Etawah Burning Train: धमाके के साथ उठीं लपटें…चीत्कार के बीच खुद को बचाने की जद्दोजहद, देखें तस्वीरें

इटावा जिले में शाम करीब साढ़े पांच बज रहा था। एस-वन कोच में कुछ यात्री अपनी सीटों पर बैठे तो कुछ दरवाजे पर खड़े होकर बातें कर रहे थे। इस बीच ही अचानक तेज धमाके के साथ तेज लपटें उठना शुरू हो गईं। आवाज सुनकर और लपटें देखकर भगदड़ मच गई, लोग अपनी सीटें छोड़कर भागने लगे। दिल्ली से गोरखपुर अपने भाई भीम के साथ जा रहे गोविंद कुमार भी एस-वन कोच में 48 नंबर सीट पर सवार थे।

उन्होंने बताया कि ट्रेन की चेन पुलिंग होते ही सबने गेटों से कूदना शुरू कर दिया। वह ट्रेन से कूद गए, लेकिन उनका भाई भीड़ फंस गया। धक्कों के बीच किसी तरह भाई को खींचकर बाहर निकाला। सामान और जूते चप्पल वहीं रह गए। उन्होंने बताया कि अचानक से 20 से 30 नंबर सीट से आग की लपटें उठने लगीं थीं। हादसे के वक्त लगा जैसे कोई पटाखे की वजह से आग लगी हो।




दरवाजे के बजाए खिड़कियों से कूदे लोग

एस-वन कोच में यात्रा कर रहे मुजफ्फरपुर निवासी कृष्ण मोहन ने बताया कि वह अपने परिजनों के साथ सीट नंबर पांच और छह पर बैठे थे । तभी अचानक से अफरा तफरी का माहौल हो गया। भीड़ इतनी अधिक थी कि ट्रेन से उतरने में भी लोग गिरने लगे। भीड़ इतनी अधिक थी कुछ लोग दरवाजे की बजाय खिड़कियों से निकले।


सामान से ज्यादा जरूरी है जान

नई दिल्ली से ट्रेन के एस-थ्री कोच में बैठी निशा देवी ने बताया कि उन्होंने पांच टिकट बुक करवाए थे। शयनयान में आरक्षण होने के बाद भी बैठकर यात्रा कर रहे थे।अचानक से झटके के साथ ट्रेन रुकी और लोग भागते नजर आए। वह भी अपने बच्चों के साथ ट्रेन से उतर गई । उनका सामान उसी में रह गया। उन्होंने लड़खड़ाती जुबान से कहा कि सामान से ज्यादा जान जरूरी है।


सामान छोड़कर ट्रेन से कूदी बबीता

यात्री बबीता ने बताया कि वह एस-चार कोच में यात्रा कर रही थी। नॉन स्टॉप ट्रेन अचानक से रुक गई।जब तक कुछ समझते तब तक लोग ट्रेन से कूदने लगे। उन्होंने भी अपने सामान को छोड़कर जान बचाई। हालांकि आग उनके कोच से काफी दूर थी लेकिन उस वक्त कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करें।


और कर्मचारियों की जल्दबाजी से परेशान रहे यात्री

आग की घटना के बाद ट्रेन के जले हुए चार कोचों को अलग कर दिया गया था। जिला प्रशासन और रेलवे के अधिकारियों ने स्टेशन पर बैठे यात्रियों को उसी ट्रेन में बैठाया। इस दौरान स्टेशन पर अपने परिजनों का इंतजार कर रहीं रेखा से कर्मचारी ट्रेन में बैठने की जिद्द करते रहे, जबकि उनका कहना था कि वह इधर, उधर हुए अपने परिवार के लोगों को तलाश रही हैं।


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