारी चल रही है.
किसानों के लिए नेचुरल फार्मिंग है बेहतर विकल्प
कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा वैज्ञानिक संजय मंडल ने बताया कि कतरनी धान की खेती के लिए नेचुरल फार्मिंग सबसे बेहतर विकल्प है. कृषि विज्ञान केंद्र परिसर में इसका ट्रायल सफल रहा. नेचुरल फार्मिंग कर किसान कम खर्च में ज्यादा पैदावार ले सकते हैं. सबौर कतरनी धान की खेती के लिए अब ज्यादा से ज्यादा किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा. इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र रोडमैप तैयार कर रहा है. जल्द ही कृषि वैज्ञानिक किसानों के बीच जाकर प्रेरित करने का काम करेंगे.
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FIRST PUBLISHED : December 06, 2022, 10:22 IST