बिहार के राजनीतिक दलों ने मंगलवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में आयोजित सर्वदलीय बैठक में बहुचर्चित जाति आधारित गणना की रिपोर्ट में विसंगतियों और गायब विवरणों पर चिंता जतायी।
बैठक के दौरान जहां सत्तारूढ़ महागठबंधन के नेताओं ने मुख्यमंत्री को उनकी सरकार द्वारा किए गए इस विशाल कार्य के पूरा होने पर बधाई दी वहीं विपक्षी भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने इस बात पर जोर दिया कि समाज के जिन वर्गों को निष्कर्ष से असहमति हो , उन्हें अब सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
बैठक में नौ राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जिन राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने बैठक में भाग लिया उनमें जदयू, राजद, भाजपा, कांग्रेस, भाकपा माले, माकपा, भाकपा, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा सेक्युलर और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) शामिल थे।
बिहार सरकार ने सोमवार को जाति आधारित सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किये।
जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार बिहार की कुल जनसंख्या 130725310 में से 63 प्रतिशत लोग अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी)से हैं।
सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चला है कि राज्य की आबादी में 19 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति (एससी) हैं जबकि एक प्रतिशत लोग अनुसूचित जनजाति (एसटी) से आते हैं।
सर्वदलीय बैठक के नतीजे को सफल बताते हुए बिहार के वित्त मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता विजय कुमार चौधरी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह एक सफल बैठक थी और सभी दलों के प्रतिनिधियों ने राज्य सरकार के प्रयास की सराहना की।
जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट संबंधित अधिकारी अब रिपोर्ट के अन्य विवरण, विशेषकर सभी जातियों की आर्थिक स्थिति, संकलित कर रहे हैं जिसे जल्द ही सरकार द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा।
बैठक के बाद राज्य के वित्त मंत्री ने कहा कि संबंधित अधिकारियों ने बैठक में डेटा के संग्रह में शामिल प्रक्रियाओं पर एक प्रस्तुति दी। इसके बाद जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के पहलुओं पर चर्चा हुई। सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने अपनी राय दी और मुख्यमंत्री ने तदनुसार बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिए।
बैठक में शामिल हुए बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘राज्य सरकार को यह बताना चाहिए कि क्या यह अभ्यास जाति आधारित सर्वेक्षण था या जाति आधारित जनगणना थी। ऐसा प्रतीत होता है कि यह कार्य जल्दबाजी में किया गया क्योंकि रिपोर्ट विसंगतियों से भरी है। इसके अलावा जातियों की आर्थिक स्थिति का कोई जिक्र नहीं है…. मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि रिपोर्ट में सभी जातियों की आर्थिक स्थिति का विवरण होगा। उन लोगों का क्या होगा जिन्हें गणनाकारों ने छोड़ दिया। सरकार को सभी डेटा के अंतिम संकलन से पहले जनता से राय-सुझाव आमंत्रित करना चाहिए।’
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बैठक पर टिप्पणी करते हुए बिहार विधानसभा में भाकपा माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘बैठक बहुत अच्छी रही। बैठक में उपस्थित सभी लोगों को मुख्यमंत्री ने खुद रिपोर्ट से संबंधित प्रत्येक विवरण को समझाया। हमने मुख्यमंत्री से इस रिपोर्ट के आधार पर समाज के कमजोर वर्गों के लाभ के लिए शीघ्र नीतियां बनाने का अनुरोध किया।’’
बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान ने कहा, ‘‘यह रिपोर्ट पूरी नहीं है। इसे त्रुटि मुक्त बनाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। राज्य के सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिम आबादी की सही गणना नहीं की गयी है। इसके अलावा हम मांग करते हैं कि सरकार को समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों और विशेष रूप से मुस्लिम आबादी की बेहतरी के लिए नीतियां बनानी चाहिए।’’
अंदरूनी सूत्रों के अनुसार बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संस्थापक जीतन राम मांझी ने मुसहर जाति को अन्य जाति समूहों में विभाजित करने पर आपत्ति जताई है।
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