Bathua: आयुर्वेद‍िक दवा है बथुआ, बच्‍चों के पेट में कीड़ों के अलावा इन बीमारियों में रामबाण, डॉ. शिवानी से जानें

Bathua ke Fayde: सर्दी के मौसम में सब्जियां खरीदते वक्‍त अगर आप बथुआ को सिर्फ इसलिए खरीद लेते हैं कि यह सस्‍ता है या एक बार आलू के साथ मिलाकर इसके परांठे खा लेंगे तो आपको बता दें कि यह सिर्फ हरा शाक नहीं है बल्कि आयुर्वेद की औषधि है. आज हम आपको बथुआ के उन आयुर्वेदिक गुणों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बाद आप बथुआ को न सिर्फ अपनी डाइट में बल्कि अपने बच्‍चों के रोजाना के भोजन में शामिल कर लेंगे और बिना दवा खाए कई बीमारियों से छुटकारा पा लेंगे. ‍

ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद नई दिल्‍ली के द्रव्‍यगुण विभाग के अनुसार बथुआ बच्‍चों की कई ऐसी बीमारियों को प्राकृतिक रूप से ठीक कर देता है, जिसके लिए बच्‍चों को दवा खानी ही पड़ती है. बथुआ काफी हल्का होता है. इसमें शारीरिक और मानसिक शक्ति बढ़ाने की ताकत होती है. बथुआ हरा शाक है इसलिए इसमें हरी सब्जियों वाले सभी गुण होते हैं. इसमें कई ऐसे माइक्रो न्‍यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं जो मन और तन दोनों को फायदा पहुंचाते हैं. यह आयरन का अच्‍छा सोर्स है. इसमें फायबर भी होता और इसलिए यह पाचन में बेहद अच्छा तो होता ही है पाचनशक्ति को भी बढ़ाता है आप बथुआ को कई तरीके से अपने भोजन में शामिल कर सकते हैं.

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. बथुआ का हरा साग बना सकते हैं.
. बथुआ की बेसन वाली कढ़ी बना सकते हैं.
. बथुआ को कच्‍चा काटकर, आटे में गूंथकर रोटियां बना सकते हैं. . बथुआ का रायता बना सकते हैं.
. बथुआ को आलू के साथ मिलाकर या खाली आटे में स्‍टफिंग करके परांठा या रोटी बनाकर बच्‍चों को खिला सकते हैं.

एआईआईए दिल्‍ली के द्रव्‍यगुण विभाग में असिस्‍टेंट प्रोफेसर डॉ. शिवानी घिल्डियाल बताती हैं कि आयुर्वेद के अनुसार बथुआ अर्श यानि बवासीर (Piles) की परेशानी में राहत देता है. जिन्‍हें भूख कम लगती है उन्‍हें सर्दी में बथुआ जरूर खाना चाहिए. यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है. रक्त पित्त यानी अगर किसी के शरीर के किसी भाग से खून गिरता है जैसे नाक से अचानक खून बहना आदि, उसकी फ्रीक्‍वेंसी को भी कम करने में सहायक है. विवांध यानी शौच या मल ठीक से न पास होने की स्थिति में बथुआ जरूर खाना चाहिए. सर्दी के मौसम में बथुआ आसानी से उपलब्ध होने वाला शाक है, इसलिए इसे रोजाना की डाइट में जरूर शामिल करें ताकि बहुत सी बीमारियों से बचा जा सके.

यह प्राकृतिक कृमि नाशक होता है. यानि कि अगर किसी बच्‍चे के पेट में कीड़े रहते हैं तो यह बेस्‍ट आयुर्वेदिक औषधि है. डॉ. शिवानी कहती हैं कि बथुए का स्‍वाद कसैला होता है, ऐसे में जब इसे भोजन में खाया जाता है तो यह पेट के अंदर के कीड़ों के लिए जटिल वातावरण पैदा कर देता है, एक ऐसा माहौल जिसमें कीड़ों को सर्वाइव करने में मुश्किल आती है.

बता दें कि जब बच्‍चों को पेट में कीड़े होने की समस्‍या होती है तो उनकी शारीरिक वृद्धि तक रुक सकती है और भूख नहीं लगती. इसलिए सर्दी में जब तक एक से डेढ़ महीने तक बथुआ मिलता है, बच्‍चों को ही नहीं बड़ों को भी जरूर खाना चाहिए.

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