प्रयागराज. बलिया जिले की तहसील बार एसोसिएशन (रसड़ा) में जारी हड़ताल पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि अदालतें औद्योगिक प्रतिष्ठान नहीं हैं और बार ट्रेड यूनियनों की तरह मांग नहीं कर सकते. यह टिप्पणी करते हुए अदालत ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को शोक मनाने और अन्य ऐसे मामलों के संबंध में दिशानिर्देश प्रस्तुत करने को कहा.
अदालत ने पूछा, “क्या मौजूदा मामले में कोई कार्रवाई की गई है या नहीं?” जंग बहादुर कुशवाहा नाम के व्यक्ति द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि पांच फरवरी 2024 तय की.
अदालत ने कहा, “अधिवक्ताओं की हड़ताल न केवल न्यायिक समय बर्बाद करती है, बल्कि यह सभी सामाजिक मूल्यों को बहुत नुकसान पहुंचाती है और इससे लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है जिससे न्याय देने की व्यवस्था प्रभावित होती है और वादकारियों के लिए मुश्किलें खड़ी होती हैं.”
पीठ ने कहा, “यदि अदालतें लंबे समय तक बंद रहती हैं तो लोग अपनी शिकायतों के निस्तारण के लिए दूसरे रास्ते अपना सकते हैं जिसमें कानून को अपने हाथ में लेना या विवादों के निपटान के लिए अपराधियों से संपर्क करना शामिल है.”
अदालत ने 24 जनवरी के अपने आदेश में कहा कि यदि अधिवक्ताओं को कोई समस्या है तो वे इस अदालत द्वारा छह जून 2023 के आदेश के तहत गठित शिकायत निवारण समिति से संपर्क कर सकते हैं.
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Tags: Allahabad high court
FIRST PUBLISHED : January 29, 2024, 22:38 IST