नई दिल्ली11 घंटे पहले
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फरवरी महीने के थोक महंगाई के आंकड़े कल यानी 14 मार्च को जारी होंगे। इस महीने महंगाई में कमी आने का अनुमान है। इससे पहले जनवरी में थोक महंगाई घटकर 0.27% रही थी। दिसंबर में ये 0.73% पर थी। वहीं नवंबर में यह 0.26% और अक्टूबर में -0.52% रही थी।
वित्त वर्ष 2023-24 में अब मे थोक महंगाई का हाल
महीना | महंगाई दर |
अप्रैल | -0.92% |
मई | -3.48% |
जून | -4.12% |
जुलाई | -1.36% |
अगस्त | -0.52% |
सितंबर | -0.26% |
अक्टूबर | -0.52% |
नवंबर | 0.26% |
दिसंबर | 0.73% |
जनवरी | 0.27% |
रिटेल महंगाई में भी आई थी गिरावट
इससे पहले 12 मार्च को सरकार ने रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए थे। भारत की रिटेल महंगाई फरवरी 2024 में मामूली घटकर 5.09% पर आ गई है। यह महंगाई का 4 महीने का निचला स्तर है। इससे पहले जनवरी में महंगाई 5.10% रही थी।
WPI का आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है।
जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।
महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है।
महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।