Explainer : क्या मालदीव में फिर चीन हावी होगा, चुनाव नतीजों से क्या समझें

हाइलाइट्स

मालदीव में भारत समर्थक माने जाने वाले सालेह चुनाव हार गए हैं
नए राष्ट्रपति बनने वाले मुइज्जू को चीन का करीबी माना जाता है

मालदीव में चुनाव हो चुके हैं. भारत आउट का नारा देने वाले मोहम्मद मुइज्जू ने राष्ट्रपति चुनावों में जीत हासिल कर ली. भारत समर्थक माने जाने वाले निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह हार गए. इस चुनाव को काफी हद तक मालदीव में भारत और चीन की हार-जीत के तौर पर भी देखा जा रहा था.

सवाल – मालदीव में कौन जीता है, इसे भारत के झटके के तौर पर क्यों देखा जा रहा है?
– इस बार मालदीव में राष्ट्रपति चुनावों में मोहम्मद मुइज़्ज़ू की जीत हुई है, उन्हें चीन समर्थक माना जाता है. उन्होंने चुनावों में इंडिया आउट का नारा दिया था. जबकि भारत समर्थक माने जाने वाले मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की पराजय हुई है. उनके कार्यकाल में मालदीव के भारत के साथ रिश्ते मजबूत हुए थे. रणनीतिक कारणों से चीन और भारत दोनों देशों की मालदीव के चुनाव पर करीबी नज़र और दिलचस्पी थी.
मोहम्मद मुइज्जू को 54 फीसदी वोट मिले. उनके जीतने से मालदीव में चीन का शिकंजा और निवेश के साथ नए चाइनीज प्रोजेक्ट्स बढ़ेंगे. जबकि भारत के लिए इसका उल्टा होने की आशंका है.

सवाल – मालदीव और भारत के रिश्ते कैसे रहे हैं?
– मालदीव के भारत के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध रहे हैं. ये आज से नहीं बल्कि सदियों पहले से हैं. मालदीव लंबे समय से भारत के प्रभाव में रहा है. ये माना जाता है कि मालदीव में अपनी मौजूदगी बनाये रखकर भारत हिंद महासागर के बड़े हिस्से पर निगरानी रखता रहा है.लेकिन भारत को हिंद महासागर में कमजोर करने के लिए चीन कई सालों से मालदीव को लुभाता रहा है. और उसने मालदीव के सियासी नेताओं के बीच भी पकड़ बनाई है. इसी वजह से अब मालदीव में चीन का असर बढ़ने लगा है. चीन ने बड़े पैमाने पर पिछले कुछ सालों में भारत को वहां से बेदखल करने के लिए निवेश भी किया है.

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मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव भारत और चीन दोनों के लिए रणनीति तौर पर खास माना जा रहे थे लेकिन अब लग रहा है कि सियासी ऊंट चीन की ओर बैठ गया है.. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Unsplash)

सवाल – चीन की कोशिश मालदीव के जरिए भारत के असर को किस तरह खत्म करने की है?
– हिंद महासागर में मालदीव की लोकेशन रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. चीन अपनी नौसेना को तेज़ी से बढ़ा रहा है. वो मालदीव में अपनी पहुंच बढ़ाने के प्रयास करता रहा है. मालदीव के कई द्वीपों को भी चीन ने कुछ सालों के लिए ले रखा है. कहा जाता है कि उसने यहां के कुछ द्वीपों में जमीन की बड़े पैमाने पर खरीददारी भी की है. खाड़ी के देशों से तेल यहीं से होकर गुज़रता है. चीन इसे भी सुरक्षित करना चाहता है.

सवाल – मालदीव की सियासत में किस तरह भारत और चीन के उठापटक का खेल चलता रहता है?
– मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सालेह की पार्टी का नाम मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी है. वो भारत समर्थक पार्टी मानी जाती है जबकि जीत हासिल करने वाले मुइज्जू पीपुल्स नेशनल कांग्रेस और प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव के गठजोड़ वाले संयुक्त मोर्चा गठबंधन के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे, जिसे आमतौर पर चीन समर्थक गठबंधन या पार्टियों के तौर पर देखा जाता है. बेशक इन चुनावों में घरेलू मुद्दे भी हावी थे लेकिन इसके अलावा भारत और चीन भी बड़ा मुद्दा थे. मौजूदा राष्ट्रपति सालेह अक्सर इंडिया फर्स्ट पालिसी के कारण विपक्ष की आलोचनाओं का निशान बनते रहे हैं.
मुइज्जु खुद भी चीन समर्थक रहे हैं और तुरंत भारत से सारे संबंध खत्म कर लेना चाहते हैं. लेकिन भारत को उम्मीद है कि मुइज्जू ने चुनाव में जो भी रुख अपनाया हो लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और चीन को लेकर संतुलित रुख अपनाएंगे.

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भारत और मालदीव के ना केवल ऐतिहासिक संबंध रहे हैं बल्कि अब धीरे धीरे वो चीन की ओर जा रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

सवाल – राष्ट्रपति बनने वाले मुइज्जू कौन हैं?
– मुइज्जू पेशे से सिविल इंजीनियर रहे हैं. उन्होंने माले के मेयर रह चुके हैं और वोटर्स को घर से लेकर तमाम चीजों के सपने दिखाए हैं. 45 साल के इस शख्स को डॉक्टर मुइज्जू भी बोला जाता है, क्योंकि उन्होंने ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स से सिविल इंजीनियरिंग में पीएचडी की है.
मुइज्जू को पूर्व राष्ट्रपति और चीन समर्थक अबदुल्ला यामीन का खास माना जाता है. यामीन जेल में हैं और वहां के सुप्रीम कोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई हुई है. उन्हें भ्रष्टाचार और मनी लांड्रिंग जैसे मामलों में दोषी पाया गया था. उन्होंने अपनी पार्टी से चुनावों का बायकाट ही करने को कहा था लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया बल्कि यामीन के खास माने जाने वाले मुइज्जू को उम्मीदवार चुन लिया.

मुइज्जू ने मुश्किल से केवल एक महीने ही चुनावी कैंपेन किया होगा. वह मालदीव की राजनीति में नए चेहरे हैं. वर्ष 2021 में वह माले में मेयर बने थे.इससे पहले वह दो बार हाउसिंग मिनिस्टर रह चुके हैं. वह चीन के भी करीब हैं.वह 2012 में राजनीति में आए थे.

सवाल – मालदीप पर चीन का कितना कर्ज है?
– मालदीव ने चीन से बड़ा क़र्ज़ लिया है. राजधानी माले को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जोड़ने वाला पुल भी चीन के निवेश से बना है. 2016 में मालदीव ने चीन को अपना एक द्वीप महज 40 लाख डॉलर में 50 सालों के लिए लीज़ पर दिया था. माना जाता है कि मालदीव पर चीन का क़रीब एक बिलियन डॉलर का क़र्ज़ है जो चीन ने वहां की इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं में लगाए हैं.

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भारत और मालदीव में कई समानताएं हैं. हमारी संस्कृतियां साझी हैं. नारियल इस देश का राष्ट्रीय फल है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Unsplash)

सवाल – क्या मुइज्जू की जीत से चीन फिर मालदीव में हावी हो जाएगा?
– बिल्कुल ऐसा ही होने की संभावना जाहिर की जा रही है. अब मालदीव और चीन में करीबी और बढ़नी चाहिए. हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि मौजूदा स्थिति में मालदीव भारत और चीन दोनों देशों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करेगा. क्योंकि भारत का भी वहां निवेश है जिसे मालदीव नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएगा.
भारत के निवेश पर तो असर शायद नहीं पड़े लेकिन मालदीव की नई सरकार वहां तैनात भारत के सैनिकों को तुरंत वापस भेजने की दिशा में क़दम जरूर उठाएगी.ये उनका चुनावी वादा भी रहा है. मालदीव में कई लोग भारत के इरादों को संदेह की नजर से देखते हैं. मालदीव में यह भावना बहुत बड़ी है कि हमें भारत समेत किसी भी देश के साथ मजबूत रणनीतिक संबंध नहीं रखना चाहिए.

Tags: Maldives

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