हाल ही में गूगल की एक्स एम्पलॉय नूपुर दवे ने चैट जीपीटी की मदद से रिज्यूमे बनाने वालों को सावधान किया। उन्होंने कहा कि इससे नौकरी मिलने की संभावनाएं कम हो सकती हैं। नूपुर ने इसके पीछे के तीन कारण बताए। आइए, जानते हैं ये 3 कारण कौन से हैं, रिज्यूमे बनाने से पहले रखें इनका ध्यान।
रिक्रूटर कैसे पहचानते हैं कि रिज्यूमे चैट जीपीटी की मदद से बना है?
इस सवाल के जवाब में नूपुर बताती हैं कि चैट जीपीटी जिस अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करता है वो भारतीय नहीं होता है। चैट जीपीटी की भाषा किसी अमेरिकन अंग्रेजी शिक्षक के जैसी होती है। दवे ने कहा कि AI जनरेटेड बायोडाटा (AI Generated Biodata) उबाऊ होता है, उनमें कुछ भी नया नहीं होता है।
चैट जीपीटी वाले बायोडाटा से छवि खराब होती है (ChatGPT Biodata)
एआई की मदद से बायोडाटा बनाने को लेकर नूपुर ने कहा कि ये बायोडाटा हद से ज्यादा परफेक्ट होते हैं। साथ ही सारे कॉन्टेंट एक से होते हैं। चैट जीपीटी की मदद से बने रिज्यूमे में एक समान कॉन्टेंट होने की शिकायत आ सकती है।
आलसी लग सकते हैं
AI टूल की मदद से बने रिज्यूमे अपनी पहचान जाहिर कर देते हैं। ऐसे में जिस कंपनी में आप अप्लाई कर रहे हैं, वहां आपका पहला इम्प्रेशन खराब हो सकता है। आवेदन कर्ता की छवि आलसी के रूप में बन सकती है और कोई भी कंपनी किसी आलसी एम्पलॉय का चयन करना नहीं पसंद करेगी।
कौन हैं नूपुर दवे? (NRI Nupur Dave)
नुपुर दवे बैंगलुरु की रहने वाली हैं। उन्होंने 40 साल की उम्र में नौकरी से रिटायरमेंट ले लिया। नूपुर ने 10 साल तक सैन फ्रांसिस्को में गूगल के लिए नौकरी की थी। अब वो NRI काउंसेलर के रूप में भारतीयों को विदेश में नौकरी पाने के लिए प्रशिक्षित करती हैं। वो लोगों को बताती हैं कि चैट जीपीटी की मदद से बने रिज्यूमे ज्यादा विश्वसनीय नहीं होते।