Chhattisgarh Chunav 2023: ‘मजबूत’ के सामने ‘मजदूर’ चेहरे पर नजरें, क्या इस सीट पर बदलेगा चुनावी समीकरण?’

रायपुर. ईश्वर साहू बिरनपुर वाले. जाहिर है कि बिरनपुर गांव का नाम है. ईश्वर साहू का घर सिर्फ दो कमरों का है. इसमें एक कमरे में दरवाजा भी नहीं है. परिवार की जीविका का साधन सिर्फ मजदूरी है. नामांकन के साथ दिए गए शपथ पत्र में भी इस बात का उल्लेख है. मजदूर के पास पैसे की कमी होना स्वाभाविक बात है. अधिकांश मजदूरों के बच्चे पैसे की किल्लत के कारण ही पढ़ाई नहीं कर पाते हैं. मजदूरी करने वालों की चिंता जात वाले भी कहां करते हैं? लेकिन, ईश्वर साहू ने इस बात की चिंता भी कभी नहीं पाली. सुबह काम पर निकलते और रात को घर वापस आ जाते. बिरनपुर उनके गांव का नाम है. बिरनपुर, छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में आता है. इसकी कुल आबादी लगभग डेढ़ हजार है. इसमें दो सौ अल्पसंख्यक वर्ग के हैं.

ईश्वर साहू की उम्र लगभग 42 वर्ष है. केवल पांचवी पास हैं. पत्नी सती बाई गृहिणी है. दो बेटे थे. एक बेटे का नाम कृष्णा है. इसने भी बीच में पढ़ाई छोड़ दी. वह भी मजदूरी करता है. ईश्वर साहू के पास किसी भी तरह की सिंचित असिंचित कृषि भूमि नहीं है. न पत्नी के नाम और न ही बच्चें के नाम पर है. राजनीति से कभी कोई वास्ता भी नहीं रहा है. स्थानीय चुनाव की राजनीति में कभी ज्यादा दिलचस्पी नहीं ली. जो कैंडिडेट ठीक लगता उसे वोट दे देते. बड़े सपने भी कभी नहीं पाले. बड़े लोगों के सामने हमेशा हाथ जोड़कर ही गए.

Chhattisgarh Chunav 2023: 'मजबूत' के सामने 'मजदूर' चेहरे पर नजरें, क्या इस सीट पर बदलेगा चुनावी समीकरण?'

कद्दावर नेता के सामने मजदूर
ईश्वर साहू पूरे चुनाव प्रचार के दौरान भी अपने गांव बिरनपुर के हर घर के सामने हाथ जोड़कर ही गए. साथ ही साजा विधानसभा क्षेत्र के जिस भी गांव, नगर में गए वहां सिर्फ हाथ जोड़कर अपना नाम ईश्वर साहृ बिरनपुर वाले ही बता कर परिचय देते. नाम सुनकर कई लोग उन्हें गले से भी लगा लेते थे और कहते थे कि  चिंता न करें? ईश्वर साहू बिरनपुर वाले के कारण साजा की विधानसभा सीट छत्तीसगढ़ की हाईप्रोफाइल सीट मानी जा रही है. इस सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता रविंद्र चौबे चुनाव लड़ रहे हैं. वे भूपेश बघेल मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य हैं. रवीन्द्र चौबे इस सीट पर वर्ष 1985 से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं. केवल एक बार 2013 में ही चुनाव हारे हैं. इस बार कांग्रेस के इस मजबूत चेहरे के सामने भाजपा ने मजदूर चेहरे को उतार कर पूरे दुर्ग संभाग के चुनावी समीकरण बदलने की कोशिश की है. ईश्वर साहू के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ में नया प्रयोग किया है. ईश्वर साहू के एक निर्णय ने भाजपा को इस प्रयोग के लिए मजबूर किया.

साहू के फैसले से बीजेपी प्रभावित
जिस निर्णय से भाजपा प्रभावित हुई वह निर्णय था पुत्र की हत्या पर सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे और दस लाख की आर्थिक सहायता को ठुकराने का. ईश्वर साहू के बड़े पुत्र भुवनेश्वर की हत्या इसी साल अप्रैल माह में दो वर्गों के बीच हुए संघर्ष में हो गई थी. विवाद बच्चों का था. इसमें 22 साल के भुवनेश्वर साहू की जान चली गई थी. इसके बाद गांव में तनाव फैल गया. कुछ दिनों बाद गांव में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के दो युवकों की हत्या से बिरनपुर का नाम पूरे छत्तीसगढ़ के लोग जानने लगे थे. राजनीति भी खूब हुई. भाजपा ने सत्ताधारी दल कांग्रेस पर कई तरह के आरोप लगाए.

साहू समाज के मतदाता ज्यादा
घटना के बाद कांग्रेस का कोई नेता ईश्वर साहू के पास भी सहानुभूति प्रकट करने नहीं पहुंचा था. इस बात का जिक्र ईश्वर साहू अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी करते रहे. बिरनपुर गांव की पहचान भी ईश्वर साहू के साथ जुड़ गई है. पोस्टर-बैनर में भी गांव का नाम ईश्वर साहू के साथ जोड़ा गया. क्षेत्र में साहू समाज के अच्छे-खासे वोट हैं. यद्यपि भाजपा को पहले कभी साहू उम्मीदवार साजा में उतारने से लाभ नहीं मिला. इस बार बात बिरनपुर की है. इस कारण चुनाव भी हाई प्रोफाइल है. कांग्रेस उम्मीदवार रवीन्द्र चौबे के लिए जाति और धर्म दोनों ही चुनौती के तौर पर सामने हैं. लड़ाई राजनीतिक और गैर राजनीतिक चेहरे के बीच है.

Tags: Assembly election, Chhattisgarh news

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