एमएलजेके को प्रतिबंधित संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त आधार हैं या नहीं – न्यायाधिकरण करेगा फैसला

केंद्र ने सोमवार को एक न्यायाधिकरण का गठन किया जो यह फैसला करेगा कि पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी नेता मसर्रत आलम भट के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर को प्रतिबंधित संगठन घोषित करने के लिए क्या पर्याप्त आधार हैं। न्यायाधिकरण में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश शामिल हैं।
जम्मू कश्मीर आधारित इस समूह को सरकार ने 27 दिसंबर को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पांच साल के लिए गैरकानूनी घोषित कर दिया था।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (1967 का 37) की धारा 5 की उपधारा (1) के साथ ही धारा 4 की उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) न्यायाधिकरण का गठन किया जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सचिन दत्ता शामिल हैं।

अधिसूचना में कहा गया है कि इस न्यायाधिकरण का गठन यह फैसला करने के उद्देश्य से किया गया है कि मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर (मसर्रत आलम गुट) (एमएलजेके-एमए) को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं या नहीं।
देश में आतंक का राज कायम करने के इरादे से जम्मू कश्मीर में राष्ट्र-विरोधी और अलगाववादी गतिविधियों में संगठन की संलिप्तता के मद्देनजर संगठन को प्रतिबंधित कर दिया गया था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रतिबंध लगाने की घोषणा करते हुए कहा था कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है कि देश की एकता, संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा और उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।

शाह ने कहा था, ‘‘संगठन और इसके सदस्य जम्मू कश्मीर में राष्ट्र विरोधी और अलगाववादी गतिविधियों में शामिल हैं, यह संगठन आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करता है और लोगों को जम्मू कश्मीर में इस्लामी शासन स्थापित करने के लिए उकसाता है।’’
मसर्रत आलम भट अपने भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक प्रचार के लिए जाना जाता है।
सैयद अली शाह गिलानी की मृत्यु के बाद वह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टरपंथी गुट का अध्यक्ष बना। आलम कश्मीर घाटी में हिंसक विरोध प्रदर्शन में कथित संलिप्तता के लिए 2010 से जेल में है।
गृह मंत्रालय ने कहा था कि एमएलजेके-एमए का उद्देश्य जम्मू कश्मीर को भारत से आजादी दिलाना, उसका पाकिस्तान में विलय करना और इस्लामी शासन स्थापित करना है।
संगठन के सदस्य अलगाववादी गतिविधियों में शामिल रहे हैं।

इसके अलावा वे आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन करने और जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों पर पथराव जारी रखने के लिए पाकिस्तान और उसके छद्म संगठनों सहित विभिन्न स्रोतों के माध्यम से धन जुटाते रहे हैं।
गृह मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया कि एमएलजेके-एमए और उसके सदस्य देश की संवैधानिक सत्ता और व्यवस्था के प्रति अनादर दिखाते हैं। उसने कहा था कि उनकी गैरकानूनी गतिविधियां भारत की अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव को कमजोर करती हैं।
वर्ष 2015 में आलम की रिहायी जम्मू कश्मीर में पीडीपी-भाजपा गठबंधन में पहली बाधा बनी थी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने शपथ लेने के तुरंत बाद आलम को रिहा कर दिया था।

एक रैली में कथित तौर पर पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के बाद जम्मू कश्मीर की तत्कालीन राज्य सरकार को अपनी सहयोगी भाजपा के दबाव में आलम को राजद्रोह और राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में फिर से गिरफ्तार करना पड़ा।
आलम पर 2010 में कश्मीर में हिंसक विरोध प्रदर्शन करने में अहम भूमिका निभाने का आरोप लगाया गया था, जिसके परिणामस्वरूप 100 से अधिक युवाओं की मौत हो गई थी।

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