दुर्गेश सिंह राजपूत / नर्मदापुरम.नर्मदापुरम जिला मुख्यालय से लगभग 125 किलोमीटर दूर पंचमढ़ी को मध्य भारत का कश्मीर कहा जाता है. इस स्थान पर प्रकृति से रूबरू होने के लिए देसी-विदेशी पर्यटक आते है. बात की जाए पंचमढ़ी की तो यहां का इतिहास काफी पुराना है. इस स्थान पर पांडवों ने अपना अज्ञात वास भी काटा था. इसके साथ ही यहां पर बौद्ध भिक्षुओं ने भी ध्यान लगाया था. पंचमढ़ी एक समय पर गोंड राजाओं के अधीन था. यहां पर कोरकू जनजाति के आदिवासी निवास करते थे.
हिस्ट्री की प्रोफेसर डॉ हंसा व्यास ने कहा कि पंचमढ़ी की सुंदरता को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने का श्रेय अंग्रेज के अधिकारी कैप्टन जेम्स फोर्सिथे को जाता है. इतिहास में दर्ज है कि तात्या टोपे की तलाश में अंग्रेज अधिकारी कैप्टन जेम्स फोर्सिथे पंचमढ़ी आए थे. पंचमढ़ी की सुंदरता को देखकर कैप्टन जेम्स इतने मोहित हो गए थे. उन्होंने यहां सेना का कैंप बनाने का फैसला किया था. फिर इसके बाद अंग्रेजों ने पंचमढ़ी में कई विकास कार्य किये थे. पंचमढ़ी में ही भारत के वन विभाग की स्थापना हुई थी. आज भी वन विभाग का पहला हेड क्वार्टर यहां पंचमढ़ी में मौजूद है. जिसे बायसन लॉज के नाम से जाना जाता है. वैसे अब यहा पर पर्यटकों के लिए म्यूजियम बना दिया गया है. जिसे देखने बड़ी संख्या में लोग आते है.
बोरी अभयारण्य में अंग्रेजों का वृक्षारोपण मौजूद
पंचमढ़ी में अंग्रेजो के समय मे वन विभाग यहा के जंगलों से लकड़ी काटने का काम करते थे. यहां अंग्रेज पेड़ तो काटते थे, लेकिन नए पेड़ लगाते भी थे. अंग्रेज पंचमढ़ी के जंगलों से सागौन ओर बांस काटकर ले जाते थे. उनसे पानी के जहाज एवं रेलवे ट्रेक बनाने का काम करते थे. पंचमढ़ी हिल स्टेशन से बागड़ा स्टेशन तक के लिए सड़क भी बनाई थी.यहा के बोरी अभयारण्य में आज भी अंग्रेजों का वृक्षारोपण मौजूद है. लगभग 100 साल से ज्यादा पुराने पेड़ हजारों की संख्या में यहा देखे जा सकते हैं. जो पर्यटकों को आकर्षित भी करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 9, 2024, 20:24 IST