इस नौजवान को सुनें… जानें 90 हजार की नौकरी छोड़कर क्यों कर रहा पदयात्रा, इसका मकसद है महान

राधिका कोडवानी/इंदौर: यूपी के सुल्तानपुर से वंदेभारत पदयात्रा पर इंदौर आए आशुतोष पांडेय कहते हैं कि जब बैग में दो जोड़ी कपड़े और कुछ किताबें रखकर पदयात्रा पर निकला तो एक महीने तक किसी को पता नहीं था कि कहां जा रहा हूं. घर वालों ने कहा वापस घर लौट आओ, लेकिन निश्चय कर लिया था कि पर्यावरण के लिए कुछ करना है तो इस तरह की कोशिश करनी ही होगी.

बनारस मिलने आई मां रो पड़ीं
25 वर्षीय आशुतोष ने बताया कि जब 2022 में नौकरी छोड़ने पर परिवार नाराज हुआ. उन्हें समझाना मुश्किल था. लेकिन, मैं फैसला कर चुका था, 90 हजार की नौकरी भी इसलिए छोड़ी. फिर 2023 से वंदेभारत पदयात्रा की शुरुआत की. लेकिन, जब 2 माह बाद मां बनारस में मिलने आई तो वहां सभी ने उनका सम्मान किया. जनता ने मां के पैर छुए तो वह रो पड़ीं. तब उन्हें लगा कि मेरा मकसद गलत नहीं.

कुछ मजाक भी हैं बनाते
आशुतोष बताते हैं कि जेब में कुछ रुपए होते हैं और बाकी डिजिटल. जहां जगह मिले रात रुक जाता हूं. कुछ लोग मजाक भी बनाते हैं तो कुछ सराहना भी करते हैं. केरल और कर्नाटक में बहुत दिक्कत हुई, लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में लोगों का साथ मिला. नौ लाख का बजट है, एक हजार से ज्यादा स्कूल को जोड़ना है.

दिल्ली की हवा में घुटता था दम
इस यात्रा पर आशुतोष ने बताया कि 2019 में बीएससी के बाद दिल्ली में 90 हजार महीने की नौकरी मिली. दिल्ली में रहने के दौरान प्रदूषण देख मेरा दम घुटता था. बढ़ते प्रदूषण से चिंता होती थी, इसलिए लोगों को जागरूक करने के लिए नौकरी छोड़ दी और पदयात्रा पर निकल गया. अब भी जिस शहर से गुजरता हूं, वहां के लोगों से मुलाकात करता हूं और उन्हें पौधरोपण करने के साथ पर्यावरण सुरक्षा के लिए प्रोत्साहित करता हूं.

बच्चों को पर्यावरण संरक्षण पाठ
आशुतोष ने बताया कि यात्रा के दौरान देश के 21 राज्यों से होते हुए कुल 10 हजार किमी का सफर पूरा करेंगे. यह यात्रा 2025 में खत्म होगी. वहीं एक लाख पौधे लगाने का भी लक्ष्य है. करीब 70 हजार से अधिक बच्चों को पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ा चुके हैं. मध्यप्रदेश से राजस्थान, गुजरात जाएंगे. बताया इस बीच 74 जिलों में जाना हुआ. हर जगह सैकड़ों युवा, सामाजिक संगठन से चर्चा कर वहां पौधे रोप रहे. इस पदयात्रा का उद्देश्य देश की रक्षा, राष्ट्र निर्माण और पर्यावरण सुरक्षा का मैसेज देना है. क्योंकि पैसा नहीं ह्यूमन वैल्यू मायने रखते हैं. इंदौर में सफाई के साथ ग्रीनरी भी देखने को मिली, बाकी शहरों को इंदौर से सीखने की जरूरत है.

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