ओम प्रकाश निरंजन/कोडरमा: शादी के करीब 7 साल के बाद बिहार लोक सेवा आयोग में सफलता प्राप्त करने वाली नूर फातिमा के संघर्ष की कहानी युवाओं को प्रेरित करने वाली है. सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा एक तरफ जहां दो-तीन असफलताओं के बाद अपनी राह बदल देते हैं. वहीं, झुमरी तिलैया के इमाम क्लिनिक के समीप रहने वाली नूर फातिमा ने असफलताओं से सीख लेते हुए सफलता की नई परिभाषा गढ़ी है.
बैंकिंग परीक्षा में असफलता के बाद यूपीएससी की राह चुनी
नूर फातिमा ने बिहार लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित 68वीं बीपीएससी की परीक्षा में 221 रैंक प्राप्त कर समाज कल्याण विभाग में प्रखंड कल्याण पदाधिकारी बनने का गौरव हासिल किया है. नूर फातिमा ने बताया कि बचपन से उनका झुकाव सिविल सर्विसेज की तरफ था. वर्ष 2009 में डीएवी स्कूल कोडरमा से दसवीं की परीक्षा 92 प्रतिशत अंकों के साथ पास करने के बाद रांची के जेवीएम श्यामली से 12वीं की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वर्ष 2015 में उन्होंने जेजे कॉलेज कोडरमा से बीसीए में स्नातक की डिग्री हासिल की. इसके बाद वह बैंकिंग परीक्षा की तैयारी में जुट गई थी.
शादी के 3 साल बाद दोबारा शुरू की पढ़ाई, दो बार मिली असफलता
नूर फातिमा ने बताया कि इसके बाद उनकी शादी तय हो गई और वर्ष 2016 में बरही के करियातपुर दुलमुहा गांव में हारून रशीद से उनकी शादी हो गई. हालांकि, शादी से पहले उन्होंने अपने होने वाले पति को इस बात से अवगत करा दिया था कि उनकी इच्छा सिविल सर्विसेज में जाने की है. इसके बाद ससुराल वालों ने भी पढ़ाई में पूरा सहयोग करने का भरोसा दिलाया था. बताया कि शादी के तुरंत बाद उनका आईबीपीएस मेंस परीक्षा हुई थी, जिसमें उन्हें असफलता हाथ लगी. इसके बाद वह ससुराल की जिम्मेदारियां संभालने लगीं और 3 वर्षों तक पढ़ाई से ब्रेक ले लिया. वर्ष 2019 से उन्होंने दोबारा सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी. इसके बाद 66वीं और 67वीं बीपीएससी की परीक्षा में उन्हें असफलता हाथ लगी.
ससुराल में ऐसे की तैयारी
नूर फातिमा ने बताया कि उन्होंने अपनी पढ़ाई की नई रणनीति तय की. ससुराल में सुबह 6 से 8 तक वह सेल्फ स्टडी करती थी. इसके बाद 8 बजे से 12 बजे तक घर के काम निपटाती थी. इसके बाद दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक पढ़ाई करती थीं. इसके बाद रात का खाना बनाने के बाद रात 9 से 11 बजे तक पढ़ाई करती थीं. बताया कि प्रतिदिन वह 6 से 7 घंटे पढ़ाई पर लेती थी. बीपीएससी की तैयारी में उन्होंने किताब के साथ यूट्यूब का भी सहारा लिया. स्कूलिंग के दौरान शिक्षकों की प्रेरक बातें उन्हें ऊर्जा प्रदान करती थी. इस सफलता में उनकी माता नूरजहां का भी काफी बड़ा योगदान है.
सोशल मीडिया से रहीं दूर
नूर फातिमा ने बताया कि तैयारी के दौरान उन्होंने खुद को सोशल मीडिया से दूर रखा. पढ़ाई के दौरान संसाधनों की कमी होने पर उन्होंने कपड़ों की खरीदारी कम कर किताबों की खरीदारी पर जोर दिया. उन्होंने बीपीएससी में सफलता का सफर सेल्फ स्टडी, यूट्यूब और किताबें के सहारे प्राप्त किया है. बताया कि इसके लिए उन्होंने किसी भी कोचिंग का सहारा नहीं लिया है. उन्होंने बताया कि अब आगे नौकरी के साथ यूपीएससी की तैयारी भी उनकी जारी रहेगी.
लालटेन की रोशनी में चटाई पर बच्चों को पढ़ते थे पिता
नूर फातिमा के पिता बदरुद्दीन ने बताया कि वह रामगढ़ उपायुक्त कार्यालय से बड़े बाबू पद से रिटायर हुए हैं. उन्होंने जयनगर प्रखंड में भी कई वर्षों तक नाजीर के रूप में अपनी सेवा दी है. शुरू से अधिकारियों के बीच रहने पर वह अक्सर अपने बेटे-बेटियों को अधिकारियों के समाज में प्रतिष्ठा एवं उनकी जीवनशैली का उदाहरण देकर बच्चों को सिविल सेवा में जाने के लिए प्रेरित करते थे. बताया कि सरकारी सेवा के दौरान कई बार जर्जर क्वार्टर में भी परिवार को रहना पड़ा. इस दौरान बिजली नहीं रहने पर लालटेन की रोशनी में वह अपने बच्चों को चटाई पर बिठाकर शाम के वक्त पढ़ते थे. उनकी 4 बेटियां और 2 बेटे हैं, जिसमें 2 बेटा और 2 बेटी नौकरी में आ चुके हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 17, 2024, 14:56 IST