Book Review: व्यंग्य में नवाचार है मेरे प्रतिनिधि हास्य व्यंग्य

“मेरे प्रतिनिधि हास्य व्यंग्य” श्री अरुण अर्णव खरे के चर्चित एवं प्रतिनिधि व्यंग्यों का संकलन है। उनके प्रतिनिधि व्यंग्यों से रूबरू होने के बाद उन पर जलील मानिकपुरी जी का एक शेर मुफीद लगता है- वो अपने अक्स को आवाज़ दे के कहते हैं।

तेरा जवाब तो मैं हूँ मेरा जवाब नहीं। 

संग्रह के पहले व्यंग्य ‘दिन फिरे ठेंगे के’ व्यंग्य में रहीम दास जी के दोहे का मर्म छुपा है- ‘रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर। जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।’ अँगूठा कभी जिसके नाम अँगूठी नहीं रही, अनपढ़ का उपमान माना जाता है, गुरु दक्षिणा में वही काट के माँग लिया गया लेकिन आज सोशल मीडिया में लाइक की दुनिया का सरताज बना है। व्यंग्य गुदगुदाने के साथ अतिरंजित लाइक्स पर करारा तंज कसता है। ‘साइलेंट शब्दों की ट्रेजडी’ में अंग्रेजी शब्दों में साइलेंट अक्षरों की पड़ताल करते हुए, हिंदी के लोक प्रचलित वाक्यों में छुपे हुए भावों पर व्यंग्य किया गया है। उदाहरणार्थ नाइफ की स्पेलिंग में ‘के’ साइलेंट रहता है, वैसे ही छुट्टी के दिन देर तक सोने की इच्छा रखने वाले मित्रों की पत्नी के उलाहने ‘अजी उठो भी, क्या अभी तक पड़े हुए हो’ में ‘भैंसे की तरह’ वाक्यांश साइलेंट रहता है। ‘साब का मूड’ में साहब होने की अहमियत बयां करते हुए व्यंग्यकार लिखते हैं- “ऑफिस के कर्मचारियों को ‘साब’ के मूड के बारे में जानकारी किसी से लेनी नहीं पड़ती, वे साहब के हाव भाव से ही समझ जाते हैं कि आज ‘साब’ का मूड कैसा है। यदि ‘साब’ ने ऑफिस में प्रवेश करते समय चपरासी की नमस्ते का उत्तर दे दिया तो कर्मचारी स्वमेव समझ जाते हैं कि ‘साब’ अच्छे मूड में हैं।”

सोशल मीडिया के मिजाज को रेखांकित करते व्यंग्यों में ‘बसंत, मोहतरमा और मैं’ फेक आईडी के मायाजाल और रंगीनमिजाजी के इर्दगिर्द बुना गया रोचक व्यंग्य है। रचना में भरपूर हास्य और व्यंजना है। व्यंग्य का प्रवाह बाँधे रखता है। ‘टैग बिना चैन कहाँ रे’ व्यंग्य एक पोस्ट में सैकड़ों लोगों को टैग करने वालों की प्रवृत्ति पर व टैगियों को उससे होने वाली पीड़ा को उभारता है। ‘पी राधा और मैं’ सोशल मीडिया पर अपनी पहिचान छुपाकर चैट करने वालों से धोखा खाने के हालातों का मनोरंजक चित्रण है। ‘लाइक दो लाइक लो’ टिट फॉर टेट वाली लाइक प्रवृत्ति पर तंज कसता है। 

‘आँसू बचाइए साहब’ व्यंग्य में आँसू बैंक और जापान में लोगों को रुलाने के लिए ‘वीपिंग बॉयज’ की नियुक्ति जैसे अभिनव प्रयोग, केंद्रीय भूमिका में हैं। व्यंग्य गुदगुदाते हुए किसानों की आत्महत्या, महंगाई, ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ते बच्चों पर जिम्मेदारों की असंवेदनशीलता व सूखी आँखों पर, इन शब्दों में अपनी छटपटाहट व्यक्त करता है- ‘वैसे तो हमारे प्रांत में हैपीनेस मंत्रालय के अस्तित्व में आने के बाद भी सूखी आँखों की संख्या लाखों में है।’ 

स्वर्ग, नर्क, यमलोक की परिकल्पना से जुड़े हुए व्यंग्यों में ‘नर्क में मुरारी लाल’ फैंटेसी शैली का व्यंग्य है। नर्क के विभिन्न सेलों में मृत्यु उपरांत जी रही आत्माओं और उनको मिली सजाओं का रोचक विवरण व्यंग्य में है वहीं अंत में मुरारी लाल अपनी बस्ती वालों को वहाँ खुशहाल देख कर चौंक जाते हैं। यह न्याय-व्यवस्था पर गहरे प्रश्नचिन्ह खड़े करता है। ‘यमलोक में एक दिन’ व्यंग्य आज के समय में आतंकवादी हमले, जातिवादी हिंसा, रेडिएशन, बलात्कार आदि तमाम तरह से होने वाली मौतों पर मार्मिक व्यंग्य है। ‘कोई दवाओं के अभाव में मर रहा है तो कोई जीवन रक्षक दवाएँ खाकर’ जैसे अच्छे पंच व्यंग्य में प्रयोग किए गए हैं। फैंटेसी शैली का एक और व्यंग्य है ‘मानव बमों का पश्चाताप।’ फरीद और फजलू मानव बम बनकर कई बेगुनाहों की जान लेकर दोजख में पहुँचकर पछता रहे हैं। दोनों हूरों के न मिलने से परेशान हैं वहीं वीर शहीदों की आत्माओं का स्वागत देखकर सदमे में हैं। 

‘महापुरुष का प्रादुर्भाव’ बापू के कद को कमतर करने और नाथूराम के महिमामंडन पर करारे पंच कसता है- ‘पता चला कुछ पैसे पाकिस्तान को देने के मुद्दे पर वे काफी व्यथित थे। हालाँकि जब अंग्रेज देश की संपदा लूटकर अपने देश ले जा रहे थे तब वे व्यथित नहीं हुए।’

दलबदलू राजनीति पर आधारित व्यंग्यों में ‘कैमरा, कोण और दृष्टिकोण’ और ‘पावर, पंख और पाँव’ आज के समय की सच्चाई उद्घाटित करते हैं। मोटे तौर पर देखें तो ‘रावण के पुतले के प्रश्न’ व्यंग्य भी उक्त दोनों व्यंग्य का विस्तार ही है। यह व्यंग्य रावण की तरफ से कुछ वाजिब सवाल उठता है और कलयुग में इंसानों के चारित्रिक पतन और गिरते मानवीय मूल्यों की पोल खोलता है। ‘बच्चों की गलती, थानेदार और जीवन राम’ एक व्यंग्य कथा है। दुष्कर्म जैसे संगीन अपराध और उस पर पर्दा डलवाने वाले आका व थानेदार की मिलीभगत और जीवन राम जैसे मूर्ख जनप्रतिनिधि के अपराधी बन जाने की विसंगति पर तीखा व्यंग्य है। 

‘नए मिजाज के व्यंग्यों में ‘आप कैसे बने करोड़पति’ व्यंग्य में एंकर राजनीत, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र से जुड़े बड़े टेढ़े सवाल पूछता है जिनके सही जवाब देकर खिलाड़ी उलझता है, यह पेंच ही व्यंग्य का मजा बरकरार रखता है। ‘पाओ बेशरम हँसी अन लिमिटेड’ हँसते हँसाते एक काल्पनिक दंतमंजन के रोचक प्रचार व बिक्री के बाद जेल जाते बाबाओं, सीडी में कैद नेताओं, लाठी खाते हुए किसानों की हँसने की हिम्मत पर दाद देता हुए तंज कसता है। ‘झूठ का स्टार्टअप’ व्यंग्य नवोदित नेताओं को नए-नए झूठ बेचने, झूठ बोलने की ट्रेनिंग देने वाले कोर्स पर आधारित रोचक व्यंग्य है।

संग्रह में व्यंग्य के लिहाज से हल्की लेकिन रोचक रचना है- ‘नौरंगीलाल की पहली विमान यात्रा |’ विमान संचालन कंपनियों द्वारा आम लोगों को भरमाने और सीट आवंटन में मनचाही उगाही की विसंगति रचना के केंद्र में है | ‘लोचा लाइफ सर्टिफिकेट का’ जीवित को मृत घोषित कर देने वाली व्यवस्था पर तंज कसता है। ‘अब मार्च का मौसम रुलाता बहुत है’ में मार्च के महीने में बच्चों पर इम्तिहान का दबाव, वित्तीय वर्ष पर लिखा पढ़ी का तनाव, कर्मचारियों को टार्गेट पूरा करने का दबाव आदि किस तरह फागुन को निरर्थक बना रहे हैं, पर प्रभावी रचना है। ‘एक उजले चेहरे की तलाश है’ में मुरारी जी रंग लगाने के लिए किसी उजले चेहरे को खोज रहे हैं पर रंगबाज चेहरों से ही दो चार हो रहे हैं। व्यंग्य में काले करनामे करने वालों की खबर ली गई है। ‘छप्पन सब पर भारी’ में अंकों में छप्पन की बढ़ती धाक के बहाने राजनीतिक जुमलों पर चुटकी ली है। 

संग्रह में एकाध व्यंग्य, अन्य साहित्यिक विधाओं के अनूठे प्रयोग पर आधारित हैं। ‘एक कवि की प्याज डायरी’ एक ऐसा ही व्यंग्य है जो प्याज के बढ़े हुए दाम पर कवि का भावार्थ सहित रोचक सृजन है। एक बानगी देखिए ‘तुम काँदे से जब हुई, ‘अनियन’ मेरी जान। एक झलक को झींकता, सारा हिंदुस्तान।।’ रचना में व्यंग्यकार की काव्य सृजन प्रतिभा दोहों में झलकती है। ऐंसे ही ‘अजब मुहावरे, गजब मुहावरे’ में मुहावरों की प्रासंगिकता व सार्थकता पर रोचक प्रश्न उठाए हैं जैसे ईंट का जवाब जब पत्थर से दिया जा सकता है तो ईंट से ईंट बजाकर करारा जवाब क्यों देना और पत्थर के आयतन, वजन आदि पर भी स्पष्टीकरण माँगा है।

‘मुद्दों की राजनीति’ में जनहितैषी की बजाय वैमनस्य बढ़ाने वाले मुद्दों के प्रचलन पर तीखा प्रहार किया है। भाषा सधी हुई है, व्यंजना का अनूठा प्रयोग है। ‘नोटबंदी और हलके रैकवार के तीन पत्र’ नोटबंदी से आम जनजीवन को हुई पीड़ा पर मार्मिक व्यंग्य है कैसे तीनों पीढ़ियाँ लाइनों में लग गयीं, काम धंधे छिन गए, इलाज के लिए पैसों की मारा मारी रही सब कुछ करीने से चित्रित किया है। ‘फेंकने का सुख’ साहित्य, राजनीति और फील्ड में फेंकने वालों का वर्गीकरण करता है। पहली नजर में प्यार’ में अमेरिका के शोध कि प्यार के लिए चार बार नजर मिलना जरूरी है, की कैसे भारतीय धज्जियाँ उड़ा रहे हैं गुदगुदाता हुआ रोचक व्यंग्य है। ‘पुनर्श्वान भव’ व्यंग्य एक कुत्ते के हृदय परिवर्तन पर आधारित व्यंग्य है। एक कुत्ता जो इंसान बनना चाहता है पर इंसानों के भेष में हैवानों को देखकर वह इंसान बनने का विचार त्याग देता है। समाज के विद्रूप चेहरे के कई पहलुओं का चित्रण किया है। 

व्यंग्य संग्रह में विविध विषयों, व्यंग्य की विभिन्न शैलियों का प्रतिनिधित्व करते हुए आम जनजीवन को प्रभावित करने वाले व मानवीय चेतना को झकझोरने वाली राजनीतिक और सामाजिक विद्रूपताओं तथा सरकारी कामकाज, खेल और बाजार की विसंगतियों को रेखांकित करने वाले व्यंग्यों की प्रमुखता है। मेरे प्रतिनिधि हास्य व्यंग्य में कुल इकतीस व्यंग्य हैं जिनमें पाठक को व्यंग्य की विभिन्न मानक शैलियों का रसास्वादन हो जाता है। संग्रह रोचक है, पठनीय है और व्यंग्य रसिकों के लिए संग्रहणीय है। 

समीक्षित पुस्तक- मेरे प्रतिनिधि हास्य-व्यंग्य

लेखक- अरुण अर्णव खरे

प्रकाशक- नोशन प्रेस, चैन्नई

संस्करण- प्रथम 2023

पृष्ठ- 117

मूल्य- 240 रु

समीक्षक- 

नवीन कुमार जैन

अध्ययनरत, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय 

पता – ओम नगर कॉलोनी, वार्ड नं.-10, बड़ामलहरा, 

जिला- छतरपुर, म.प्र. पिन- 471311

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