करना हो देवों के देव महादेव के भव्य रूप का दर्शन, तो तुरंत पहुंचे महाकाल दरबार

शुभम मरमट / उज्जैन:- विश्व प्रसिद्ध महाकाल ज्योर्तिलिंग भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है, जो तीसरे नम्बर पर आता है. यहां की परम्परा बाकी जगहों से अलग है. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में शीप्रा नदी के तट पर स्थित है. 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है. महाकाल के बारे में कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है. दक्षिणमुखी होने के कारण इसकी मान्यता और बढ़ जाती है. यहां शिवरात्रि नहीं, शिव नवरात्रि मनाई जाती है, जो 29 फरवरी से प्रारंभ हो चुकी है. सर्वप्रथम यहां पर कोटेश्वर महादेव पूजन किया जाएगा.

पंचमी से शिवनवरात्रि की शुरुआत
महाकाल मंदिर के पुजारी महेश शर्मा ने कहा कि महाकाल महाराज जी की जो चल मूर्तियां है, उन्हें सवारियों में निकाला जाता है. शिव नवरात्रि के जो 9 दिन होते हैं, इसमें भगवान के अलग-अलग रूपों के दर्शन होते हैं, जिससे भक्त उन प्रतिमाओं का दर्शन प्राप्त कर सके. शिव नवरात्रि का ये पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं. पंचमी से इस पर्व की शुरुआत होती है, जिसे शिव नवरात्रि कहा जाता है.

कोटेश्वर महादेव की पूजा से शिवनवरात्रि का उत्सव प्रारंभ
महाकाल मंदिर में ही कोटेश्वर महादेव विराजित है. यहां के महादेव स्थान देवता भी बताए गए हैं. सर्वप्रथम यह पूजा अभिषेक से प्रारंभ होती है. जो कोटी तीर्थ है, वहां भगवान का सर्वप्रथम पूजन और अभिषेक होता है. उसी के बाद भगवान विरभद्र का पूजन होता है. उसके बाद महाकाल पूजन के साथ लघुरूद्र होता है, जिसे 11 ब्राह्मण प्रतिदिन करते हैं.

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कोटेश्वर महादेव का पूजन
कोटेश्वर महादेव यहां के स्थान देवता बताए गए हैं, इसलिए सर्वप्रथम उनकी पूजा होती है. उसके बाद महाकाल भगवान को प्रथम दिन चंदन के श्रृंगार के साथ पीतांबर पहनाया जाता है. भगवान की जो जलधारी होती है, उसे भागम्बर व वस्त्र पहनाए जाते हैं. इस प्रकार सारे वस्त्र धारण करवाकर भगवान का श्रृंगार होता है और उन्हें एक स्वरूप दिया जाता है. इस प्रकार श्रद्धालु भगवान महाकाल का प्रथम दिन दर्शन करते हैं.

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