भारतीय लोक प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था दुनिया की सबसे जटिल व्यवस्थाओं में से एक है. यहां कई ऐसे पद हैं जिनकी जरूरत और उनकी शक्ति के बारे में हम नहीं जानते. न्यायिक व्यवस्था में भी ऐसी ही जटिलता देखने को मिलती है. ऐसे में आज हम आपके साथ दो ऐसे ही पदों की चर्चा कर रहे हैं, जिसके बारे में हम अक्सर सुनते हैं लेकिन इन दोनों में अंतर नहीं जानते. हम बात कर रहे हैं ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट और जज के अधिकारों, उनकी शक्तियों और इन दोनों पदों में अंतर के बारे में. हिन्दी में ज्यूडिशिलय मजिस्ट्रेट को न्यायिक दंडाधिकारी और जज को न्यायाधीश कहा जाता है.
इस प्रश्न पर आने से पहले हम आपके साथ अपनी न्यायिक व्यवस्था के बारे में संक्षिप्त चर्चा कर लेते हैं. अपने यहां दो तरह के मुकदमे दीवानी और फौजदारी होते हैं. दीवानी उर्दू शब्द है. इसे अंग्रेजी में सिविल और हिन्दी में व्यवहार कहा जाता है. इसी तरह फौजदारी भी उर्दू शब्द है. इसे अंग्रेजी में क्रिमिनल और हिन्दी में दाण्डिक कहा जाता है. आपके साथ जब किसी भी तरह का भेदभाव, अपराध, उत्पीड़न, परेशानी होती है तो उसे इन दो तरह के मुकदमों में बांटा जाता है. जज और मजिस्ट्रेट दोनों निचली अदालत में बैठते हैं.
ऐसे समझें
इस पूरे मामले को एक उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिए कि आपके मकान पर किसी ने कब्जा कर लिया है. उसे वह खाली नहीं कर रहा है. ऐसे में आप अदालत जाएंगे. यहीं पर आपको ये दोनों विकल्प मिलेंगे. यहां अगर आपका उद्देश्य केवल कब्जेदार से अपना घर मुक्त करवाने और मुआवजा पाने का है तो आप सिविल अदालत में मुकदमा दायर करेंगे. यहां पर अदालत आपके मुकदमे को सुनने के बाद पुलिस को आदेश देगी कि वह कब्जेदार से मकान खाली करवाए. फिर आपको आपका घर मिल जाएगा और कब्जेदार को कोई सजा नहीं होगी. वह जेल नहीं भेजा जाएगा.
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लेकिन, अगर आप कब्जेदार से मुआवजा और उसको सजा दिलाना चाहते हैं तो आपको आपराधिक मुकदमा दायर करना होगा. इसके लिए आपको प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट या द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट की अदालत में जाना होगा. यहां भारतीय दंड संहिता के हिसाब से चलेगा. फिर कब्जेदार पर जुर्माना और सजा होगी.
ऐसे में यह स्पष्ट हो गया कि जिस मामले में अधिकार, अनुतोष या क्षतिपूर्ति की मांग की जाए उसे दीवानी कहते हैं. वहीं दाण्डिक मामले में अपराध के लिए दंड का प्रावधान होता है. इसमें दंड की मांग की जाती है. इतना ही नहीं कुछ मामले दोनों ही प्रकृति के भी हो सकते हैं.
कौन होते हैं मजिस्ट्रेट
ऊपर के उदाहरण से आप न्यायिक मजिस्ट्रेट या दंडाधिकारी के बारे में काफी कुछ समझ गए होंगे. कोई आपराधिक मुकदमा हो, जिसमें दोषी को सजा दिलाने या जुर्माना लगवाने की बात हो तो ऐसे मुकदमों की सुनवाई सबसे प्राथमिक स्तर पर न्यायिक दंडाधिकारी करते हैं. इन्हें फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट भी कहा जाता है. यहीं पर द्वितीय श्रेणी दण्डाधिकारी भी होते हैं. इन्हें सेकेंड क्लास मजिस्ट्रेट कहा जाता है.
न्यायाधीश
जब मामला दीवानी प्रकृति का हो तो उसकी सुनवाई सिविल कोर्ट में होती है. निचली अदालत में ऐसे मामलों की सुनवाई करने वाले को सिविल जज करते हैं. कॉपी राइट, ट्रेड मार्क, पेटेंट जैसे मामले सिविल प्रकृति के होते हैं.
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जिला और सत्र अदालत
निचली अदालत से ऊपर मामले की सुनवाई जिला स्तर पर होती है. यहां पर अगर मामला सिविल है तो वह जिला अदालत में जाएगा और अगर कोई क्रिमिनल मामला है तो वह सेशन कोर्ट यानी सत्र अदालत में जाएगा. इन दोनों का स्तर बराबर होता है. यही कारण है कई जगहों पर जिला स्तर की अदालतों के बाहर ‘जिला और सत्र न्यायालय’ लिखा रहता है. यहां पर दोनों जज हो जाते हैं. जिला जज सिविल मामलों को सुनेगा और सत्र न्यायाधीश क्रिमिनल मामलों को सुनेगा. इस तरह जज और मजिस्ट्रेट की अवधारणा केवल निचली अदालत तक रहती है. जिला जज और सत्र न्यायालय के बाद मामला सीधे हाईकोर्ट में चला जाता है. हाईकोर्ट के जज को जस्टिस यानी न्यायमूर्ति कहा जाता है.
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Tags: CJM Court
FIRST PUBLISHED : February 7, 2024, 13:24 IST