Dalit and Mahadalit: बिहार सरकार ने राज्य में जातियों के सर्वे के नतीजे एक किताब की शक्ल में जारी किए. आंकड़े कहते हैं कि राज्य में अति-पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी और अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी को मिलाकर पिछड़ा वर्ग की कुल आबादी 63 फीसदी से ज्यादा है. अगर इसमें एससी-एसटी को भी जोड़ दिया जाए तो 84 फीसदी आबादी हो जाती है. इनमें पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.13 फीसदी और अति पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या 36.01 फीसदी है. सियासी दलों के बीच जातियों की गणना लंबे समय से आरक्षण की मांग से जुड़ा बड़ा मुद्दा रहा है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि अन्य पिछड़ा वर्ग, अति-पिछड़ा, दलित और महादलित समुदाय क्या हैं?
सबसे पहले समझते हैं कि दलित शब्द के मायने क्या हैं? ‘दलित’ अंग्रेजी शब्द डिप्रेस्ड क्लास का हिंदी अनुवाद है. भारत में दलित शब्द का अर्थ कई मायने में इस्तेमाल किया जाता है. दलित का शाब्दिक अर्थ ‘पीड़ित’, ‘शोषित’, ‘दबाया हुआ’ या ‘जिनका हक छीना गया’ होता है. इस लिहाज से भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई समेत सभी धर्मों में दलित समुदाय है. दलित समुदाय में कई वर्ग ऐसे भी हैं, जिन्हें अछूत माना जाता है. भारत की जनगणना 2011 के मुताबिक, देश की आबादी में 16 फीसदी से ज्यादा दलित हैं. केंद्रीय स्तर पर आर्थिक या समाजिक तौर पर वंचित तबके को ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय में रखा गया है. वहीं, बिहार में ओबीसी को पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग में बांटा गया है. जबकि, अनुसूचित जाति को दलित और महादलित में बांटा गया है.
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दलित शब्द का क्या है अर्थ?
सामाजिक तौर पर दलित का मतलब, वह व्यक्ति या तबका है, जिसका शोषण हुआ हो. साहित्यकार व कोशकार आचार्य रामचंद्र वर्मा ने भी अपने शब्दकोश में दलित का अर्थ लिखा है. इसके मुताबिक, दलित का अर्थ मसला, दबाया, रौंदा या कुचला हुआ होता है. शंकराचार्य ने मधुराष्टकम् में श्रीकृष्ण के लिए ‘दलितं मधुरं’ का इस्तेमाल किया है. यहां ‘दलितं’ का मतलब द्वैत या अलग रहने से लगाया गया है. संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के आंदोलन के बाद दलित शब्द हिंदू समाज में सबसे निचले पायदान पर मौजूद अस्पृश्य समझी जाने वाली सभी जातियों के समूह के लिए इस्तेमाल किया गया. आंबेडकर और महात्मा गांधी के दौर में दलित शब्द को वंचित तबके के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था.
बिहार सरकार ने 2007 में ‘महादलित’ शब्द दलितों के सबसे गरीब सामाजिक समूहों के लिए गढ़ा था.
कौन-कौन होते हैं महादलित?
बिहार सरकार ने 2007 में ‘महादलित’ शब्द दलितों के सबसे गरीब सामाजिक समूहों के लिए गढ़ा था. हालांकि, महादलित शब्द भारतीय संवैधानिक शब्दावली का हिस्सा नहीं है. बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 2007 में राज्य महादलित आयोग की स्थापना की, जिसमें महादलित श्रेणी में अनुसूचित जातियों यानी एससी समुदाय के बीच बेहद कमजोर जातियों को शामिल करने की सिफारिश की गई थी. आयोग ने राज्य की कुल 22 अनुसूचित जातियों में से 21 अनुसूचित जातियों को महादलित के तौर पर मान्यता दी. साल 2010 चुनावी वर्ष था. इस दौरान नीतीश कुमार ने महादलित मतदाताओं को लुभाने के लिए कई सरकारी योजनाएं भी शुरू की थीं.
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कभी सामान्य वर्ग में शामिल थे ओबीसी
अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी वर्ग 1991 में अस्तित्व में आया था. इससे पहले तक ये सामान्य वर्ग ही शामिल होता था. ओबीसी कैटेगरी में सामान्य वर्ग की उन जातियों को शामिल किया गया, जो गरीबी और शिक्षा के स्तर पर पिछड़ी हुई थीं. भारतीय संविधान में ओबीसी सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग यानी एसईबीसी के तौर दर्ज किया गया है. भारत सरकार उनके सामाजिक और शैक्षिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं लाती है. इसी के तहत ओबीसी वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 27 फीसदी आरक्षण दिया जाता है. ओबीसी में नई जातियों को जातियों व समुदायों के सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक कारकों के आधार पर जोड़ा या हटाया जा सकता है.
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बिहार में पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियां
बिहार में पिछड़ा वर्ग में कुशवाहा (कोईरी), कागजी, कोस्ता, गद्दी, मडरिया, दोनवार, घटवार, चनउ, जदुपतिया, जोगी, नालबंद (मुस्लिम), परथा, बनिया, यादव (ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी, मेहर, सदगोप, लक्ष्मी नारायण गोला) को शामिल किया गया है. इसके अलावा राज्य में रौतिया, शिवहरी, सोनार, सुकियार, ईसाई धर्मावलंबी (हरिजन), ईसाई धर्मावलंबी (अन्य पिछड़ी जाति), कुर्मी, भाट, भट, ब्रह्मभट्ट (हिंदू), जट (हिंदू), सुरजापुरी मुस्लिम, मलिक (मुस्लिम), राजवंशी, छीपी, गोस्वामी,सन्यासी, अतिथ/अथित, गोसाई, जति/यती, ईटफरोश/ गदहेडी व सैंथवार, किन्नर/कोथी भी पिछड़ा वर्ग में शामिल हैं.
बिहार में ओबीसी को पिछड़ा और अति-पिछड़ा वर्ग में बांटा गया है. जबकि, अनुसूचित जाति को दलित और महादलित में बांटा गया है.
बिहार की अति पिछड़ा सूची में जातियां?
बिहार सरकार की अति पिछड़ा सूची में 25 जातियां शामिल हैं. इनमें कपरिया, कानू, कलंदर, कोछ, कुर्मी, खंगर, खटिक, वट, कादर, कोरा, कोरकू, केवर्त, खटवा, खतौरी, खेलटा, गोड़ी, गंगई, गंगोता, गंधर्व, गुलगुलिया, चांय, चपोता, चन्द्रवंशी, टिकुलहार, तेली (हिंदू व मुस्लिम) और दांगी शामिल हैं. वैसे ईबीसी में कुल 130 जातियां और उपजातियां हैं. इनमें मुख्य तौर पर नाई, मल्लाह, निषाद, केवट, सहनी लोहार, तेली, नोनिया जातियां आती हैं. अलग-अलग देखने पर इनका प्रतिशत ज्यादा नहीं है, लेकिन समूह के तैयार पर इनकी संख्या बड़ी नजर आती है.
बिहार में दलित और महादलित का फर्क?
नीतीश कुमार ने 2005 में बिहार की सत्ता पर काबिज होने के बाद महादलित योजना की शुरुआत की थी. उन्होंने दलित मानी जाने वाली 21 उपजातियों को मिलाकर महादलित श्रेणी तैयार की थी. पासवान जाति को इससे अलग रखा था. अन्य सभी अनुसूचित जातियों की उपजातियों को महादलित कैटेगरी में रखा. नीतीश कुमार की बिहार सरकार ने इनके लिए कई तरह की योजनाएं भी शुरू की थीं. बाद में पासवान को भी महादलित में शामिल कर लिया गया. बिहार की 22 अनुसूचित जातियों में से 21 को महादलित की श्रेणी में शामिल किया गया है. राज्य की अनुसूचित जाति में बंतार, बौरी, भोगता, भुईया, चमार, मोची, चौपाल, दबगर, धोबी, डोम, धनगड, पासवान या दुसाध, कंजर, कुररियार, धारी, धारही, घासी, हलालखोर, हरि, मेहतर, भंगी और लालबेगी हैं.
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बिहार में अनुसूचित जनजाति में कौन?
बिहार की अनुसूचित जनजाति में असुर, अगरिया, बैगा, करमाली, खरिया जातियां शामिल हैं. इसके अलावा धेलकी खरिया, दूध खरिया, बेदिया, बिनझिया, बिरहोर, बिरजिया, चेरो, चिक, बराइक, बरैक, गोंड, गोरेत, हो ,हिल खरिया, खरवार, खोंड और नगेसिया शामिल हैं. वहीं उच्च जाति में भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, ठाकुर, बरनवाल और पठान भी अनुसूचित जनजाति में ही आते हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 4, 2023, 15:12 IST