2 जनवरी 2024 को सांस्कृतिक स्वाधीनता के रूप देखता हूं: चंपत राय

हाइलाइट्स

22 जनवरी 2024 के दिन को देश की सांस्कृतिक स्वाधीनता के रूप में देखता हूं
रामजन्मभूमि तीर्थ क्षत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत ने News18 इंडिया के कार्यक्रम में कहा

अयोध्या. भव्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर तैयारियां युद्ध स्तर पर जारी है. ऐसे में News18 इंडिया के खास कार्यक्रम ‘अयोध्या राम पर्व’ में शिरकत करने पहुंचे रामजन्मभूमि तीर्थ क्षत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत ने कहा कि वे 22 जनवरी 2024 के दिन को देश की सांस्कृतिक स्वाधीनता के रूप में देखता हूं.

22 जनवरी से देश कितना बदल जायेगा?  सवाल के जवाब में चंपत राय ने कहा, “मैं निजी रूप में 22 जनवरी 2024, दिन सोमवार, पौष शुक्ल द्वादशी, इसी प्रकार से देखता हूं, जिस तरह कभी समाज ने 15 अगस्त 1947 को देखा होगा. तब देश की राजनीतिक स्वाधीनता और अब देश की सांस्कृतिक स्वाधीनता है.” कारसेवकों के बलिदान पर चंपत राय ने कहा, “भारत बलिदानियों का देश है. अपने सम्मान के लिए भारत की महिलाओं ने समर्पण दिया. मेवाड़ को देख लीजिये. महाराणा प्रताप सम्मान के लिए कभी झुके नहीं, घास की रोटी तक खा ली. पंजाब में गुरुगोविंद सिंह और उनके साहबजादों को देख लीजिये. यह देश बलिदानियों का देश है. रामजन्मभूमि के लिए कितने बलिदान हुए, यह तो हमें 1984 के बाद से याद है, लेकिन उससे पहले जो बलिदान हुआ उसका क्या? हमारे यहां बलिदान तो कबड्डी का खेल है. दिन में चार बार मरते हैं चार बार जीते हैं.”

इस सवाल के जवाब में कितना यकीन था कि फैसला पक्ष में आएगा, चंपत राय ने कहा, “सत्य है तो वह जीतेगा. 1947 से पहले जिन लोगों ने बलिदान दिया, उन्हें क्या पता था कि 15 अगस्त 1947 को यह होने वाला है. उन्होंने कर्म किया. पत्थर पर हथौड़ा मारो तो यह पता नहीं किस चोट से वह टूटेगा. 100 हथोड़ा मारो तो 101 पर वह टूट जाएगा. कार्य प्रारम्भ किया तो जितना हमारे भाग्य  में लिखा है वह मिलेगा. तो फिर चल दी टोली. एक के बाद एक चढ़ने लगे, सरकार घबरा गई. गोली चलने लगी एक गिरता तो दूसरा झंडा थाम लेता और झंडा ऊपर पहुंच गया. गंगा से न जाने कितने जल कण पशु पक्षी पी जाते हैं, कितने सूर्य की गर्मी से वाष्पित हो जाते हैं, लेकिन जल का प्रवाह नहीं थमता. मैं इसी से प्रभावित हूं.”

यह पूछने पर मंदिर का कितना काम पूरा हो चुका है, उन्होंने बताया कि “5 वर्ष के बालक का चित्र है. 5 वर्ष के रामलला की आंखें कैसी, कपोल कैसी, भाव भंगिमा कैसी, इसकी कल्पना की गई है. भगवान की मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच तय है. तीन मूर्तियां तैयार की गई है. 15 दिन के अंदर तय हो जाएगा कि कौन सी प्रतिमा लगेगी. मंदिर का गर्भ गृह तैयार हैं,. इसमें मकराना के मार्बल लगाए गए हैं. दरवाजे भी बनकर तैयार हो गए हैं. प्राण प्रतिष्ठा के लिए दो आवश्यक बातें हैं. मंदिर का निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा.

प्राण प्रतिष्ठा के लिए निमंत्रण पर उन्होंने कहा कि  “रामजन्मभूमि को वापस पाने के लिए जो 500 साल लगे, इसमें कितने लोगों ने बलिदान दिया मुझे नहीं पता. लेकिन 135 करोड़ लोगों ने अपना योगदान दिया है. इस आंदोलन में 15 हजार संत ने अपने-अपने क्षेत्रों में जनजागरण का काम किया है. इसलिए यही सोचा गया है कि अधिक संख्या में संतों को बुलाया जाए. 13 अखाड़ों के अलावा अनेक तरह की परम्पराएं हैं. कम से कम 125 परंपरा के संत और साधु आएंगे. पूरा देश यहां होगा. हिंदुस्तान के प्रत्येक जिले का एक न एक संत यहां होगा. 4000 संत समाज यहां हो. हमने सोचा है कि समाज जीवन के जितने क्षेत्र हैं सबका प्रतिनिधित्व होना चाहिए. खेल, वैज्ञानिक, साहित्य, रक्षा, पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, शहीद सैनिक के परिवार, रिटायर्ड जज और वकील के साथ फ़िल्मी हस्तियों को भी आना चाहिए. शहीद कारसेवकों के परिजनों को भी बुलाया जाएगा.

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