Book Fair 2024: किसानों और समाज के पिछड़े वर्ग को समर्पित रहा वाणी साहित्य घर

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में ‘विश्व पुस्तक मेला 2024’ के सातवां दिन वाणी प्रकाशन ग्रुप के ‘वाणी साहित्य घर उत्सव’ लेखक, पाठकों और पुस्तक प्रेमियों में खासा उत्साह देखने को मिला. वाणी प्रकाशन से स्टॉल पर आज कई पुस्तकों का लोकार्पण किया गया और कई पुस्तकों पर चर्चा का आयोजन किया गया. इस मौके पर बलबीर माधोपुरी की किताबें ‘मेरी चुनिन्दा कविताएं और ‘मिट्टी बोल पड़ी’ का लोकार्पण किया गया.

वर्ल्ड बुक फेयर के सातवें दिन की शुरूआत वाणी साहित्य घर में कवयित्री मालिनी गौतम की किताब ‘चुप्पी वाले दिन’ पर परिचर्चा से हुई. कार्यक्रम का संचालन करते हुए कवयित्री रमा भारती ने कहा मालिनी की कविता में अंडरक्रेंट रहता है…वो इस तरह से लिखती हैं मन पर. लेखक राजेश्वर वशिष्ठ ने कहा कि मालिनी गौतम इस देश की नब्ज से जुड़ी हुई हैं. इतनी तेज धार की कविता हिंदी में देखने को नहीं मिलती हैं. कथाकार एवं कवयित्री अंजू शर्मा ने कहा कि ‘चुप्पी वाले दिन’ परिपक्व स्त्री की कविता है. पुस्तक की लेखिका मालिनी गौतम ने कहा कि उनकी नज़र उन जगहों पर जाती है बार-बार कि जिन दृश्यों को देखना मुझे संवेदना से और करुणा से भरता है. मुझे ये लगता है की अभी भी इन्हें समाज में जो मिलना चाहिए वो नहीं मिला है.

किसानों की महागाथा ‘माटी राग’
दूसरे सत्र में हरियश राय की किताब ‘माटी राग: कर्ज़ में फँसी माटी की धड़कनों की कथा’ का लोकार्पण व परिचर्या हुई. कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रज्ञा रोहिणी ने कहा कि माटी राग कर्ज में डूबे हुए किसानों कहानी है. वरिष्ठ लेखक शंकर ने कहा कि यह बहुत यथार्थवादी उपन्यास है. वरिष्ठ साहित्यकार शंभु गुप्त ने कहा कि यह उपन्यास वर्तमान कालखंड में महत्वपूर्ण रचना होगी. यह काफी सार्थक प्रतीत होता है. पुस्तक के लेखक हरियश राय ने कहा कि यह उपन्यास उनके अपने अनुभवों से गुज़रा है.

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अकु श्रीवास्तव की पुस्तक पर संवाद
कार्यक्रम के तीसरे सत्र में अकु श्रीवास्तव की किताब ‘उत्तरी उदारीकरण के आंदोलन’ पर लोकार्पण व परिचर्चा का आयोजन किया गया. पुस्तक के दूसरे संस्करण के आवरण का लोर्कापण उत्तर पश्चिम दिल्ली के लोकसभा सांसद हंसराज हंस द्वारा किया गया. इस अवसर पर पुस्तक के लेखक अकु श्रीवास्तव और दिनेश श्रीनेत मौजूद रहे. दिनेश के सवालों के जबाव में अकु श्रीवास्तव ने कहा कि आंदोलन का सफल होना या विफल होना बड़ी बात नहीं, आन्दोलन का होना बहुत जरूरी है.

महेश दर्पण ने कहा कि अल्पना मिश्र ने पहले अपनी कहानियों से सबका ध्यान खींचा फिर उपन्यास से सबका ध्यान खींच रहीं हैं. उन्होंने कहा कि यह उपन्यास अन्त में जाकर सोशियो पॉलिटिकल का रूप ले लेता है. प्रो. बलवंत कौर ने कहा कि यह उपन्यास बहुत पठनीय और समसामयिक है. लेखिका अल्पना मिश्र ने कहा कि यह पुस्तक विस्मृति की समृति लिखने का एक प्रयास था.

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छत के चांद से होती मन की बात
वाणी प्रकाशन के साहित्य घर में लेखिका जयंती सेन मीना की पहली पुस्तक ‘छत के चांद से होती मन की बात’ का लोकार्पण व संछिप्त परिचर्चा का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का संचालन कवयित्री लिली मित्रा ने किया. लेखिका जंयती सेन ‘मीना’, वरिष्ठ कवि मदन कश्यप, लेखिका रूमा बोस और कवयित्री लिली मित्रा ने पुस्तक पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए. मदन कश्यप ने कहा कि वो कविता समाज को कैसे बदल सकती है जो कवि को न बदल पाए. रूमा बोस ने कहा कि रूमा ने अपनी कविता में मेरी बात कह दी, मैं ये सोच रही थी कि इनको कैसे पता चला कि मैं क्या सोच रही हूं. लेखिका रूमा ने बताया कि एक बंगाली परिवेश से होने के बावजूद उन्हें हिंदी में लिखना ज्यादा सहज लगता है. हिंदी में लिख कर वह खुद को ज्यादा महसूस कर पाती हैं.

हिंदू-एकता बनाम मान की राजनीति
एक अन्य सत्र में लेखक अभय कुमार दुबे की पुस्तक ‘हिंदू-एकता बनाम मान की राजनीति’ का लोकार्पण किया गया. लेखक अभय कुमार दुबे, सीएसडीएस डॉ. हिलाल अहमद, डॉ. कमल नयन चौबे और कुंवर प्रांजल सिंह ने पुस्तक पर अपनी राय प्रकट की. डॉ. हिलाल अहमद ने कहा कि मुश्किल है इस किताब से या अभय से खुद को अलग कर पाना. डॉ. कमल नयन चौबे ने कहा कि यह किताब इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बनी-बनाई मान्यताओं को तोड़ने का काम करती है. लेखक अजय कुमार दुबे ने कहा कि शाखा संस्था से जुड़ने के लिए इससे जुड़ने वाले लोगों को थोड़ी देर के लिए अपनी-अपनी जाति रहित होना होगा.

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