हाइलाइट्स
रामनंदी संप्रदाय की स्थापना 15वीं सदी में हुई थी, ताकि जात-पांत को दूर करके भक्तिभाव को बढ़ाया जा सके
इस संप्रदाय के मठ पूरे देश में फैले हैं. अयोध्या का राम मंदिर इसी से संबंधित होगा
अयोध्या के राम मंदिर को चलाने के काम रामनंदी संप्रदाय करेगा, जो वैष्णवों का सबसे बड़ा संप्रदाय है और बैरागियों के 04 प्राचीन संप्रदायों में एक है. इस संप्रदाय के लोग खुद को भगवान के बेटे लव और कुश का वंशज मानते हैं.
ये संप्रदाय राम की भक्ति करता है. उसका मूल मंत्र है ‘ओम रामाय नमः’.रामानंद संप्रदाय के लोग मुख्य रूप से राम, सीता और हनुमान के साथ सीधे विष्णु और उनके अन्य अवतारों की पूजा पर ज़ोर देते हैं. अयोध्या चूंकि भगवान राम की जन्मभूमि है, इसलिए वहां के ज़्यादातर मंदिर इसी पूजा पद्धति का पालन करते हैं. रामनंदी संप्रदाय का गठन उस समय हुआ, जब उन्होंने बिखरते और नीचे गिरते हुए समाज को मज़बूत बनाने की भावना से भक्ति मार्ग में जाति-पांति के भेद को व्यर्थ बताया.
सवाल – कितना पुराना है रामनंदी संप्रदाय और किसने इसे बनाया था?
– रामानंद संप्रदाय की स्थापना जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने की थी. रामानंदाचार्य को उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने क्षत्रीय रूप में वैष्णव बैरागी संप्रदाय की स्थापना की, जिसे रामानंदी संप्रदाय के नाम से भी जाना जाता है.
रामानंद संप्रदाय को भारत के सबसे बड़े वैष्णवी मत के रूप में माना जाता है. इसकी वर्तमान में 36 उपशाखाएँ हैं. इस मत को संत बैरागी, भक्त संत, के नाम से भी जाना जाता है.
सवाल – ये संप्रदाय कैसे शुरू हुआ?
– तीर्थ यात्रा करने के बाद जब रामानंद घर आए. गुरुमठ पहुंचे तो उनके गुरुभाइयों ने उनके साथ भोजन करने में आपत्ति की. उनका अनुमान था कि रामानंद ने तीर्थाटन में जरूर खानपान संबंधी छुआछूत के बारे में नहीं सोचा होगा. इसके बाद रामानंद ने अपने शिष्यों से एक नया संप्रदाय चलाने की सलाह ली, जिसमें जात-पात धार्मिक क्रियाकलापों और आध्यात्मिक गतिविधियों में आड़े नहीं आए. यहीं से रामानन्द संप्रदाय का जन्म हुआ.
सवाल – कौन थे स्वामी जगतगुरु रामानंदाचार्य, जिन्होंने राम भक्ति हर वर्ग तक पहुंचाया?
– स्वामी जगतगुरु श्री रामानन्दाचार्य जी मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन के महान संत थे. उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाया. वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया. वह 15वीं सदी के धार्मिक और समाज सुधारक थे. रामानंदी विष्णु के अवतार राम को एकमात्र सच्चे भगवान के रूप में पूजते हैं.
हालांकि रामानंद की किसी संप्रदाय को स्थापित करने की कोई विशेष इच्छा नहीं थी फिर भी वह बड़ी संख्या में संप्रदाय के अनुयायियों को प्रेरित करते रहे, जिनमें वे संन्यासी भी शामिल थे जिनके पास कई उत्तर भारतीय मठ हैं.
यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंदाचार्य जी को जाता है. उन्होंने वैष्णव बैरागी सम्प्रदाय की स्थापना की, जिसे रामानंदी संप्रदाय के नाम से भी जाना जाता है.
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रामनंदी तिलक (wiki commons)
सवाल – कौन होते हैं वैष्णव, जिसका इसे सबसे बड़ा संप्रदाय कहते हैं?
– वैष्णव संप्रदाय भगवान विष्णु और उनके स्वरूपों को आराध्य मानने वाला संप्रदाय है. इसमें मूल तौर पर चार संप्रदाय आते हैं. ये संप्रदाय अपने प्रमुख आचार्यो के नाम से जाने जाते हैं. वैष्णव संप्रदाय के कई उप-संप्रदाय हैं, जिनमें से एक बैरागी संप्रदाय भी है, जो आमतौर पर उत्तर भारत से बंगाल तक फैला है. वैष्णववाद के 52 द्वारों में से 36 द्वार रामानंदी के पास हैं. इस संप्रदाय को बैरागी संप्रदाय, रामावत संप्रदाय और श्री संप्रदाय भी कहते हैं. इसका सिद्धांत विशिष्टाद्वैत कहलाता है.
सवाल – अयोध्या के राम मंदिर की पूजा कौन करेगा और क्यों?
– अयोध्या के राम मंदिर की पूजा वैष्णव परंपरा को मानने वाले रामनंद संप्रदाय के साधुओं और संतों के जरिए ही होगी. वही इस काम को कराएंगे. वैष्णव संप्रदाय के समस्त प्राचीन मंदिरों की अर्चना वैष्णव-ब्राह्मणों (बैरागी) द्वारा ही की जाती है. वैष्णव परंपरा को मानने वाले लोग शाकाहारी होते हैं. अपने संप्रदाय के नियमों का सख्ती से पालन करते हैं.
सवाल – क्या धार्मिक अखाड़े भी इनसे संबंधित हैं?
– देश में कुल 13 धार्मिक अखाड़े हैं, जिसमें दो वैष्णव बैरागी समाज के अखाड़े हैं, ये हैं श्री दिगंबर अखाड़ा और श्री निर्वाणी अखाड़ा.
सवाल – इस संप्रदाय के लोग खुद को किसका वंशज मानते हैं?
– 20वीं सदी की शुरुआत में इस संप्रदाय ने खुद को राम के पुत्रों, कुश और लव का वंशज घोषित किया. वो खुद को इन्हीं की संतान मानते हैं. रामानंदी संप्रदाय आज भारत, गंगा के मैदान के आसपास और नेपाल में सबसे बड़े और सबसे समतावादी हिंदू संप्रदायों में एक है.
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रामनंदी संप्रदाय का मंदिर (wiki commons)
सवाल – ये क्यों कहा जाता है कि रामनंदी संप्रदाय की प्रवर्तक सीता हैं?
– कहा जाता है कि रामनंदी परंपरा की प्रवर्तक सीता हैं. उन्होंने सबसे पहले हनुमान को शिक्षा दी, जिससे संसार में इस रहस्य का रहस्योद्घाटन हुआ. इसी से इस परंपरा का नाम श्री संप्रदाय भी पड़ा. गुरु शिष्य के कान में पवित्र राम मंत्र की दीक्षा देते हैं.माथे पर ऊपर की ओर इशारा करने वाला तिलक (उर्ध्व पुंड) लगाते हैं.
सवाल – क्या रामनंदियों का भी नागा वर्ग होता है?
– हां 19वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में कई व्यापार मार्गों पर योद्धा-तपस्वियों के समूहों द्वारा पहरा दिया जाता था, जिनमें रामानंदियों के नागा वर्ग भी शामिल थे, जिनकी ताकत और निडरता से लोग डरते थे. अंग्रेजों ने तपस्वियों के इन समूहों को निहत्था करने के लिए कदम उठाए, लेकिन इनकी स्वरूप आज भी बना हुआ है.
सवाल – रामनंदी मठ कहां कहां हैं?
– रामानंदी मठ पूरे उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भारत, गंगा बेसिन, नेपाली तराई और हिमालय की तलहटी में पाए जाते हैं. वैसे ये पूरे भारत में फैले हैं. काशी में स्थित पंचगंगा घाट पर रामानंदी संप्रदाय का प्राचीन मठ बताया जाता है. जयपुर में इसकी प्रधान पीठ है. त्रिनिदाद और टोबैगो के अधिकांश हिंदू अप्रवासी और साथ ही ब्रिटेन में हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग रामानंदी जैसे वैष्णव संप्रदायों से संबंधित है.
सवाल – क्या कबीर भी इसी रामनंदी संप्रदाय का हिस्सा थे?
– कबीर भी रामानंद के शिष्य थे. वह रामानंदी संप्रदाय का हिस्सा थे. हालांकि कबीर के शिष्यों ने एक अलग संप्रदाय की भी स्थापना की, जिसे अब कबीरपंथी के नाम से जाना जाता है. संत रविदास भी रामानंद के शिष्य भी थे, उन्होंने रविदासिया संप्रदाय की स्थापना की. रैदास भी उनके शिष्यों में थे. इसके अलावा रामानंद संप्रदाय के प्रमुख शिष्यों में अनंतानंद, भावानंद, पीपा, सेन नाई, धन्ना, नाभा दास, नरहर्यानंद, सुखानंद, सुरसरी और पदमावती शामिल हैं. स्वामी रामानंद ऐसे महान संत थे जिसकी छाया तले सगुण और निर्गुण दोनों तरह के संत-उपासक विश्राम पाते थे.
सवाल – कबीर को शिष्य बनाने का गुरु रामानंद का एक किस्सा खूब कहा सुना भी जाता है, वो क्या है?
– कबीरदास के बारे में प्रसिद्ध है कि स्वामी रामानंद का आशीर्वाद पाने के लिए उनको काशी के पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर बहुत सुबह लेटना पड़ा था, जिस रास्ते स्वामी रामानंद प्रतिदिन सुबह गंगास्नान के लिए जाया करते थे. कहते हैं कि अचानक स्वामी रामानंद का पैर कबीरदास पर पड़ा और वह अफसोस में राम-राम बच्चा बोल पढ़े. कबीरदास ने रामानंद से आग्रह किया कि वह उनको अपना शिष्य बना लें और रामानंद ने कबीरदास को ह्रदय से लगा लिया. राम नाम ही उनका गुरुमंत्र हो गया.
सवाल – क्या ये सही है कि रामानंद ने जब संप्रदाय बनाया तो इसमें उनके साथ किसी भी जाति और धर्म के लोग आ सकते थे?
– हां, ये सही है. रामानंद ने उदार भक्ति के मार्ग की बात की.उनके शिष्यों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,शुद्र और स्त्रियां भी थीं. भक्ति का द्वार सभी के लिए खुला था. उन्होंने वैरागी संप्रदाय की स्थापना इसी कारण की. इसमें उन्होंने हिंदू और मुसलमानों दोनों को साथ लिया. इसी वजह से उनके साथ कबीर भी थे और तुलसीदास भी.
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FIRST PUBLISHED : January 9, 2024, 19:21 IST