Explainer : CAA से कैसे मिलेगी 3 देशों के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता? क्या है पूरा प्रोसेस

ये कानून बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए हिंदू, जैन, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है. भारतीय नागरिकता उन अप्रवासियों को दी जाएगी जो पिछले 14 सालों में से कम से कम 5 साल भारत में रहा हो. ऐसे मामलों में पहले ये 11 साल था.

ये कानून संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों को छूट देता है, जिसमें असम में कार्बी आंगलोंग, मेघालय में गारो हिल्स, मिजोरम में चकमा जिले और त्रिपुरा में आदिवासी क्षेत्र जिले शामिल हैं.

दिसंबर 2019 में संसद द्वारा सीएए पारित होने और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद पूर्वोत्तर क्षेत्र सहित देश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर इसको लेकर विरोध प्रदर्शन हुए थे.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले कहा था कि सीएए के नियमों को लोकसभा चुनाव से पहले अधिसूचित और लागू किया जाएगा. कोई भी सीएए के क्रियान्वयन को नहीं रोक सकता.

गृह मंत्रालय ने आवेदकों की सुविधा के लिए एक पोर्टल तैयार किया है और पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी. एक अधिकारी ने बताया कि आवेदकों को घोषित करना होगा कि वे किस वर्ष बिना यात्रा दस्तावेजों के भारत में आए थे. आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा.

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019, भारत के 3 पडोसी देशों से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आये शरणार्थियों को, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में शरण मांगी थी, उनको भारत की नागरिकता का अधिकार देने का कानून है.

3 देश – अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश
6 माइनॉरिटी कम्युनिटी – हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई

प्रमुख मुद्दे :

  • पुनर्वास और नागरिकता की कानूनी बाधाओंको दूर करता है.
  • दशकों से पीड़ित शरणार्थियों को सम्मानजनक जीवन देना.
  • नागरिकता अधिकार से उनके सांस्कृतिक, भाषिक, सामाजिक पहचान की रक्षा होगी.
  • साथ ही आर्थिक, व्यवसायिक, फ्री मूवमेंट, संपत्ति खरीदने जैसे अधिकार सुनिश्चित होंगे.
सरकार ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून के संदर्भ में कई गलतफहमियां फैलाई गई हैं. ये नागरिकता देने का कानून है, CAA से किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता नहीं जाएगी, चाहे वह किसी भी धर्म का हो. ये कानून सिर्फ उन लोगों के लिए है, जिन्हें सालों से उत्पीड़न सहना पड़ा और जिनके पास दुनिया में भारत के अलावा और कोई जगह नहीं है.

भारत का संविधान हमें ये अधिकार देता है कि मानवतावादी दृधिकोण से धार्मिक शरणार्थियों को मूलभूत अधिकार मिले और ऐसे शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की जा सके.

कोविड महामारी के कारण नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने में देरी हुई, लेकिन अब इसे लागू किया जा रहा है.

केंद्र सरकार ने कहा कि हमने हमारे 2019 लोकसभा चुनाव मैनिफेस्टो में कहा था कि हम पड़ोसी देशों के प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. आज इस वादे को कंस्टीट्यूशन की स्पिरिट के साथ पूरा किया.

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