Explained: फिलिस्तीन में यहूदियों का अलग देश क्यों नहीं चाहते थे महात्मा गांधी? किस बात पर था विरोध

हमास और इजरायल की लड़ाई में अब तक 3000 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. अकेले इजरायल के 1200 से ज्यादा नागरिकों व सैनिकों को जान गंवानी पड़ी है. दुनिया के तमाम देशों ने हमास के हमले की निंदा की है और इजरायल को समर्थन दिया है. भारत भी इजरायल के साथ खड़ा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी की इजरायल-फिलिस्तान विवाद पर क्या राय थी? गांधी, फिलिस्तीन में अलग यहूदी देश बसाने के खिलाफ थे और बाकायदा इसके पक्ष में तर्क भी दिया था.

महात्मा गांधी ने क्या कहा था?
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने 26 नवंबर 1938 को ‘हरिजन’ में एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था ‘द ज्यूज’ (The Jews). इस लेख में उन्होंने लिखा, ‘जिस तरीके से इंग्लैंड अंग्रेजों का है, फ्रांस फ्रांसीसियों का है… ठीक उसी तरीके से फिलिस्तीन अरब लोगों का है…’ हालांकि इसके बावजूद महात्मा गांधी हमेशा इस बात को साफ करते रहे कि सालों से अत्याचार और भेदभाव झेल रहे यहूदियों के प्रति उनके मन में गहरी संवेदनाएं हैं.

गांधी ने अपने लेख में लिखा था, ‘यहूदियों के प्रति मेरे मन में गहरी संवेदनाएं हैं. ये लोग क्रिश्चियन समुदाय के अछूते हैं. जिस तरीके से हिंदू समुदाय में छुआछूत की समस्या है, ठीक इसी तरीके से यहूदियों को भी यह समस्या झेलनी पड़ी है. अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा है.

‘जर्मनी से लड़ाई भी जायज’
महात्मा गांधी ने इसी लेख में लिखा, नाजी जर्मनी ने यहूदियों के साथ जैसा व्यवहार किया, इतिहास में वैसा दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता है. उन्होंने हिटलर को लेकर ब्रिटेन की नीति पर भी सवाल खड़े किए थे. गांधी ने यहूदियों की रक्षा और उनके नरसंहार को रोकने के लिए जर्मनी से लड़ाई को भी जायज ठहराया था. गांधी लिखते हैं, ”अगर मानवता और एक पूरे समुदाय (यहूदियों) को खत्म होने से बचाने के लिए जर्मनी से लड़ाई लड़नी पड़े तो यह भी पूरी तरह तार्किक होगा…’

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महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में अपने दो यहूदी सहयोगियों के साथ. तस्वीर में उनकी सचिव सोनजा सेल्सिन और हरमन कालबाख दिख रहे हैं. तस्वीर संभवत: 1913 की है. सोर्स- Wikimedia Commons

फिर क्यों यहूदियों के खिलाफ थे?
यहूदियों का इतना खुलकर पक्ष लेने के बावजूद आखिर क्यों महात्मा गांधी फिलिस्तीन में अलग यहूदी देश की स्थापना के खिलाफ थे? इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक महात्मा गांधी ने लिखा था, ”अरब लोगों पर यहूदियों को थोपना पूरी तरह गलत और अमानवीय है. फिलिस्तीन में यहूदियों को बसाना या उनके राष्ट्र के तौर पर मान्यता देना, अरब लोगों की गरिमा के साथ खिलवाड़ जैसा होगा…’

क्यों अलग देश नहीं चाहते थे गांधी?
महात्मा गांधी का विरोध दो सिद्धांतों पर आधारित था. पहला- गांधी का मानना था फिलिस्तीन पहले से अरब लोगों की जन्मभूमि है और ब्रिटिश शासन ने वहां जबरन यहूदियों को बसाया, जो एक तरीके से अरब लोगों के मूलभूत सिद्धांतों का हनन है. दूसरा- गांधी को लगता था यहूदियों की एक अलग राष्ट्र की मांग, उनकी लड़ाई के प्रति विरोधाभासी है. हालांकि उस वक्त गांधी ने खुलकर इस पहलू को सामने नहीं रखा था.

महात्मा गांधी ने हरिजन में लिखा था, ”यदि यहूदियों के पास फिलिस्तीन के अलावा कोई और मुल्क न हो तो क्या वे दुनिया के दूसरे हिस्सों को छोड़ने के विचार को पसंद करेंगे? क्या दुनिया जिस हिस्से में रहते हैं, उसे छोड़ देंगे?

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