विक्रम कुमार झा/पूर्णिया. कोसी और सीमांचल के किसानों के लिए मक्का प्रमुख खेती है. इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मक्का की खेती होती है. यही कारण है कि लंबे समय से इस इलाके के किसान मक्का आधारित उद्योग स्थापित करने की मांग सरकार से करते आ रहे हैं. हालांकि, जिन किसानों को आधुनिक तकनीक की पर्याप्त जानकारी नहीं होती है उन्हें अक्सर मक्का की खेती में नुकसान भी उठाना पड़ता है. जबकि, जिन किसानों के पास आधुनिक तकनीक की जानकारी है और वह प्रगतिशील सोच रखते हैं, तो उन्हें मक्का की खेती मालामाल भी बना रही है. ऐसे में किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने को लेकर भोला पासवान शास्त्री महाविद्यालय में आठ जिलों के किसानों और कृषि वैज्ञानिकों का जुटान हुआ. जहां किसानों के सवालों का विशेषज्ञों ने जवाब दिया.
जानकारी देते हुए कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. पारस नाथ कहते हैं कि कोसी और सीमांचल के मक्का उत्पादक किसानों की आर्थिक उन्नति के लिए दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया. इसमें आठ अलग-अलग जिलों के किसानों ने भाग लिया. इस दौरान भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के विशेषज्ञ डॉ. साई दास, भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान लुधियाना के प्रधान मक्का प्रजनक डॉ. उमेश कुमार, बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के डॉ. अनिल कुमार सिंह ,भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के मक्का कीट वैज्ञानिक डॉ. बिसा, पूसा के डॉ. केराजकुमार जाट आदि ने किसानों को उन्नत तकनीक की जानकारी दी.
110 दिन से कम समय वाले मक्के की करें इस माह बुआई
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के मक्का वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र साहू ने बताया कि जो किसान 110 दिन से कम समय में तैयार होने वाले मक्के की खेती करना चाहते हैं, वे इसी माह बीजरोपण कर सकते हैं. इसके लिए आलू की खेतों को खाली कर मक्का के लिए तैयार कर सकते हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि इस दौरान खास तौर पर खेतों में नमी बनाए रखने की जरूरत होती है. ऐसे में किसान बाजार या कृषि विज्ञान केंद्र से सुविधानुसार बीज की खरीदारी कर लें. इसके साथ ही बीज के बिल को फसल तैयार होने तक अपने पास सुरक्षित रखें, ताकि बीज में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी होने की स्थिति में क्षतिपूर्ति के लिए दावा पेश किया जा सके.
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FIRST PUBLISHED : February 7, 2024, 13:56 IST