आशीष त्यागी/बागपत. हर साल दशहरा पर रावण का पुतला फूंका जाता है. इस दिन को अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतीक के तौर पर भी मनाया जाता है. दरअसल, दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण का वध किया था. इसीलिए इस दिन को विजयादशमी का पर्व भी कहते हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि बागपत के बड़ागांव में रावण के पुतले के दहन के बजाय दशहरा पर रावण की पूजा होती है.
इस गांव केग्रामीण रावण को अपना पूर्वज मानते हुए उसका पूजन करते हैं. इसगांव में रामलीला भी नही होती है. राजस्व अभिलेखों में भी इस गांव का नाम रावण उर्फ बड़ागांव दर्ज है. इसके पीछे पौराणिक किंवदंती प्रचलित है.
लंकेश को पूर्वज मानते हैं ग्रामीण
बड़ागांव निवासी अमित त्यागी व सतवीर ने बताया कि त्रेता युग में रावण लंका में मां मंशादेवी को विराजमान करना चाहता था. कठोर तपस्या से मां को प्रसन्न किया. रावण मां का शक्तिपुंज लेकर हिमालय से लंका जा रहा था. बड़ागांव में रावण को लघुशंका की शिकायत हुई तो उसने मां का शक्तिपुंज ग्वाले को दिया. ग्वाला मां का तेज सहन नहीं कर सका और शक्तिपुंज जमीन पर रख दिया। तब से मां बड़ागांव में विराजमान हैं. ग्रामीण रावण को अपना पूर्वज मानते हैं. ऐसे में उसका पुतला दहन नहीं करते.
दशहरा पर होती है रावण पूजा
मां मंशादेवी को बड़ागांव में विराजमान होने से ग्रामीण रावण को अपना पूर्वज मानते हैं. इसलिए पुतला दहन नहीं करते, बल्कि दशहरे की शाम को आटे का रावण प्रतिकात्मक पुतला बनाकर पूजा करते हैं. गांव के लोग बताते हैं कि रामलीला का मंचन करने पर गांव में कई विपदाएं आई थी. तब से ग्रामीणों ने रामलीला मंचन करना छोड़ दिया. मंदिर पुजारी गौरी शंकर ने बताया कि माता रानी के दरबार में मत्था टेकने वाले हरेक श्रद्धालु की मुराद मां पूरी करती है.
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FIRST PUBLISHED : October 23, 2023, 18:56 IST