इस मंदिर में पारंपरिक तौर पर मनाया जाता है नर्मदा प्रकटोत्सव, जानें मान्यता

भरत तिवारी/जबलपुर: देश में नर्मदा प्रकटोत्सव धूम धाम से मनाया गया. पौराणिक ग्रंथो के अनुसार आज ही के दिन भोले नाथ की पसीने की बूंद से मां नर्मदा उत्पन्न हुई थी. नर्मदा जन्मोत्सव के उपलक्ष में जबलपुर के सबसे प्राचीन मां मक्रवाहिनी के मंदिर में भव्य कार्यक्रम संपन्न किया गया. जबलपुर संस्कारधानी में स्थित कमानिया गेट के पास पान तरीबा में मां मक्रवाहिनी की करीब 1000 साल पुरानी प्राचीन प्रतिमा स्थापित है. मक्रवाहिनी मां नर्मदा के कई नमो में से एक है.

माता मक्रवाहिनी के बारे में यह कहा जाता है कि वे दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं. विश्व की एकमात्र सबसे प्राचीन मां त्रिपुर सुंदरी की तरह मक्रवाहिनी भी दिन में तीन बार अपना रंग बदलती हैं. इसकी पुष्टि मां नर्मदा के सभी अवतरण कथाओं से होती है. यह प्रतिमा कलचुरी काल में सेंडस्टोन नामक पत्थर से बनवाई गई थी.

महादेव के मंदिर से आता है पथ
मंदिर के पुजारी विलोक पाठक ने कहा कि बुंदलेखंड परंपरा के अनुसार आज भी मां नर्मदा के जन्मोत्सव के अवसर पर पास ही में स्तिथ भोलेनाथ के मंदिर से पथ मां मक्रवाहिनी के मंदिर में आता है. उस वक्त सभी महिलाएं उस पथ को लेकर पारंपरागत नाच गाना करती है. बुंदेलखंडी परंपरा के अनुसार जिस प्रकार जब किसी के घर में बच्चा पैदा होता है, तब क्षेत्रीय महिलाएं और परिजन पथ लेकर आनंद और उत्सव मनाती है. उसी प्रकार आज भी मां मक्रवाहिनी के 8वीं शताब्दी के इस मंदिर में पारंपरिक तौर पर पथ लेकर यहां आया जाता है. पंडित विलोक पाठक ने हमें बताया कि नर्मदा प्रकटोत्सव के एक दिन बाद मंदिर में शहर का सबसे बड़ा भंडारा भी किया जाता है. जिसमें भंडारे का प्रसाद खाने दूर दूर से लोग यहां पहुंचते है.

मंदिर में पुराने जमाने के 7 कुएं
जिस जगह पर मंदिर बना हुआ है वहां बताया जाता है कि उसके पहले 7 कुएं हुआ करते थे. जो आज भी वहां पर मौजूद है. बताया जाता है कि उन कुओं का पानी नर्मदा जल जितना ही शुद्ध है.

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