दिल्ली शराब घोटाला मामले में राज्यसभा सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है। पहले ही इस मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया जेल में बंद हैं। अब बताया जा रहा है कि इस घोटाले के तार पार्टी के कई अन्य नेताओं से भी जुड़े हैं।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह आप सांसद संजय सिंह की ED द्वारा गिरफ्तारी और बिहार जाति आधारित जनगणना से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गयी। इस दौरान Prabhasakshi Editor ने कहा कि दिल्ली शराब घोटाला मामले में राज्यसभा सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है। पहले ही इस मामले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया जेल में बंद हैं। अब बताया जा रहा है कि इस घोटाले के तार पार्टी के कई अन्य नेताओं से भी जुड़े हैं। हालांकि आम आदमी पार्टी इसे केंद्र सरकार की प्रतिशोध की राजनीति करार दे रही है लेकिन दूसरी ओर यह दावा किया जा रहा है कि अदालत के समक्ष पुख्ता सबूत पेश किये गये हैं और उसी के आधार पर यह गिरफ्तारी हुई है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि इस पूरे घटनाक्रम से आम आदमी पार्टी की छवि पर बहुत बुरा असर पड़ा है।
प्रभा साक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे ने यह भी कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि संजय सिंह आम आदमी पार्टी के बड़े नेता हैं और वह भाजपा पर जबरदस्त तरीके से हमलावर रहते हैं। संसद में भी वे मुखर होकर बोलते हैं। हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि संजय सिंह कई बार संसदीय आचरण के खिलाफ भी गए हैं और जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है। नीरज दुबे ने कहा कि फिलहाल शराब घोटाले को लेकर जांच चल रही है। लेकिन कहीं ना कहीं संजय सिंह की गिरफ्तारी अरविंद केजरीवाल के लिए भी बड़ा झटका है क्योंकि वह उनके बेहद करीबी भी हैं। नीरज दुबे ने कहा कि जब आम आदमी पार्टी का उदय हुआ था तो अन्ना आंदोलन की वजह से अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों पर भरोसा किया गया। गठन के साथ सबसे कम समय में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली में लगातार जीतती रही है। लेकिन कहीं ना कहीं उसके नेताओं की गिरफ्तारी ने पार्टी की छवि को धूमिल किया है।
प्रभासाक्षी संपादक ने साथ ही कहा कि जो लोग राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित जनगणना की मांग कर रहे हैं उन्हें समझना होगा कि अक्सर हर जाति के लोग स्वयं को पिछड़ा बताने के लिए तैयार हो जाते हैं, क्योंकि नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलता है। नतीजा यह होता है कि किसी प्रदेश के एक जिले में जो जाति सवर्ण है, वही दूसरे प्रदेश के अन्य जिले में पिछड़ी हो जाती है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो किसी भी व्यक्ति की जाति को निर्धारित करने का निश्चित वैज्ञानिक पैमाना नहीं है। वह जो कह दे, वही सही है। सच्चाई तो यह है कि पिछड़ा, पिछड़ा होता है। उसकी कोई जाति नहीं होती। नीरज दुबे ने इसे साफ तौर पर राजनीतिक भी करार दिया। उन्होंने कहा कि एक पार्टी अगर हिंदू-मुस्लिम करके वोट लेने की कोशिश कर रही है तो वहीं अपनी चुनावी फायदे के लिए दूसरी ओर से हिंदुओं को बांटने की कोशिश की गई है और उसे जाति में दिखाई गया जिससे कि वोटो का ध्रुवीकरण नहीं होगा। नीरज दुबे ने इस बात को भी स्वीकार किया कि जाति आधारित गणना बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है और आने वाले चुनाव में इसकी शोर भी सुनाई देगी।
नीरज दुबे ने कहा कि फिलहाल ओबीसी से सबसे ज्यादा जनप्रतिनिधि भाजपा से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि राज्य स्तर पर देखें तो ओबीसी की पसंद केंद्र में भले ही नरेंद्र मोदी हैं लेकिन राज्य स्तर पर इसमें अलग-अलग चीज देखी गई है। उन्होंने कहा कि 2019 और 2014 के बिहार और उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में ओबीसी का बड़ा वोट बीजेपी को मिला था। लेकिन इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में ओबीसी वोटो में बिखराव देखने को मिला। भाजपा के साथ-साथ यह क्षेत्रीय दलों को भी मिले हैं और यही कारण है कि क्षेत्रीय दल जाति जनगणना कर ओबीसी और पिछले वर्गों को साधने की कोशिश कर रही है।
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