स्वर्ग से कम नहीं है इस जिले का अंतिम गांव, बर्फ गिरने से बदल जाता है नजारा… देखें सुंदर तस्वीरें

सोनिया मिश्रा/ चमोली: इन दिनों उत्तराखंड के पहाड़ बर्फ की सफेद चादर ओढ़े हुए हैं. चारों ओर चांदी सी चमक के बीच पहाड़ों में रहने वाले लोगों के चेहरों की रौनक भी बर्फ आने से बढ़ गई है. ऐसे में पहाड़ी चांचडी, झुमैलो, चौफला जैसे पारंपरिक लोक नृत्य व गीतों से मंडाण लगा रहे हैं. चमोली जिले का अंतिम गांव वाण इन दिनों किसी स्वर्ग से कम नहीं दिखाई दे रहा है. ग्रामीणों के चेहरों की मुस्कान इसमें चार चांद लगा रही है. इसका कारण उनकी आजीविका के साधन से भी है. दरअसल, पहाड़ों में ग्रामीण सेब की खेती, जड़ी बूटियां, फसलों आदि पर आश्रित होते हैं. इसकी अच्छी पैदावार के लिए बर्फ काफी फायदेमंद होती है. इस बार मौसम ने पहाड़ों में देरी से करवट ली है, जिससे बर्फबारी भी काफी देर बाद हो रही है. इसके कारण ग्रामीण अब काफी खुश दिखाई दे रहे हैं. और अपनी खुशी पारंपरिक लोकगीतों को गाकर नृत्य के साथ जाहिर कर रहे हैं.

ग्रामीण हीरा सिंह गढ़वाली कहते हैं कि मार्च में बर्फबारी हमारी फसल और जड़ी-बूटियों के लिए अच्छी है. इस बर्फबारी का हम स्वागत करते हैं और अपने अंदाज में नाच-गाकर खुशी मनाते हैं. बर्फबारी के दौरान महिला पुरुष चांचरी (चांचड़ी) नृत्य करते हैं. यह शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है नृत्य ताल है.

संस्कृति के संरक्षण की जरूरत
वह आगे कहते हैं कि यह नृत्य शैली कुमाऊं के दानपुर क्षेत्र की है, इसे झोड़े का प्राचीन रूप माना गया है. वह आगे कहते हैं कि इस नृत्य में स्त्री-पुरुष दोनों सम्मिलित होते हैं. इसका मुख्य आकर्षण रंगीन वेशभूषा व विविधता है. साथ ही इस नृत्य में धार्मिक भावना की प्रधानता रहती है. लेकिन, युवा पीढ़ी अपने इन लोकनृत्यों से धीरे-धीरे दूर होती जा रही है जिसे अब बचाने की जरूरत है. वहीं, उन्होंने कहा कि बर्फ गिरने और मौसम का मिजाज बदलने से बर्फबारी का लुत्फ उठाने के लिए पर्यटकों का आना शुरू हो गया है. इससे पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग भी काफी खुश दिखाई दे रहे हैं.

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