मुंबई। शिवसेना विधायक अयोग्यता मामले का अंतिम परिणाम 10 जनवरी को घोषित किया जाएगा। इसी पृष्ठभूमि में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर से मुलाकात की। लेकिन इस दौरे पर उद्धव ठाकरे ने आपत्ति जताई है। इसके खिलाफ ठाकरे ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। क्या इनके बीच कोई मिलीभगत है? ऐसा सवाल उठाया गया है।
अर्जी में ठाकरे समूह ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा ठाकरे समूह के सचेतक सुनील प्रभु ने दाखिल किया है। इसमें उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री शिंदे, जिन पर अयोग्यता की तलवार लटक रही है, उन्होंने नतीजों से तीन दिन पहले नतीजे देने वाले राष्ट्रपति नार्वेकर से मुलाकात की। ये बहुत गलत है। ठाकरे ने अर्जी में कहा है कि वह इसके जरिए नतीजे को प्रभावित कर सकते हैं। शिवसेना (यूबीटी) नेता उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को कहा कि उनकी पार्टी ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा देकर शिवसेना विधायकों की अयोग्यता संबंधी याचिका पर फैसले से पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के बीच बैठक पर आपत्ति जतायी। ठाकरे ने यहां संवाददाताओं से कहा कि यह हलफनामा सोमवार को दायर किया गया। शिवसेना के विधायकों की अयोग्यता संबंधी याचिका पर 10 जनवरी को शाम चार बजे नार्वेकर को फैसला सुनाना है।
जज-आरोपी की मुलाकात-ठाकरे
मध्यस्थ के रूप में विधान सभा अध्यक्ष, चाहे अधिकृत हो या अनौपचारिक, मुख्यमंत्री से उनके घर पर दो बार मुलाकात कर चुके हैं। यानी वे आरोपियों से दो बार मिल चुके हैं. हमारी नजर में वे आरोपी हैं। हमने उनके खिलाफ अयोग्यता का मामला दायर किया है। हम नॉर्वेवासियों से न्याय की उम्मीद करते हैं। लेकिन अगर जज ही आरोपी से मिलने उसके घर जाए तो हम उससे किस तरह के न्याय की उम्मीद कर सकते हैं।
स्थित अपने आवास ‘मातोश्री’ में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘‘अगर न्यायाधीश (नार्वेकर) आरोपी से मिलने जाते हैं, तो हमें न्यायाधीश से क्या उम्मीद करनी चाहिये।’’ नार्वेकर ने शिंदे के सरकारी आवास ‘वर्षा’ में रविवार को मुलाकात की थी। इससे पहले भी दोनों के बीच पिछले साल अक्टूबर में मुलाकात हुयी थी।
जून 2022 में शिंदे एवं अन्य विधायकों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, जिसके बाद शिवसेना दो फाड़ हो गयी थी और ठाकरे की अगुवाई वाली महा विकास आघाड़ी सरकार का पतन हो गया था, जिसमें कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी मुख्य घटक थे। शिंदे और ठाकरे गुटों द्वारा दलबदल विरोधी कानूनों के तहत एक दूसरे के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए याचिकाएं दायर की गई थीं। बाद में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में भी विभाजन हो गया और पार्टी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार के नेतृत्व में पार्टी का एक धड़ा महाराष्ट्र की शिंदे-भाजपा गबंधन सरकार में शामिल हो गया था।