कर्पूरी ठाकुर, जिन पर बात करना आसान, लेकिन उनके उसूलों पर चलना कठिन…

जब समूचा पूरा भारत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, गरीबों के मसीहा जननायक कर्पूरी ठाकुर की जन्मशती मनाने की तैयारी में लगा था, केंद्र सरकार ने एक अति महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित कर विपक्षियों की राजनीति को हमेशा के लिए कुंद कर दिया. कल तक बिहार में जो राजनीतिक दल बार-बार बीजेपी को दलित विरोधी बताकर कोसने में पीछे नहीं हटते थे, आज उनके हाथ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा चुनावी मुद्दा झटक लिया गया. कर्पूरी ठाकुर ने अपने राजनीतिक जीवन के दौरान गरीबों और दलितों के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसकी मौजूदा राजनीति में कोई मिसाल नहीं है.

बिहार में गैर कांग्रेस के जन्मदाता बने कर्पूरी
-ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री बने, कांग्रेस का एकक्षत्र शासन भी राज्य में सदा-सदा के लिए खत्म हो गया.
-1 जनवरी, 1923 को पितौंझिया गांव में जन्मे ठाकुर सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता के प्रबल समर्थक के तौर पर उभरे.
-हाशिये पर मौजूद समुदायों के कल्याण के प्रति उनका समर्पण युगांतकारी था.
-ठाकुर की राजनीतिक यात्रा वैसे तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ शुरू हुई, लेकिन उन्होंने बिहार में गैर कांग्रेसी राजनीति की सच्चे अर्थों में नींव रखी. ठाकुर के आगमन के साथ ही बिहार में एक मायने में दलितों और पिछड़ों की सही मायनों में राजनीतिक भागीदारी शुरू हुई.
-1970 और 1990 के बीच वो दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने वंचितों के कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दृढ़ता से बार-बार प्रदर्शित किया.

अदना और आला में भेद…उठो, जागो, चलो और बगावत करो…जननायक थे कर्पूरी ठाकुर

उनकी उल्लेखनीय पहलों में था
-भूमि सुधारों की शुरुआत
-भूमिहीन दलितों, अति पिछड़ों के मध्य भूमि का पुनर्वितरण.
-गरीबों और दलित समुदायों तक शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के लिए अंग्रेज़ी की अनिवार्यता को खत्म करना.
-आरक्षण की पटकथा भी कर्पूरी ठाकुर ने लिखी थी, जिसकी धरातल पर खड़े होकर लालू यादव और नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति की शुरुआत की, जो अब तक भी जारी है, लेकिन अचरज की गैर भाजपाई सरकारों ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की कोशिश नहीं की.

कर्पूरी ऐसे समाजवादी जिसकी न पटना में एक इंच ज़मीन, न मकान
-आप कर्पूरी ठाकुर की सहजता को इस बात से समझ सकते हैं कि उन्होंने आज के समाजवादियों की तरह कोई महल खड़ा नहीं किया और न ही करोड़ों की संपत्ति जमा की.
-कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में आरक्षण कोटा का विस्तार किया गया, जिससे हाशिए पर रहने वाले समुदायों को वे अवसर मिले, जिनसे उन्हें सदियों से वंचित रखा गया था.
-ठाकुर का दृष्टिकोण केवल अल्पकालिक राजनीतिक लाभ तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उनका उद्देश्य अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज का निर्माण करना था.

कर्पूरी पर बात करना आसान, लेकिन उनके उसूलों पर चलना कठिन
-ठाकुर ने भेदभाव और सामाजिक अन्याय के मुद्दों के खिलाफ हमेशा अपनी आवाज़ बुलंद की, जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ बात की और एक अधिक सामंजस्यपूर्ण समाज को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया, जहां व्यक्तियों को उनकी जाति या आर्थिक स्थिति के आधार पर नहीं आंका जाता था.

-ठाकुर का योगदान राजनीति के दायरे से परे तक फैला हुआ है. वह गरीबों के आर्थिक सशक्तीकरण के अथक समर्थक थे. उनकी सरकार ने विभिन्न योजनाएं लागू कीं, जो हाशिए पर रहने वाले समुदायों को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और संसाधन प्रदान करती थीं, जिससे वे उद्यमिता में संलग्न हो सकें और आर्थिक स्वतंत्रता हासिल कर सकें. कई चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद, ठाकुर गरीबों और दलितों के कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर हमेशा दृढ़ रहे.

Karpuri Thakur : कर्पूरी ठाकुर, जिन पर बात करना आसान, लेकिन उनके उसूलों पर चलना कठिन...



-उनकी नेतृत्व शैली की विशेषता व्यावहारिक दृष्टिकोण पर आधारित थी, जिससे वो समाज के सबसे कमजोर वर्गों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने में सक्षम थे.

-क्या आज के समाजवादी नेताओं की तुलना कर्पूरी ठाकुर से की जा सकती है, जिन्‍होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने लिए घर तक नहीं बनाया. एक ऐसे समाजवादी नेता, जिन्‍होंने सरकारी खर्चे पर अपने बेटे का इलाज़ तक नहीं करवाया.

-आज उनकी विरासत के लिए बिहार के राजनीतिक दल लड़ाई करते हैं, लेकिन क्या बिहार के दलितों, वंचितों और पिछड़ों को सही मायनों में न्याय दिलवा सके, ये सवाल बार बार पूछा जाना चाहिए.

Tags: Bharat ratna, Bihar News

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *