शुभम मरमट/उज्जैन. ऐसी मान्यता है कि चिंतामण गणेश चिंता से मुक्ति प्रदान करते हैं, जबकि इच्छामन अपने भक्तों की कामनाएं पूर्ण करते हैं. गणेश का सिद्धिविनायक स्वरूप सिद्धि प्रदान करता है. इस अद्भुत मंदिर की मूर्तियां स्वयंभू हैं. और जो भी यहां दर्शन करने के लिए आता है उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से करीब 6 किलोमीटर दूर ग्राम जवास्या में भगवान गणेश का प्राचीनतम मंदिर स्थित है. इसे चिंतामण गणेश के नाम से जाना जाता है.
चिंतामण गणेश मंदिर परमारकालीन है, जो कि 9वीं से 13वीं शताब्दी का माना जाता है. इस मंदिर के शिखर पर सिंह विराजमान है. वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में हुआ. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चिंतामण गणेश माता सीता द्वारा स्थापित अष्ट विनायकों में से एक हैं.
जब भगवान प्रभु श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अवंतिका खंड के महाकाल वन में प्रवेश किया था तब अपनी यात्रा की निर्विघ्नता के लिए षट् विनायकों की स्थापना की थी. ऐसी भी मान्यता है कि लंका से लौटते समय भगवान राम, सीता और लक्ष्मण यहां रुके थे. यहीं पास में एक बावड़ी भी है, जिसे लक्ष्मण बावड़ी के नाम से जाना जाता है. बावड़ी करीब 80 फुट गहरी है.
मंदिर के पुजारी पंडित राहुल गुरु ने बताया कि गणेश चतुर्थी, तिल चतुर्थी और प्रत्येक बुधवार को यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है. चैत्र मास के प्रत्येक बुधवार को यहां मेला भी लगता है. मनोकामना पूर्ण होने पर दूरदराज के हजारों श्रद्धालु पैदल चलकर मंदिर पहुंचते हैं. सीताराम पुजारी बताते हैं कि सिंदूर और वर्क से प्रात: गणेशजी का शृंगार किया जाता है, जबकि पर्व और उत्सव के दौरान दो बार भी लंबोदर गणेश का शृंगार किया जाता है.
पुजारी पंडित राहुल गुरु बताते हैं कि मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु यहां मन्नत का धागा बांधते हैं और उल्टा स्वस्तिक भी बनाते हैं. मन्नत के लिए दूध, दही, चावल और नारियल में से किसी एक वस्तु को चढ़ाया जाता है और जब वह इच्छा पूर्ण हो जाती है तब उसी वस्तु का यहां दान किया जाता है. श्रद्धालु कोई भी शुभ कार्य होने पर सबसे पहले यहां आकर भगवान गणेश को उसके लिए धन्यवाद देते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 12, 2023, 09:34 IST