देश की सबसे पुरानी पार्टी और देश में सबसे ज्यादा लंबे समय तक राज करने वाली पार्टी कांग्रेस राजनीतिक रूप से शायद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, अगर यह कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाली कांग्रेस के पास आज लोक सभा में इतने भी सांसद नहीं है कि उसे आधिकारिक रूप से विपक्षी दल का दर्जा दिया मिल सके। हालिया विधानसभा चुनावों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार गंवाने के बाद कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि उत्तर प्रदेश में पहले से ही कांग्रेस पर हमलावर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपने हमले और तेज कर दिए हैं तो वहीं कांग्रेस के साथ सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत कर रहे और विपक्षी गठबंधन में शामिल होने के बावजूद आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने गुजरात जाकर मंच से ही अपने उम्मीदवार के नाम का एलान कर दिया। कांग्रेस की हालत का अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता है कि जिस नीतीश कुमार ने सभी क्षेत्रीय दलों को अपने मतभेदों को बुलाकर कांग्रेस के साथ आने को तैयार किया, अब उन्हीं नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू कांग्रेस की तीखी आलोचना कर रही है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस भी अधीर रंजन चौधरी के राष्ट्रपति शासन वाले बयान से बौखलाई हुई है।
आज हालत यह हो गई है कि लालू यादव की आरजेडी और नीतीश कुमार की जेडीयू बिहार में कांग्रेस को लड़ने के लिए लोक सभा की ज्यादा सीटें तक देने को तैयार नहीं है और यही रवैया उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का भी है। वहीं आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ अपने समझौते को सिर्फ दिल्ली तक ही सीमित नहीं रखना चाहती है बल्कि खबरें तो यहां तक निकल कर सामने आ रही है कि आम आदमी पार्टी ने पंजाब, हरियाणा और गुजरात सहित कुछ अन्य राज्यों में भी कांग्रेस से इतनी सीटों की डिमांड कर दी है जिसे पूरा कर पाना कांग्रेस के लिए कतई संभव नहीं है। महाराष्ट्र में भी शरद पवार और उद्धव ठाकरे अपनी-अपनी पार्टी के पूरी तरह से टूट जाने के बावजूद भी कांग्रेस पर ज्यादा सीटें देने का दबाव डाल रहे हैं।
कहा जा रहा है कि, अगर कांग्रेस अपने सभी सहयोगी दलों की बात मान लेती है तो फिर उसके पास लड़ने के लिए शायद लोक सभा की 200 सीटें भी न बचें जबकि कांग्रेस पिछले यानी 2019 के लोक सभा चुनाव में 421 सीटों पर चुनाव लड़ी थी।
हालांकि क्षेत्रीय दलों की भी अपनी समस्याएं हैं। पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र की एनसीपी, उत्तर प्रदेश की आरएलडी और जम्मू-कश्मीर की पीडीपी सहित कई पार्टियों का जन्म तो कांग्रेस से ही निकल कर हुआ है और कांग्रेस के वोट बैंक को छीनकर ही ये दल मजबूत भी बने हैं वहीं आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल जैसे कई दल ऐसे भी हैं जो कांग्रेस के वजूद को खत्म करके ही मजबूत बने है और ऐसे सभी दलों को यह डर भी सता रहा है कि कांग्रेस के मजबूत होने से उन्हें नुकसान होगा इसलिए वो कांग्रेस की कमजोरी का फायदा उठाकर पूरी तरह से बारगेन कर लेना चाहते हैं और ये हालत भी तब है जब इन सभी क्षेत्रीय दलों को यह बखूबी मालूम है कि इनमें से कोई भी कांग्रेस के साथ के बिना भाजपा को कड़ी टक्कर देने में सक्षम नहीं है। इसलिए यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिए विपक्षी गठबंधन में सीटों का बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती बन गया है क्योंकि उसके सहयोगी क्षेत्रीय दलों को उसका कमजोर होना ही ज्यादा रास आ रहा है।
-संतोष पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)