Ayodhya Ram mandir में प्राण प्रतिष्ठा से पहले अनुष्ठान जारी, चार दिनों तक विधि विधान से होगी पूजा

अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर के गर्भ ग्रह में 18 जनवरी को राम लला की प्रतिमा का प्रवेश हो चुका है। 18 जनवरी को गर्भ ग्रह में दोपहर 1:20 बजे यजमान ने संकल्प लिया। इसके साथ ही मूर्ति के जलाधिवास की प्रक्रिया पूरी हुई। इसके बाद प्रतिमा को मंदिर के गर्भ ग्रह में स्थापित किया गया।

जानकारी के मुताबिक रामलला का आसान 3.4 फीट ऊंचा है। इस आसन का निर्माण मकराना पत्थर से किया गया है। वहीं राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रही है वैसे ही अनुष्ठान भी लगातार किए जा रहे है। इसी कड़ी में 19 जनवरी को सुबह नौ बजे अरणीमन्थन से अग्नि प्रकट की गई है। अरणी मंथन खास विधि है जिसमें अग्नि को अग्नि मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रकट किया जाता है। इसी अग्नि से वैश्विक कल्याण की कामना करते हुए यज्ञ आयोजित होता है।

बता दें कि अरणी मंथन से पहले ही गणपति पूजन हुआ। इसके साथ ही समस्त देवताओं की पूजा अर्चना हुई, द्वारपालों द्वारा सभी शाखाओं का वेदपारायण, देवप्रबोधन, औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, कुण्डपूजन, पञ्चभूसंस्कार किया गया है। 

ये है पूजन का विस्तृत ब्यौरा
स्थापित देवतापूजन (जो देवता कल स्थापित किए गए, उनका पूजन), द्वारपालों द्वारा वेद पारायण (यज्ञ में चार द्वारपाल ब्राह्मण होते उनका पूजन), देवप्रबोधन (देवता को जगाने की पूजन विधि), औषधाधिवास (रामलला के विग्रह को औषधियों में रखा जाएगा), केसराधिवास (रामलला के विग्रह को सुगंधित केसर में रखा जाएगा), घृताधिवास (रामलला के विग्रह को घी में रखा जाएगा), कुंडपूजन (यज्ञ कुंड का पूजन होगा) पंचभूसंस्कार (हवन करने से पूर्व अग्नि के पाँच संस्कार होते हैं, उन्हीं को पंचभूसंस्कार कहते हैं), अरणीमंथन, अग्निस्थापन (कुंड में अग्नि स्थापित की जाती है), ग्रहस्थापन (नौ ग्रहों को स्थापित किया जाएगा), असंख्यातरुद्र पीठ स्थापन (असंख्यातरुद्र की स्थापन करके पूजन किया जाएगा), असंख्य रुद्र का पूजन, प्रधानस्थापन (प्रधान वेदी का स्थापन), वारुणमंडल (नक्षत्रों का एक मंडल जिसमें रेवती, पूर्वाषाढ़ा, आर्द्रा, आश्लेषा, मूल उत्तरभाद्रपद और शतभिषा हैं…कुल 27 नक्षत्र हैं जिनका पूजन होगा), योगिनीमंडल स्थापना (64 योगिनियों का पूजन), क्षेत्रपालमंडल स्थापन (आसुरी शक्तियों को रोकने के लिए क्षेत्रपाल का पूजन), ग्रहहोम (नौ ग्रहों का पूजन), स्थाप्यदेवहोम (स्थापित देवताओं का पूजन), प्रासाद वास्तुशांति (निर्माण वास्तु की शांति के लिए पूजन), धान्याधिवास (अनाज में प्रभु के विग्रह को रखना) और पूजन व आरार्तिक्यम (आरती व पूजन) किया जाएगा।  

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