Brahmin vs Thakur: पंडितों की पंडिताई या ठाकुरों की ठकुराई, बिहार में किसका है बोलबाला?

पटना. बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े आने के बाद सवर्णों की दो बड़ी जातियां ब्राह्मण और ठाकुर में राजनीतिक भागेदारी को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. पिछले दिनों संसद के विशेष सत्र के दौरान इसकी कमोबेश झलक देखी गई, जब RJD के राज्यसभा सांसद मनोज झा के एक कविता पाठ पर ठाकुर जाति से आने वाले उनके ही दल आरजेडी के पूर्व सांसद आनंद मोहन ने कड़ी प्रतिक्रया व्यक्त की थी. ऐसे में सवाल उठता है कि संख्याबल में राजपूत से ज्यादा होने के बावजूद ब्राह्मणों की बिहार की राजनीति में उपेक्षा हो रही है?  कांग्रेस, बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी जैसी पार्टियां ब्राह्मणों के बजाए ठाकुरों और भूमिहारों को ज्यादा तरजीह दे रही हैं?

आंकड़ों की मानें तो पिछले कुछ सालों से बिहार मंत्रिमंडल में भूमिहारों, कायस्थों और ठाकुरों की तुलना में ब्राह्मणों को उतना महत्व नहीं दिया गया है. पिछले कई दशकों से बिहार में ब्राह्मणों की आबादी ठाकुरों से ज्यादा होने के बावजूद राजनीतिक भागीदारी तुलनात्‍मक रूप से कम रही है. वर्तमान में भी बिहार से ठाकुर जाति से 6 सांसद लोकसभा में हैं, जबकि ब्राह्मण जाति से मात्र दो सांसद ही लोकसभा पहुंचे हैं. अगर आबादी के लिहाज से बात करें तो ब्राह्मण समुदाय राजपूत, भूमिहार और कायस्थ से आगे है. हाल में ही बिहार की नीतीश सरकार ने जात‍िगत सर्वे के आंकड़े जारी किए हैं. इसके अनुसार, बिहार में राजपूत की आबादी 3.45 प्रतिशत, भूमिहार 2.86 प्रतिशत, कायस्थ 0.60 प्रतिशत और ब्राह्मण 3.65 फीसदी है. चारों अगड़ी जातियों की आबादी इकाई में ही है.

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लोकसभा में जातियों के आधार पर किस जाति की भागेदारी सबसे ज्यादा है.

बिहार में ब्रह्मणों की उपेक्षा, ठाकुरों से प्रेम
अगर लोकसभा में जातियों के आधार पर भागीदारी की बात करें तो देखेंगे कि सवर्णों में आने वाली जातियां राजपूत के 7, भूमिहार के 3, ब्राह्मण के 2, अति पिछड़ा वर्ग के 7, एससी वर्ग से 6, यादव जाति से 5, कुशवाहा से 3, वैश्य से 3, कुर्मी और कायस्थ 1-1 और 2 मुस्लिम सांसद चुन कर आए हैं. इस लिहाज से देखें तो यादव जाति की आबादी 14 प्रतिशत है और उसके 5 ही सांसद चुन कर आए हैं. इसी तरह भूमिहार जाति की आबादी 2.86 प्रतिशत है और उसके 3 सांसद चुनकर आए हैं. सवर्णों में ब्राह्मण की आबादी सबसे ज्यादा है, लेकिन लोकसभा में संख्याबल के हिसाब से मात्र 2 ही सांसद चुनकर आए हैं. दरभंगा से गोपाल ठाकुर और बक्सर से अश्निनी चौबे ही बिहार से जीतकर संसद पुहंचे हैं.

क्यों ब्राह्मण हाशिये पर चले गए?
बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक संजीव पांडेय कहते हैं, ‘ये दोनों (राजपूत और ब्राह्मण) जातियां उत्तर भारत की प्रमुख जाति है. बिहार में इनकी आबादी थोड़ी कम है, लेकिन यूपी से लेकर राजस्थान और मध्य प्रदेश तक में ये दोनों जातियां प्रभावी हैं. राजपूत जहां पूरे बिहार में फैले हैं, वहीं ब्राह्मण उतर बिहार के कई जिलों में प्रभावी हैं. बिहार में 3.45 प्रतिशत आबादी के बावजूद राजपूत जाति के 6 सांसद हैं. जबकि, ब्राह्मण की आबादी 3.65 प्रतिशत होने के बावजूद मात्र 2 ही सांसद लोकसभा में हैं. राजपूत बिहार में यादव के बाद राजनितिक रूप से बड़ी प्रभावी जाति है, लेकिन इस समय बिहार में यादव से ज्यादा राजपूत सांसद हैं.’

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हाल ही में मनोज झा के संसद में दिए भाषण और कविता पाठ पर आनंद मोहन ने प्रतिक्रिया सामने आई थी.

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पांडेय आगे कहते हैं, ‘भाजपा के दिल्ली में राज आने के उतर भारत में राजनीतक तौर पर सबसे ज्यादा मजबूत राजपूत जाति हुआ है. इस समय दो भाजपा शाषित राज्य के सीएम राजपूत हैं और इसका राजनितिक लाभ बिहार के राजपूत को भी मिला. इससे पहले हिमाचल में भी भाजपा के सीएम राजपूत थे. आज कांग्रेस वहां शासन में है, उसने भी राजपूत सीएम ही बनाया है. दरअसल यूपी में सामाजिक न्याय की जाति के मुखयमंत्री पद से जाने के बाद बीजेपी ने राजपूत सीएम योगी पर दांव खेला. हालांकि, ब्राह्मणों को उम्मीद थी कि लंबे समय से सत्ता में ना रहने के बाद बीजेपी ब्राह्मण सीएम बनाएंगी. Up में राजपूत सीएम के कारण ही बिहार में राजपूत जाति ब्राह्मण से ज्यादा प्रभावी हो गई.’

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