Basti News: बाबा भदेश्वर नाथ मंदिर का अनोखा इतिहास, आज भी बढ़ रहा है इस शिवलिंग का आकार

बस्ती: अपने आप में कई पौराणिक कथाओं को समेटे बाबा भादेश्वर नाथ मंदिर पूरे बस्ती मण्डल की पहचान है. जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर भादेश्वर नाथ गांव में भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग है. जो अपने आप में एक युग का इतिहास समेटे हुए है. माना जाता है कि यह शिवलिंग एक दिव्य ज्योति से साथ भादेश्वर नाथ गांव के घने जंगल में स्वतः प्रगट हुआ था. शिवधनुषाकार नदी के बीच में स्थित यह ऐसा पवित्र शिवलिंग है. जिसका वर्णन शिव पुराण के 18वे अध्याय के दूसरे दोहे कूपवाहनी शिवधनुवा अकारे, ता तटे बसे भद्रनाथ में वर्णित है. मतलब यह शिवलिंग पूरे विश्व का एक मात्र ऐसा शिवलिंग है जो शिव के धनुष के आकार के नदी के बीच में स्थित है. इस शिवलिंग की पूजा भगवान राम से लेकर लंका पति रावण ने भी किया है. भगवान राम के गुरु जिसका निवास स्थान ही बस्ती जिला था. गुरु वशिष्ट यहां नियमित रूप से पूजा पाठ करने आते रहते थे. लोग इस शिवलिंग को झारखंडेश्वर बाबा के नाम से भी जानते हैं.

मंदिर के पुजारी जय प्रकाश गिरि ने बताया इस शिवलिंग की उत्पत्ति आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व यानी की द्वापर युग में हुआ था. पहले यहां बंदरगाह हुआ करता था. एक दिन रात में यहां लोगों को दिव्य ज्योति प्रकाश दिखाई पड़ी. उत्सुकता बस लोग यहां आकर देखने लगे और फिर उस जगह पर खुदाई करना शुरू किए. खुदाई करते ही यहां से जहरीली मधुमक्खियां, साप, बिच्छू आदि निकलने लगे. जो लोग खुदाई कर रहे थे वो लोग भागने लगे और पास में ही स्थित हत्तीयारवा नाले के पास जाकर वो लोग मर गए.

राजा को दिखा शिवलिंग

बस्ती के राजा वन में शिकार खेलने गए. उन्होंने शिवलिंग को देखा तो वो उसमे मिट्टी पटवाने लगे. जैसे जैसे वो इसमें मिट्टी डलवाते वैसे वैसे शिवलिंग ऊपर आता चला गया. मन्दिर के पुजारी जय प्रकाश ने आगे बताया कि तब बस्ती राजा ने सन 1728 में प्रसादपुर गांव से हमारे पूर्वज को यहां पूजा पाठ करने के लिए भादेश्वरनाथ में लाए.

मन्दिर के दूसरे पुजारी सुशील गिरि ने बताया कि भगवान भद्रनाथ के शिवलिंग को आज तक कोई भी भक्त अपने दोनों बांहों में नहीं ले सका है. भक्त जब शिवलिंग को अपनी बांहों में लेना चाहते हैं तो शिवलिंग का आकार अपने आप बड़ा हो जाता है. पिछले कई सालों से शिवलिंग की बनावट में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है. लोगों के अनुसार शिवलिंग का आकार पहले बहुत छोटा था. लेकिन अब वह काफी बड़ा हो गया है. जब पांडवों को अज्ञातवास हुआ था तो वो लोग भी यहां आकर पूजा पाठ करते थे.

अंग्रेजों को भी पड़ा था भागना
इतिहासकार प्रो. बृजेश कुमार ने बताया कि ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेज मन्दिर के आस पास के क्षेत्रों पर कब्जा करना चाहते थे. लेकिन जैसे ही अंग्रेज मन्दिर परिसर के पास पहुंचे ऐसा दैवीय प्रकोप हुआ कि कुछ लोग वही मर गए. जो मन्दिर परिसर के क्षेत्र से बाहर थे वो भाग गए. तब से कभी भी अंग्रेजों ने यहां कदम नहीं रखा.

1928 में हुआ था मन्दिर का निमार्ण
पुजारी जय प्रकाश गिरि ने बताया. वैसे तो मन्दिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. लेकिन इस मन्दिर का जीर्णोउद्धार 1928 में बस्ती सदर तहसील के महसो गांव के अयोध्या प्रसाद शुक्ल ने करवाया था. उनसे पहले भी 10-12 लोगों ने मन्दिर बनवाने की कोशिश की. लेकिन वो लोग दिन में मन्दिर बनाते थे. रात में मन्दिर गिर जाता था. फिर एक दिन भगवान शिव अयोध्या प्रसाद शुक्ल के सपनों में आए और उन्होंने उनसे मन्दिर निमार्ण कराने के लिए कहा. मान्यता था कि जो भी कोई मन्दिर बनवाएगा उसका वंश समाप्त हो जाएगा. फिर भी अयोध्या प्रसाद ने मन्दिर निमार्ण शुरू कराया. जैसे ही मन्दिर निमार्ण शुरू हुआ पहले दिन उनकी वाइफ,दूसरे दिन नाती और बेटा तीसरे दिन उनकी बहु एक्सपायर हो गई. लेकिन अयोध्या प्रसाद ने मन्दिर निमार्ण बन्द नहीं कराया और अपने संकल्प को पूरा किया. बाद में वो भी एक्सपायर हो गए.

पूरे साल रहता है भक्तों का जमावड़ा
वैसे तो आपको यहां पर हर दिन भक्तों का हुजूम देखने को मिल जाएगा. लेकिन सोमवार और सावन माह में लाखों की संख्या में दूर दूर से शिवभक्त यहां आते हैं. कहते हैं कि यहां पर सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. श्रावण मास में 50 लाख से अधिक शिवभक्त अयोध्या के सरयू नदी से और हरिद्वार के गंगा नदी से जल लाकर यहां शिवलिंग पर चढ़ाते हैं. महाशिवरात्रि में जलाभिषेक के लिए यहां भक्तों का ताता लगा रहता है. लोग दो दिन पहले ही यहां आकर जलाभिषेक के लिए लाइन लगा का खड़े हो जाते हैं

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